यतेंद्र चौधरी : मोदी सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) प्रणाली (MSP) को और अधिक प्रभावी, पारदर्शी और उद्देश्यपूर्ण बनाने के लिए अपने वादे अनुसार पूर्व कृषि सचिव संजय अग्रवाल की अध्यक्षता में विशेषज्ञों की एक कमेटी का गठन कर दिया है। हैरानी इस बात की है कि संयुक्त किसान मोर्चे (SKM) के नेता इस कमेटी में भागीदारी करने से इन्कार कर रहे हैं। एमएसपी एक तरह से किसानों को बचाने वाली बीमा पालिसी की तरह काम करती है। यह बाजार में फसलों की कीमतों में होने वाली गिरावट का असर किसानों पर नहीं पड़ने देती। किसानों की आय दोगुनी करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी हरसंभव प्रयास कर रहे हैं। पूर्व में लाए गए तीन कृषि कानूनों का भी यही उद्देश्य था। हालांकि किसान संगठनों की मांगों का सम्मान करते हुए इन कानूनों को वापस ले लिया गया। केंद्र सरकार ने एमएसपी को लेकर कमेटी का गठन कर किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य की ओर कदम बढ़ाया है।

सवाल यह है कि यह कमेटी ऐसे कौन से सुझाव देगी, जिससे कृषि क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव देखने को मिलेंगे। यह कमेटी एमएसपी के साथ-साथ कृषि लागत एवं मूल्य आयोग को अधिक स्वायत्तता प्रदान करने की व्यावहारिक और अधिक वैज्ञानिक बनाने के उपाय पर सुझाव देगी। कृषि लागत एवं मूल्य आयोग यानी सीएसीपी का गठन 1985 में कृषि उत्पादों की कीमतों को तय करने की नीति बनाने में सरकार की मदद करने के उद्देश्य से किया गया था। यह कमेटी प्राकृतिक खेती की संभावनाओं पर भी ध्यान देगी।

यह कमेटी भविष्य की आवश्यकताओं के लिए भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति के बारे में सुझाव भी देगी। इसके अतिरिक्त शोध एवं विकास संस्थानों सहित कृषि विज्ञान केंद्रों को ज्ञान का केंद्र बनाने, विश्वविद्यालयों एवं अन्य शैक्षिक संस्थानों में प्राकृतिक खेती से जुड़े पाठ्यक्रम के लिए भी सुझाव देगी। प्राकृतिक खेती वाले उत्पादों के जैविक प्रमाणीकरण के लिए प्रयोगशालाओं के विकास पर भी यह कमेटी काम करेगी।

जल संकट और जलवायु परिवर्तन के कारण फसल विविधीकरण एक अहम मुद्दा है। इसके लिए यह कमेटी मौजूदा फसल प्रणाली की मैपिंग करेगी। उसके आधार पर देश की बदलती आवश्यकता के अनुसार फसल पद्धति में परिवर्तन के लिए सुझाव देगी। अंत में सूक्ष्म सिंचाई योजना की समीक्षा करेगी और उचित सुझाव देगी। विपक्ष और कुछ किसान संगठन बार-बार यह आरोप लगाते हैं कि केंद्र सरकार एमएसपी को खत्म करना चाहती है। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी कई बार एमएसपी को खत्म करने के आरोपों को दुष्प्रचार और मनगढ़ंत बता चुके हैं। आंकड़े भी विपक्ष के दावों को खारिज करते हैं। मोदी सरकार ने अपने शासनकाल में सबसे ज्यादा किसानों को एमएसपी के दायरे में लाने का काम किया है।

जहां तक गारंटीकृत एमएसपी का सवाल है तो राजकोषीय बाधाओं और भारतीय खाद्य निगम की वित्तीय और कर्ज की स्थिति को देखते हुए इस पर एक विस्तृत बहस की आवश्यकता है। सरकार ने किसानों के जीविकोपार्जन के साथ-साथ उनकी बेहतर आय को ध्यान में रखते हुए खरीफ, रबी एवं अन्य वाणिज्यिक फसलों की एमएसपी में लगातार वृद्धि की है। इसी का परिणाम रहा कि वित्त वर्ष 2013-14 में धान की एमएसपी, जो 1310 रुपये प्रति क्विंटल थी, वह 2021-22 में बढ़कर 1940 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गई है। इसी प्रकार 2013-14 में गेहूं की एमएसपी, जो 1400 रुपये प्रति क्विंटल थी, अब 2015 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गई है।

वर्ष 2020 में रबी सीजन में गेहूं पर एमएसपी का लाभ लेने वाले 43.33 लाख किसान थे, जो वर्ष 2019 के 35.57 लाख से करीब 22 प्रतिशत ज्यादा थे। 18 सितंबर, 2020 को राज्यसभा में सरकार की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार 2016-17 में सरकार को एमएसपी पर गेहूं बेचने वाले किसानों की संख्या 20.46 लाख थी। जबकि 2020-21 में इस संख्या में 112 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई। खरीफ सीजन में भी एमएसपी पर धान बेचने वाले किसानों की संख्या 2018-19 के 96.93 लाख के मुकाबले 2020-21 में बढ़कर 1.24 करोड़ हो गई। 2015-16 के मुकाबले यह बढ़ोतरी 70 प्रतिशत से ज्यादा है। इस प्रकार मोदी सरकार के आठ वर्षों में एमएसपी का लाभ उठाने वाले किसानों की संख्या दोगुनी हुई है।

यह भी एक तथ्य है कि पिछले आठ वर्षों में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय का बजट आवंटन लगातार बढ़ा है। पिछले आठ वर्षों में इसमें लगभग छह गुना तक की वृद्धि हुई है। चालू वित्त वर्ष में कृषि बजट का आवंटन लगभग 1.32 लाख करोड़ रुपये है। कृषि क्षेत्र में हो रही विकास यात्रा यहीं पर समाप्त नहीं होती है। खाद्यान्न एवं बागवानी फसलों का रिकार्ड उत्पादन भी सरकार के बजट आवंटन का सही दिशा में खर्च होने के प्रमाण सामने आ रहे हैं। किसानों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना एक प्रभावशाली कदम साबित हुई है, जिससे आज 11 करोड़ से ज्यादा किसान लाभान्वित हो रहे हैं।

इसके बावजूद यह सच है कि देश के कृषि क्षेत्र की हालत ठीक नहीं है। कृषि क्षेत्र में देश की सबसे बड़ी कामकाजी आबादी लगी हुई है, लेकिन इसके अनुपात में परिणाम नहीं दिख रहे। हालांकि किसी जादू की छड़ी से पलभर में यह तस्वीर नहीं बदलेगी। सरकार के इन्हीं छोटे-छोटे, लेकिन ठोस कदमों से कृषि क्षेत्र की तस्वीर हरी-भरी होगी। कुल मिलाकर 'लीक से हटकर सोच' वाली एक समग्र योजना ही कृषि और किसानों को बदहाली के दुष्चक्र से बाहर ला सकती है और गांवों में समृद्धि लाने में मदद कर सकती है।

(लेखक सर्वोच्च न्यायालय में अधिवक्ता एवं सामाजिक कार्यकर्ता हैं)