डॉ. अनिल सौमित्र। आज भले ही कोरोना जनित महामारी और उससे पैदा हालात के कारण सभी आत्मनिर्भर या स्वावलंबी बनने की राह पर अग्रसर हैं, किंतु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पिछले कार्यकाल में ही गांवों को स्वावलंबी बनाने की दिशा में निर्णायक पहल कर दी थी। प्रधानमंत्री ने अपने पिछले कार्यकाल में ही आदर्श ग्राम की योजना प्रस्तुत करते हुए सभी सांसदों से इस योजना को मूर्त रूप देने का आग्रह किया था। हालांकि प्रधानमंत्री जैसा चाहते थे वैसा काम नहीं हो सका। नेतृत्व, जनप्रतिनिधि और सरकार के स्तर पर यह योजना फिलहाल सुप्तावस्था में है, किंतु इस ‘सांसद आदर्श ग्राम योजना’ में अपार संभावनाएं निहित हैं। आदर्श ग्राम योजना की इन संभावनाओं को चुनौती के रूप में स्वीकार करने का वक्त है।

भारतीय गांव यहां के शहरों की सभी जरूरतें पूरी करते रहे हैं, लेकिन भारत अब गरीब हो रहा है, क्योंकि गांव स्वावलंबी नहीं रहे और शहर विदेशी तंत्र और माल के बाजार बन गए हैं। भारत के शहर विदेशों पर और गांव शहरों पर आश्रित हो गए हैं। स्वावलंबी गांव यानी वह गांव जो अपनी सभी जरूरतें स्वयं ही पूरी कर ले, कोई भी सामग्री बाहर से लाने की स्थिति न हो। प्राकृतिक संसाधनों का समुचित प्रबंधन होता हो। गांव न्याययुक्त और अपराध मुक्त हो। हर गांव का अपना वैविध्य और वैशिष्ट्य हो। प्रत्येक गांव का अपना वैद्य, शिक्षक, शिल्पकार और न्यायविद हो। हर गांव का अपना विशेष धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र हो। शिक्षा और ज्ञान के मामले में हर गांव की अपनी विशिष्ट पहचान हो।

गांधी जी ने बार-बार जोर देकर कहा कि अगर गांवों का नाश होता है तो भारत का भी नाश हो जाएगा। भारत में शहरों का विकास विदेशी आधिपत्य और प्रभाव में हुआ है। वर्तमान व्यवस्था में शहर गांव के शोषक के रूप में जाने जा रहे हैं। ग्रामीण आबादी का शहरों की ओर पलायन चिंताजनक है। अगर सच में शहर को गांव की चिंता है तो उसके लिए कुछ बातें तत्काल अपने हाथ में लेनी होगी, मसलन नागरिक अपने नित्य उपयोग की वस्तुएं प्राथमिकता के आधार पर ग्रामीण की बनाई हुई लें। हर गांव में वहां के कौशल, विशेषता और रचनात्मक प्रयोगों को दर्शाने वाली प्रदर्शनी होनी चाहिए। गांव की पहचान वहां संचालित पंचायत राज प्रणाली, कुटीर-ग्रामोद्योग, श्रम और उद्यम आधारित जीवनचर्या, चौपाल, चिकित्सा के लिए दादी-मां का बटुआ जैसी व्यवस्थाएं हों।

