नई दिल्ली,[अभिषेक ]। भारतीय जनता पार्टी से जुड़े वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने बेतहाशा बढ़ती जनसंख्या पर चिंता जाहिर करते हुएसर्वोच्च न्यायलय में एकयाचिका दायर करके शादी की न्यूनतम आयुको बढ़ाए जाने की मांगकी है। वर्तमान में यह लड़कों के लिए 21 वर्ष और औरलड़कियों के लिए 18 वर्ष है। इसे बढ़ाकर लड़कों के लिए 25 और लड़कियों के लिए 21 वर्ष करने की मांग हो रही है। इसके अतिरिक्त याचिका में दो से ज्यादा बच्चों वाले व्यक्तियों को सरकारी नौकरियों तथा चुनावलड़ने से प्रतिबंधित करने की भी मांग की गई है। भारत में जनसंख्या को लेकर चिंता कोई नईबात नहीं है। आजादी के तुरंत बाद ही जनसंख्याको लेकर नीति बनाने की शुरुआत हो गई थी। वर्ष 1952 में जब भारत की जनसंख्या तकरीबन 37 करोड़ थी तब भारत शायद दुनिया का पहला ऐसा देश था जिसने जनसंख्या की स्थिरता के लिए एक राष्ट्रीय कार्यक्रम शुरूकिया था। मगर स्थिरता तो दूर 1951-1981 केदौर में भारत की जनसंख्या बेहद तेजी से बढ़ी।

जनसंख्या पर नियंत्रण लगाने में रहे नाकाम

1961 की जनगणना में हम 44 करोड़ तक पहुंच गए। अगले दो दशकों में भी जनसंख्या वृद्धि दर बढ़ती रही। 1961 से 1971 के बीच जहा ये 2.20 प्रतिशत रही। वहीं 1971 से 1981 केबीच अधिकतम 2.22 प्रतिशत रही। गौरतलब है कि 1971 से 1981 के बीच आपात काल का वह दौर भी आया था जब सरकारी स्तर पर जबरन नसबंदी करवाई गई थी। भारत मे 1901 से अब तक के जनसांख्यिकीय परिवर्तनोंको चार चरणों में विभाजित किया जाता रहा है। पहला 1901- 1921 का स्थिर जनसंख्याका चरण, 1921 से 1951 का संतुलित वृद्धिका चरण, फिर 1951 से 1981 का तीव्र वृद्धि या विस्फोट का चरण जिसके बारे में हम ऊपर चर्चा कर चुके हैं और आखिर में साल 1981के बाद का चरण जिसमें तीव्र वृद्धि तो हो रही है,मगर वृद्धि दर घटने के लक्षण भी दिखाई दे रहेहैं।

अगर उत्साहवर्धक आंकड़ों पर गौर करें तो जहां 1991 से 2001 के बीच जनसंख्या 21.5प्रतिशत बढ़ी। वहीं 2001 से 2011 के बीच वृद्धि सिर्फ 17.7 प्रतिशत की रही। कुल प्रजनन दर में भी लगातार कमी आई है। वर्ष 2013 मेंकिये गए सर्वे के अनुसार राष्ट्रीय स्तर पर कुल प्रजनन दर 2.3 की रही। इस बीच 24 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश तो स्थायी जनसंख्या केलिए जरूरी 2.1 प्रतिशत की कुल प्रजनन दर भी हासिल कर चुके हैं।वहीं इसका स्याह पक्ष यह है कि सरकार की लगातार कोशिशों के बावजूद जनसंख्या लगातार तेजी से बढ़ी है। ऐतिहासिक तौर पर देखें तो 1901 से लेकर अभी तक और 1911से 1921 के दशक को छोड़कर किसी भी दशक में भारत की जनसंख्या वृद्धि दर नहीं घटी है । आजादी के बाद के 70 वर्षों में हमारी जनसंख्यासाढ़े तीन गुने से भी ज्यादा बढ़ी है और आजहम सवा सौ करोड़ से भी ज्यादा हैं। भले हीविश्व के कुल क्षेत्रफल में हमारी हिस्सेदारी 2.4 प्रतिशत की है, लेकिन दुनिया की लगभग17 प्रतिशत आबादी भारत में रहती है।

