जागरण संपादकीय: चिंता बढ़ाते मणिपुर के हालात, चीन और अमेरिका भी बिछाने लगे अपना जाल
मणिपुर में सक्रिय हथियारबंद गुट चाहे वे किसी भी समुदाय के हों उनका निशस्त्रीकरण भी आवश्यक हो गया है। वर्तमान के विषाक्त माहौल में यह बातचीत से संभव नहीं दिखता। ऐसे में आवश्यक है कि खालिस्तानी आतंकवाद के दौर में पंजाब में तमाम आतंकी गुटों के बलपूर्वक निशस्त्रीकरण के लिए चलाए गए सैन्य अभियान जैसा ही अभियान मणिपुर में भी चलाया जाए।
दिव्य कुमार सोती। पिछले करीब डेढ़ साल से अशांत चल रहे मणिपुर में हिंसा और अशांति ने फिर से सिर उठा लिया। इसके चलते वहां बंद और कर्फ्यू वाले दिन लौट आए हैं। यह भी चिंताजनक है कि वहां खतरनाक ड्रोन और राकेट से हमले होने लगे हैं। इतना ही नहीं, सीआरपीएफ जैसे अर्धसैनिक बल को निशाना बनाया जा रहा है। अराजकता की यह स्थिति तब है जब वहां केंद्रीय सुरक्षा बलों के लगभग 70,000 जवान तैनात हैं।
स्पष्ट है कि इतनी बड़ी तैनाती के बावजूद समस्या की जड़ों को पहचान कर उन पर आवश्यक कार्रवाई नहीं हो पाई है। यदि वहां तत्काल प्रभावी कदम नहीं उठाए गए तो स्थिति हाथ से निकल सकती है। ऊपर से म्यांमार में उत्पन्न अस्थिरता के चलते परिस्थितियां और अधिक जटिल एवं खतरनाक होती जा
रही हैं।
ये नए ड्रोन और राकेट हमले दिखाते हैं कि बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के पतन और अमेरिका समर्थित मुहम्मद यूनुस सरकार के सत्ता में आने से मणिपुर में कुकी अलगाववादियों का हौसला और बढ़ गया है। वे म्यांमार के चिन प्रदेश और भारत में मणिपुर और मिजोरम के कुकी बहुल क्षेत्रों को मिलाकर कुकीलैंड बनाने के अपने मिशन के अगले चरण में प्रवेश कर चुके हैं।
इस मुहिम को अमेरिका का समर्थन मिल रहा है। यूं तो अमेरिका दिखावटी तौर पर म्यांमार की सैन्य सरकार के खिलाफ है, लेकिन इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव से अमेरिका में खलबली भी है। इसीलिए बांग्लादेश में अमेरिका ने अपने मनोनुकूल सत्ता परिवर्तन कराया। जहां मणिपुर में हथियारबंद विद्रोह की आंच बढ़ा दी गई है, वहीं म्यांमार के चिन प्रदेश पर चीन-कुकी उग्रवादी संगठनों के कब्जे के चलते भारत का म्यांमार से भूसंपर्क बाधित हो चुका है।
चीन और अमेरिका अपने-अपने द्वारा समर्थित उग्रवादी संगठनों के माध्यम से म्यांमार को अपने-अपने प्रभाव क्षेत्रों में बांटते जा रहे हैं। भारत इस खेल से बाहर खड़ा और असमंजस में दिखाई देता है। भारत म्यांमार में लोकतंत्र बहाली की बात कहता है, मगर इसका जवाब किसी के पास नहीं है कि देश के तमाम हिस्सों में हथियारबंद गुटों के कब्जे की स्थिति में लोकतंत्र कैसे बहाल होगा?
