डा विकास सिंह। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि ‘व्यापार करने में सहजता ने नागरिकों के जीवन को बेहतर बना दिया है। निश्चित रूप से हमने इस मामले में छलांग लगाई है और हमारे निरंतर प्रयासों ने लगातार तीसरे वर्ष दुनिया के शीर्ष दस बेहतर होती अर्थव्यवस्था में हमें स्थान दिलाया है। शीर्ष 50 की रैंकिंग हासिल करने का प्रधानमंत्री का लक्ष्य ज्यादा दूर नहीं है। वर्ष 2014 में जब प्रधानमंत्री मोदी ने कार्यभार संभाला था तब भारत, ईरान और युगांडा से भी नीचे 142वें स्थान पर था। लेकिन उसके बाद से सरकार ने अच्छे कदम उठाते हुए कई साहसिक सुधार किए हैं, विशेष रूप से कारोबार शुरू करने में सहजता और कॉरपोरेट टैक्स दर में कटौती।

2014 से अब 

इसके अलावा दिवालिया होने से संबंधित नियम में बदलाव, निर्माण परमिट जारी करना व सीमा पार व्यापार आदि अन्य उल्लेखनीय फैसले लिए गए हैं। नए फैसलों के लागू होने के बाद से दो हजार से अधिक कंपनियों ने इसका फायदा उठाया है। इस प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने से निर्माण परमिट प्राप्त करने में लागत और समय में कमी आई है। भारत ने एकल इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म में सभी संबंधित पक्षों को एकीकृत कर, पोस्ट क्लीयरेंस ऑडिट को सक्षम बनाकर, बंदरगाह अवसंरचना को बेहतर बनाकर और दस्तावेजों के इलेक्ट्रॉनिक प्रस्तुतीकरण को बढ़ाकर सीमा पार व्यापार को भी आसान बना दिया है।

काफी बड़ी उपलब्धि

यह छलांग हमारी विविधतापूर्ण भौगोलिक स्थिति को देखते हुए काफी बड़ी उपलब्धि है। इसके अलावा, यह रैंकिंग एक बेहतर नियामक ढांचे को दर्शाती है, लेकिन यह विशेषताएं केवल दो शहरों तक सीमित है, जो हमारा मजबूत पक्ष नहीं है। इस संबंध में डीटीएफ यानी डिस्टेंस टू फ्रंटियर मेटिक एक ऐसा सूचकांक है जो यह बताता है कि अर्थव्यवस्था की नीतियां वैश्विक स्तर की बेहतर नीतियों के कितने निकट है। इसमें भारत के स्कोर में 10 प्रतिशत का सुधार आया है और अब यह 60.8 से बढ़कर 67.3 हो गया है। यह एक स्पष्ट संकेत है कि भारत वैश्विक मानकों के अनुरूप अपनी स्थायी नीतियां जारी रखे हुए है।

देशों की बेहतर रैंकिंग

सूचकांक एक समय में उन्नत और उभरती अर्थव्यवस्थाओं की बड़े स्तर पर तुलना करते हुए देशों की बेहतर रैंकिंग से निर्धारित होता है। आर्थिक परिणाम और ईओडीबी के बीच कोई लिनियर संबंध नहीं है, जबकि डीटीएफ सूचकांक के बीच एक स्थापित सह संबंध है। प्रति व्यक्ति उच्च जीडीपी एक उच्च डीटीएफ स्कोर के साथ प्रत्यक्ष रूप से जुड़ा हुआ है, जो भारत की व्यवस्था में भी स्वीकृत है और अधिकांश हिस्से के लिए बेहतर डीटीएफ स्कोर के साथ प्रति व्यक्ति उच्च जीडीपी को दर्शाता है। हमारे देश में वाणिज्यिक विवाद समाधान में अभी भी औसतन चार वर्ष से अधिक का समय लगता है, जिसमें निश्चित रूप से कमी लाने की आवश्यकता है। इसी तरह से हमारे व्यापार समझौते, मामले, नियुक्ति और निष्पादन लागत बहुत घुमावदार और व्यापक हैं। इस बीच, चीन ने 46वें से 31वें स्थान की छलांग लगाई है। मलेशिया भी हमसे आगे है।