2024 तक चीन से निकल जाएंगे आगे

संयुक्त राष्ट्र के आकलन के मुताबिक 2022 में भारत की जनसंख्या 141.9 करोड़ होगी और हम इसमामले में चीन को पछाड़कर दुनिया में सबसे बड़े देश बन जाएंगे।राष्ट्रीय जनसंख्या नीति, 2000 के अनुसार2010 तक पूरे देश की कुल प्रजनन दर 2.1होनी चाहिए थी, मगर अभी भी नौ राज्यों औरकेंद्र शासित प्रदेशों में यह दर 2.2 से तीन के बीच है। जनसंख्या के मामले में पहला औरतीसरा स्थान वाले राज्य उत्तर प्रदेश और बिहार तमाम प्रयासों के बावजूद स्थायी जनसंख्या प्राप्त करने में बहुत ही पीछे हैं। हालांकि 2001से 2011 के बीच उत्तर प्रदेश और बिहार कीजनसंख्या वृद्धि दर पिछले दशक यानी 1991-2001 के आंकड़ों 25.85 प्रतिशत और 28.62प्रतिशत से सिर्फ पांच और तीन प्रतिशत घटकर क्रमश: 20.09 और 25.07 प्रतिशत की रही। इसके अतिरिक्त कुल प्रजनन दर कम करने के मामले में भी इन दोनों राज्यों में कोई खास प्रगति नहीं देखी जा रही है।

प्रजनन दर में बिहार और यूपी आगे

बिहार अगर 3.4 प्रतिशत के कुल प्रजनन दर के साथ देश में अव्वल है तो वहीं उत्तर प्रदेश भी 3.1 के कुल प्रजनन दर के साथ कोई ज्यादा पीछे नहीं है। कुल प्रजनन दर कम करने की कोशिश 1980 के दशक से ही जारी है। 1983 में आई राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति में भी छोटे परिवार पर जोर दिया गयाथा। वर्तमान में अपने प्रयासों से केंद्र सरकार ने असम, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों तीव्र प्रजनन दर वाले 146 जिलों को चिन्हित किया है। इन सात राज्यों में भारत की 44.2प्रतिशत जनसंख्या बसती है। जनसंख्या नियंत्रण के लिए पहली बार अदालत से हस्तक्षेप करने की गुहार नहीं लगाई गई है।

बीते माह फरवरी में ही इस मसले पर चार अन्य जनहित याचिकाएं दायर हो चुकी हैं। अनुज सक्सेना, पृथ्वीराज चौहान और प्रिया शर्मा ने जहां बेरोजगारी, अशिक्षा, गरीबी,स्वास्थ्य और प्रदूषण के लिए जनसंख्या को जिम्मेदार बताया है तो वहीं अनुपम वाजपेयी ने बढ़ती जनसंख्या के कारण प्राकृतिक संसाधनों पर पड़ने वाले दबावों का मसला उठाया है। याचिकाकर्ताओं ने अदालत से यह गुजारिशकी है कि वह सरकार को इस बारे में एक ऐसी नीति बनाने को कहे जिसमे प्रोत्साहन के साथही साथ दंड का भी प्रावधान हो। जुलाई 2016 में एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुएदिल्ली हाईकोर्ट ने सरकार को याचिकाकर्ता के सुझावों पर गौर करने और उन पर उठाये गएकदमों की जानकारी याचिकाकर्ता को देने का निर्देश भी दिया था।

वैश्विक विशेष तौर पर चीन के अनुभवोंके आधार पर यह कहना गलत नहीं होगा कि जनसंख्या वृद्धि को रोकना कोई असंभव कार्य नहीं है। और अगर भारत में हम ऐसा नहीं कर पाए हैं तो उसके पीछे सिर्फ यही कारण है कि हम जनसंख्या की समस्या को हमेशा ही राजनीतिकचश्मे से देखते आए है जोकि एक बहुत बड़ी भूल है। आज जब हम अपनी कई ऐतिहासिक भूलों को सुधारने में लगे है तो ऐसे में अगर जनसंख्या नीति पर पुनर्विचार करते हुए अगर प्रोत्साहन के साथ-साथ दंडात्मक प्रावधानों को भी जोड़ा जाए तो यह निश्चित रूप से देश के बेहतर भविष्य के लिए महत्वपूर्ण कदम होगा।

(लेखक शोधार्थी हैं)