यह भी एक बड़ा सवाल है कि म्यांमार के विघटन की सूरत में हमारे साथ कौन से गुट खड़े होंगे? यह भी कम बड़ी विडंबना नहीं कि चिन प्रदेश पर कब्जे के बाद मणिपुर के हिस्सों को मिलाकर कुकीलैंड बनाने के लिए सशस्त्र संघर्ष छेड़े 24 कुकी उग्रवादी संगठनों के साथ भारत सरकार का वर्तमान में एक समझौता है। इस समझौते के अंतर्गत इन संगठनों के विरुद्ध सुरक्षा बलों के अभियान को स्थगित रखा गया है।
इन संगठनों को सरकार द्वारा चिह्नित कैंपों में भारतीय सुरक्षा बलों की निगरानी में रहना है और हथियारों का उपयोग नहीं करना है। इन 2,000 से अधिक उग्रवादियों को सरकार से 6,000 रुपये प्रति माह भत्ता भी मिलता है। इसके बाजवूद ये संगठन लगातार हिंसक गतिविधियों में शामिल हो रहे हैं, आतंकी हमलों को अंजाम दे रहे हैं और उपरोक्त समझौते की शर्तों का उल्लंघन कर रहे हैं।
हालांकि उग्रवादी संगठनों के हाथ में सीमावर्ती चिन प्रदेश चले जाने के चलते और म्यांमार में भारतीय सामरिक हितों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार इन गुटों को नाराज करने से बच रही है और समझौते को स्थगित नहीं कर रही है, जबकि मणिपुर सरकार इससे हाथ खींच चुकी है। इस पूरे घटनाक्रम से मैतेयी समुदाय में असंतोष बढ़ता जा रहा है, क्योंकि हिंसक हमलों को अंजाम देने के बाद आतंकी इन सुरक्षित कैंपों में शरण ले लेते हैं।
चूंकि मणिपुर पुलिस और केंद्रीय अर्धसैनिक बल स्थिति को सौहार्दपूर्ण बनाने में सक्षम नहीं हो पा रहे हैं तो इससे भी असंतोष उपज रहा है। इसी कारण कुकी और मैतेयी समुदाय अलग-अलग सुरक्षा बलों की मांग कर रहे हैं। जहां कुकी असम राइफल्स की तैनाती चाहते हैं, वहीं मैतेयी सीआरपीएफ के पक्ष में हैं।
मणिपुर में चहुंओर विश्वास का संकट खड़ा हो गया है। इससे कई खतरे उत्पन्न होने की आशंका बढ़ी है। यह न भूला जाए कि मणिपुर में पहले से ही कई माओवादी मैतेयी उग्रवादी संगठन सक्रिय रहे हैं। मैतेयी समुदाय में नई दिल्ली के प्रति बढ़ते असंतोष का लाभ उठाकर वे चीन की सहायता से नए सिरे से अपने पैर पसार सकते हैं।
बांग्लादेश की सेना और खुफिया एजेंसी के चीन और पूर्वोत्तर में चीन द्वारा दशकों से हथियारबंद किए गए आतंकी संगठनों से पुराने रिश्ते रहे हैं। पूर्वोत्तर के तमाम आतंकी नेता अतीत में बांग्लादेश में शरण पा चुके हैं। ऐसे में आवश्यक है कि कम से कम कुछ कुकी उग्रवादी संगठनों के साथ समझौता रद कर बाकियों को कड़ा संदेश दिया जाए और उनसे समझौते की शर्तों का कड़ाई से पालन कराया जाए।
दोनों समुदायों की महिलाओं का सुरक्षा बलों के काम में बाधा डालना मणिपुर में एक नई समस्या बनकर उभरी है। ये महिलाएं सुरक्षा कर्मियों के साथ धक्कामुक्की करती हैं। उनका रास्ता रोकती हैं। हिंसक तत्वों की ढाल बनती हैं। सुरक्षा बल इन महिलाओं के सामने असहाय दिखते हैं, क्योंकि पुरुष सैनिकों द्वारा उन पर बल प्रयोग संभव नहीं है। ऐसे में आवश्यक है कि मणिपुर में महिला अर्धसैनिक बलों की भी तैनाती हो।
मणिपुर में सक्रिय हथियारबंद गुट चाहे वे किसी भी समुदाय के हों, उनका निशस्त्रीकरण भी आवश्यक हो गया है। वर्तमान के विषाक्त माहौल में यह बातचीत से संभव नहीं दिखता। ऐसे में आवश्यक है कि खालिस्तानी आतंकवाद के दौर में पंजाब में तमाम आतंकी गुटों के बलपूर्वक निशस्त्रीकरण के लिए चलाए गए सैन्य अभियान जैसा ही अभियान मणिपुर में भी चलाया जाए।
ऐसे किसी अभियान की सफलता के लिए अगर राष्ट्रपति शासन की आवश्यकता हो तो उससे भी संकोच नहीं किया जाए। मणिपुर दिल्ली से दूर अवश्य है, लेकिन वहां शांति और मजबूत पकड़ भारत के सामरिक हितों की रक्षा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। तब और भी, जब म्यांमार में अमेरिका और चीन की खुफिया एजेसियां एक बड़ा परोक्ष युद्ध लड़ रही हों।
(लेखक काउंसिल आफ स्ट्रैटेजिक अफेयर्स से संबद्ध सामरिक विश्लेषक हैं)