नवीन कार्ययोजना का विचार : गांवों को स्वावलंबी बनाने के लिए सरकारी स्तर पर चरणबद्ध योजनाओं को अंजाम देना होगा। प्रथम चरण में सभी स्तरों के जनप्रतिनिधियों से राज्य सरकार और केंद्र सरकार की सभी संबंधित योजनाओं को इन गांवों में कार्यान्वित किया जा सकता है। दूसरे चरण में गांव की विशिष्ट सामाजिक-आर्थिक पहचान के आधार पर उस गांव को विकसित करने का आधार प्रदान किया जाए। तीसरे चरण में गांव की पहचान और मुख्य प्रवृत्तियों को स्थापित करने और उन्हें निरंतरता देने की पद्धति विकसित की जाए। कोई गांव गौ आधारित, तो कोई वैदिक मूल्यों का आचरण करने वाला हो। इस प्रकार इन गांवों को विशिष्ट पहचान के आधार पर ख्याति मिलेगी। पांच वर्ष बाद इन गांव का अध्ययन किया जाए। इस अध्ययन के आधार पर कमियों की पहचान की जाएगी। तदनुसार अगले पांच वषों तक इन प्रयासों को अपेक्षित संशोधनों के साथ निरंतरता दी जा सकती है।

ग्राम विकास के लिए यह वक्त पूरी तरह उपयुक्त है। कोरोना के इस दौर में भारत ने स्वावलंबन के लिए गंभीर विचार शुरू कर दिया है। जहां तक ग्राम विकास की बात है तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इसके लिए बाकायदा एक विभाग बना रखा है। संघ के प्रयासों से देश भर में गांव का विकास एजेंडे में आया है। सरकार और समाज नए तरीके से सोचने को बाध्य हुए हैं। प्रधानमंत्री मोदी भी गांवों के विकास के द्वारा भारत का विकास चाहते हैं। उनकी मंशा स्पष्ट है, इसीलिए उन्होंने पिछले कार्यकाल में सांसद आदर्श ग्राम योजना की आधारशिला रखी। हालांकि यह योजना आंशिक तौर पर ही क्रियान्वित हो सकी है। इसके लिए संबंधित सांसदों को जिम्मेदार माना जाना चाहिए, जो विकास के बजाय अन्य प्रकार की राजनीतिक गतिविधियों में उलङो रहे।

इस बात की गहरी पड़ताल हो कि क्यों यह योजना परवान नहीं चढ़ सकी। लोकसभा सदस्य इस योजना के प्रति क्यों उदासीन और निष्क्रिय रहे। क्या एक सांसद इतना सामथ्र्यवान और योजक भी नहीं होता है कि वह अपने संसदीय क्षेत्र के एक गांव को आदर्श न बना सके। अब इस बात की तैयारी होनी चाहिए कि युवा समूह और स्वैच्छिक संस्थाएं सभी जनप्रतिनिधियों के सहयोग से इस अभियान को आगे बढाएं। आज पूरा देश महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मनाने की तैयारी कर रहा है। केंद्र सरकार, विभिन्न राज्य सरकारें और विभिन्न संस्थान गांधी की 150वीं जयंती की तैयारियों में जुटे हैं, लेकिन गांवों के विकास का व्यावहारिक रोडमैप ही गांधी की सच्ची स्मृति और श्रद्धांजलि होगी।

इस ग्राम विकास योजना के आधार पर गांवों में भारतीय मूल्यों को पुनर्जीवित करने का भगीरथ प्रयास हो सकता है। शुरुआत मध्य प्रदेश के 56 गांवों से हो सकती है। संभव है बाद में एक गांव को देखकर दूसरा गांव अपना ढर्रा बदले। वह भी अपनी पहचान और विविधता के आधार पर स्वावलंबी गांव बनने की कवायद करे। देश के प्रधानमंत्री अपने जुनून के पक्के हैं। आवश्यकता इस बात की है कि देश उनके जुनून में सहभागी हो। प्रधानमंत्री का जुनून जिस दिन सांसदों, विधायकों, युवा उद्यमियों, विशेषज्ञों और अन्य जन प्रतिनिधियों का जुनून बन गया, समझ लें कि भारत के स्वर्णिम भविष्य की शुरुआत हो गई। सभी ठान लें तो गांवों के वैविध्य के आधार पर एक श्रेष्ठ भारत के स्वप्न को साकार होते देर नहीं लगेगी।

[मीडिया चौपाल के संयोजक एवं मीडिया अध्येता]