अनंत मित्तल। नेपाल के प्रधानमंत्री खड़ग प्रसाद (केपी) शर्मा ओली की हालिया भारत यात्रा ने दोनों अभिन्न मित्र देशों के बीच आपसी संबंधों की नई नींव रखी है। ओली ने इस बार प्रधानमंत्री बनने के बाद सबसे पहले भारत का रुख करके जो सद्भाव दिखाया उसे भारत ने भी हाथों-हाथ लिया है। भारत ने दरअसल ओली के वाममोर्चा की ओर से प्रधानमंत्री बनते ही विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के जरिये उन्हें न्योता भेजकर संबंध सामान्य करने के प्रति अपनी गंभीरता का अहसास पहले ही करा दिया था।

ओली के करीब साठ घंटे लंबे भारत प्रवास के दौरान दर्जन भर घोषणाएं की गईं, जबकि फरवरी 2016 में उनका दौरा सूखा ही गया था। इन घोषणाओं में सबसे महत्वपूर्ण भारत की बिहार स्थित रक्सौल सीमा से नेपाल की राजधानी काठमांडू तक रेलवे लाइन बिछाए जाने की संभावना तलाशने की पेशकश है। इससे भारत ने चीन द्वारा ल्हासा से काठमांडू होते हुए भगवान बुद्ध की नगरी लुंबिनी तक रेलवे लाइन बनाने की पेशकश को पछाड़ने की कोशिश की है।

नेपाल में पर्यटन के नए आयाम खुलेंगे
भारत-नेपाल के बीच रेलवे परियोजना सिरे चढ़ने से जहां नेपालियों को और बड़ी तादाद में भारत आकर काम-धंधा करने में सुविधा होगी, वहीं नेपाल के लिए भारतीय बंदरगाहों से माल की ढुलाई और लदाई भी आसान हो जाएगी। इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रेलवे परियोजना को समुद्र से जोड़ने की बात कही है। इसके अलावा नेपाल में पर्यटन का भी रेलवे के माध्यम से नया आयाम खुलेगा। अभी तक दोनों देशों के बीच बस अथवा विमान सेवा से ही आना-जाना संभव है। गौरतलब है कि नेपाल में कोई समुद्र तट नहीं है इसलिए उसे तेल से लेकर तमाम आयात-निर्यात के लिए भारतीय बंदरगाहों पर ही निर्भर रहना पड़ता है।

उम्मीद-पीएम मोदी भी करेंगे नेपाल दौरा
ओली ने हालांकि अपने पिछले कार्यकाल में सितंबर 2015 में मधेसियों के मुद्दे पर सीमाबंदी से आजिज आकर चीन से वैकल्पिक रास्ता खोलने का करार कर लिया था। उसी के तहत चीन और नेपाल के बीच रेलवे लाइन बिछाने का प्रस्ताव चीन ने किया था। अलबत्ता अब भारत-नेपाल रिश्ते सामान्य होने से यथास्थिति बरकरार रहने के आसार हैं। ओली की इस यात्रा ने पिछले ढाई साल में दोनों पड़ोसियों के बीच पैदा हुईं गलतफहमियों को बहुत हद तक दूर किया है। उम्मीद है कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी काठमांडू दौरा करके आपसी संबंधों को और मजबूती देंगे।

समृद्धि के लिए स्थिरता नारा आया काम
ओली का इस बार का भारत दौरा इसलिए और भी अहम है कि उनका वाममोर्चा नेपाल में प्रचंड बहुमत से सत्तारूढ़ हुआ है। उसे संघीय सरकार सहित छह राज्यों और संसद के ऊपरी सदन में भी भारी बहुमत मिला है। ओली को यह सफलता माओवादियों के नेता रहे पुष्पकमल दहल यानी प्रचंड की पार्टी नेकपा-माओवादी से अपनी पार्टी एमाले के गठजोड़ के बूते हासिल हुई है। हालांकि दोनों ही दलों ने भविष्य में अपने झंडे-डंडे मिलाकर संयुक्त वामपंथी दल बनाने का संकल्प जताकर जनादेश हासिल किया है। वाम गठबंधन ने नेपाल की संसद यानी प्रतिनिधि सभा की 165 प्रत्यक्ष चुनाव वाली सीटों में दो-तिहाई से अधिक यानी 113 सीट जीती हैं। भंग सदन में सबसे अधिक सदस्यों वाली नेपाली कांग्रेस 21 प्रत्यक्ष सीट ही जीत पाई है। संसदीय चुनाव में दो मधेसी दल 19 सीट जीते हैं। वाम गठबंधन की जीत के पीछे इन दोनों दलों के गठबंधन से मतदाताओं के मन में 11 साल पुरानी राजनीतिक अनिश्चितता खत्म होने की उम्मीद जगने का बड़ा हाथ है। वाम मोर्चे का नारा भी था, ‘समृद्धि के लिए स्थिरता’। पिछले 11 साल में नेपाल ने 10 प्रधानमंत्री देखे हैं।