अधिक संसाधनों का कर रहे उपयोग

हमें यह समझना होगा कि हम रोजगार प्रदान करने वाले उद्यमों की तुलना में बड़े व्यवसायों पर ध्यान देते हुए अधिक संसाधनों का उपयोग कर रहे हैं। जबकि भारत में उद्यमिता ज्यादातर छोटे स्तर पर है। नीति निर्माताओं को यह पहचानने की आवश्यकता है कि छोटे और मध्यम उद्यमी अर्थव्यवस्था की प्रेरक शक्ति हैं और रोजगार सृजन के केंद्र हैं। ये संतुलित और सतत विकास का आधार भी हैं। सरकार की रोजगार उपलब्ध कराने की क्षमता सीमित है, बड़े उद्योग भारत की रोजगार की समस्या का समाधान नहीं कर सकते हैं। बड़ी कंपनियों में एक करोड़ रुपये का निवेश कर 10 से अधिक नौकरियों का सृजन नहीं किया जा सकता है। जबकि मध्यम एवं लघु उद्यम क्षेत्र के लिए यह संख्या 250 के आसपास है, जो कि कई गुना बेहतर है।

बहुआयामी होना चाहिए विकास 

हमारा विकास बहुआयामी होना चाहिए, जो स्थायी कदम और सकारात्मक परिणामों पर केंद्रित है। व्यवसायों के लिए विभिन्न बाधाओं को दूर करना आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में एक सकारात्मक भूमिका निभा सकती है। कई शोध अध्ययन स्पष्ट रूप से यह बताते हैं कि बोङिाल विनियमन, कमजोर नीति और अनुचित कार्यान्वयन आदि आर्थिक विकास को प्रभावित करते हैं। कई कारकों में से श्रम कानून तथा भूमि सुधार दो प्रमुख कारक हैं। इसी तरह से इंस्पेक्टर राज, कड़ी जांच और गहन निगरानी भारत में कंपनियों के विकास की राह को रोकते हैं। नीति निर्माताओं को कुछ मूलभूत सवालों का जवाब देना चाहिए। 

क्या है कारण

क्या कारण है कि बड़ी संख्या एवं सहज उपलब्ध श्रम वाली अर्थव्यवस्था एक प्रमुख उत्पादक और श्रम आधारित विनिर्माण वस्तुओं का निर्यातक नहीं है? इसी प्रकार, ऐसा क्यों है कि 70 प्रतिशत से अधिक उद्यमी एक वर्ष भी अपना व्यवसाय नहीं चला पाते हैं? जब सरकार और सरकारी स्वामित्व वाली संस्थाओं को अभी भी एमएसएमई को तीन लाख करोड़ से अधिक का भुगतान करना है, तो एमएसएमई क्षेत्र का विकास कैसे संभव है। ऐसा क्यों है कि हमारे 75 प्रतिशत व्यवसाय में 10 से कम लोग कार्यरत हैं? ऐसी परिस्थिति में हमारा वैश्विक प्रतिस्पर्धी बाजार में टिकना मुश्किल है। क्यों हमारे उद्यमी एक ऐसे मैदान पर एक किमी की दौड़ में शामिल हैं, जिसमें एक तरफ तेज धावक दूसरी तरफ मैराथन धावक दौड़ रहे हैं।

पोषक और प्रदाता 

कुछ तो ऐसा है, जहां हमसे चूक हो रही है। हमारी नीतिगत पहल अभी तक उद्यमशीलता को सक्षम करने के अनुरूप है। यह प्रासंगिक, व्यावहारिक और स्थायी योजनाओं को सुधारने और विकसित करने का समय है। सरकार को तुरंत उद्यमशीलता बढ़ाने वाले पारिस्थितिकी तंत्र को तैयार करने और मजबूत बनाने के लिए अधिक उपयुक्त और प्रभावी नीति पर ध्यान केंद्रित करना होगा। हमें आर्थिक सुधार के एक और खुराक की आवश्यकता है। वर्ष 1991 के सुधारों ने उत्पादों के लिए बाजारों को मुक्त कर दिया था। आज जरूरत इस बात की है कि व्यवसाय को राजनीतिक प्रक्रिया से मुक्त किया जाए यानी सुधारों को संरचनात्मक, त्वरित और टिकाऊ बनाया जाना चाहिए। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि स्थायी विकास के लिए उद्यमिता की यात्र पोषित, सृजित और सुसज्जित हो। वे हर दिन और हर तरह से विषम परिस्थिति का सामना करते हैं। हमें अपने दृढ़संकल्प को दोगुना करते हुए उन्हें सफल बनाने में हरसंभव मदद करनी चाहिए।

(लेखक वित्‍तीय व समग्र विकास परिषद में मैनेजमेंट गुरू हैं)

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