18 साल बाद नेपाल में पूर्ण बहुमत की सरकार
वाम मोर्चा को संसद यानी प्रतिनिधि सभा के साथ ही साथ सात में से छह प्रांतीय विधानसभाओं में भी बहुमत मिला है। इसीलिए ओली की सरकार को अब कम से कम बाहर से कोई खतरा नहीं है। साल 1999 के 18 साल बाद पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनने से इस गरीब पहाड़ी देश में आर्थिक तरक्की के आसार बनेंगे। इस जनादेश की खासियत यह भी है कि यह भारत विरोधी प्रचार के जरिये पाया गया है। इसके बावजूद ओली ने अपने वैचारिक हमदम चीन के बजाये पहले भारत का दौरा करके भारत से संबंध मजबूत करने की ठोस मंशा जताई है। ओली ने काठमांडू लौट कर कहा कि भारत और नेपाल के संबंध फिर से गाढ़े होंगे बशर्ते उनमें फच्चर अड़ाने वाले कामयाब न हों। ओली प्रशासन ने साफ किया कि दोनों देश एक-दूसरे के अंदरूनी मामलों में दखल न दें और बराबरी तथा संप्रभुता की रक्षा करते हुए आपसी संबंधों का निर्वाह करें तो भाईचारा और बढ़ेगा।

भारत की रेल लाइन पेशकश का रणनीतिक महत्व
ओली के रुख से उत्साहित होकर ही भारत ने रेल परियोजना के अलावा जलमार्ग खोलने का प्रस्ताव भी नेपाल को दिया है। जलमार्ग बिहार में कुरसला से नेपाल में चतरा के बीच चालू किया जा सकता है। भारत की यह कोशिश इस तथ्य के मद्देनजर भी महत्वपूर्ण है कि नेपाल में राजनीतिक परिवर्तन के पिछले बारह साल के दौरान चीन ने वहां निवेश से लेकर वैचारिक अगुआई तक हरेक क्षेत्र में अपना दखल बढ़ाया है। ऐसे में यदि ल्हासा से लुंबिनी के बीच रेलवे लाइन बन गई तो अरुणाचल की तरह नेपाल की सीमा पर भी चीन अपनी धौंसपट्टी से बाज नहीं आएगा। इसलिए काठमांडू को भारत से रेलवे लाइन से जोड़ने की भारत की पेशकश रणनीतिक लिहाज से भी महत्वपूर्ण है।

अब चीन यात्रा पर जाएंगे ओली
रेलवे और जलमार्ग खोलने के अलावा भारत ने नेपाल के कृषि क्षेत्र को भी सुधारने की पेशकश की है। हालांकि चीन भी कुछ ऐसी ही मंशा जता चुका है और इस बारे में नेपाल की प्राथमिकता का अंदाजा ओली की प्रस्तावित चीन यात्रा के बाद ही लगेगा। नेपाल में हुए राजनीतिक परिवर्तन में भारत ने यूरोपीय संघ आदि अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के साथ मिलकर बहुत रचनात्मक भूमिका निभाई है। साथ ही नेपाली कांग्रेस, एमाले, माओवादियों और मधेसी दलों जैसे नेपाल के प्रमुख राजनीतिक दलों के साथ भी भरपूर सहयोग किया है। ऐसा माना जाता है कि भारत को भी अब नेपाल से कूटनीतिक रिश्तों को संस्थागत स्तर पर निभाना ज्यादा उपयोगी लग रहा है। इसीलिए ओली की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाकर संबंध सामान्य बनाने की पहल की गई है।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं