[ विवेक काटजू ]: पिछले तीन दशकों से पाकिस्तान प्रत्येक पांच फरवरी को कश्मीर एकता दिवस मनाता है। इस दिन पाकिस्तान में सार्वजनिक अवकाश होता है। पाकिस्तानी नेता भारत के खिलाफ जमकर जहर उगलते हैं। वे तथाकथित कश्मीर मुहिम के समर्थन में उल-जुलूल दलीलें देते हैं। ऐसे में कोई संदेह नहीं कि इस बार पांच फरवरी को होने वाले इस आयोजन में पाकिस्तानी दुष्प्रचार का पैमाना और भी बड़ा होगा। वह देश-विदेश में भारतीय नेतृत्व के खिलाफ विषवमन में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेगा। इसका कारण यह है कि गत वर्ष पांच अगस्त को मोदी सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर को लेकर उठाए गए ऐतिहासिक कदमों के बाद से पाकिस्तान की बेचैनी और बढ़ गई है।

पाक का संकेत, कश्मीर में संवैधानिक बदलावों को वापस लिया जाए

पाकिस्तानी नेताओं-अधिकारियों और सिविल सोसाइटी के बयानों को देखकर भी इसका अंदाजा लगाया जा सकता है जो अनौपचारिक बैठकों में इसके संकेत दे रहे हैं। अपेक्षाकृत संयत पाकिस्तानी भी यह कह रहे हैं कि कश्मीर में पांच अगस्त से पहले की स्थिति की बहाली से कम कुछ और पाक को संतुष्ट नहीं कर पाएगा। वे कश्मीर में मानवाधिकारों के कथित उल्लंघनों का मामला भी उठा रहे हैं, पर उनकी प्रमुख मांग यही है कि संवैधानिक बदलावों को वापस लिया जाए। उनका यह भी कहना है कि भारत-पाक में कोई वार्ता या द्विपक्षीय संबंध तब तक सामान्य नहीं हो सकते जब तक जम्मू-कश्मीर और लद्दाख की स्थिति यथावत रहेगी। यह तब है जब पाकिस्तान इससे परिचित है कि उसकी ये मांगें अव्यावहारिक हैं और इनका भारत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

भारत तब तक कोई वार्ता नहीं करेगा जब तक पाक आतंकियों के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाता

वह नई दिल्ली की इस मांग से भी वाकिफ है कि भारत तब तक कोई वार्ता नहीं करेगा जब तक पाकिस्तान उसके खिलाफ आतंक की नीति का इस्तेमाल करना बंद नहीं करता। पाकिस्तान की ओर से ऐसे कोई कदम उठाने के संकेत नहीं मिलते। आखिर पाकिस्तान ऐसा अनुचित रवैया क्यों अख्तियार किए हुए है?

1947 से ही पाक कश्मीर को लेकर बहुत आसक्त रहा

वर्ष 1947 में अपने अस्तित्व में आने के बाद से ही पाकिस्तान कश्मीर को लेकर बहुत आसक्त रहा है। आसक्ति एक प्रकार की मानसिक व्याधि है। यह जिसके भीतर पनपती है उसका अहित ही करती है। पाकिस्तान के मामले में यह प्रत्यक्ष दिखता है। इसका नतीजा यह रहा कि पाकिस्तान कश्मीर को लेकर सही रवैया नहीं अपना पाया और वह उसके बिना खुद को अधूरा मानता रहा।

आसक्ति के इस उन्माद ने पाकिस्तान का ही बेड़ा गर्क किया

आसक्ति के इस उन्माद ने पाकिस्तान का ही बेड़ा गर्क किया। कश्मीरी लोगों को भी इससे परेशानी हुई, लेकिन पाकिस्तान कश्मीर में यथास्थिति को बदलने के लिए हर तिकड़म आजमाने से बाज नहीं आया। आजादी के तुरंत बाद उसने बाहुबल आजमाया। फिर सीधी जंग लड़ीं। जब उनमें भी नाकामी हाथ लगी तो 1990 से वह आतंकवाद के जरिये परोक्ष युद्ध थोपने पर आमादा हो गया। बार-बार मुंह की खाने के बावजूद पाकिस्तान को अक्ल नहीं आई कि वह वास्तविकता को स्वीकार करे। इसके बजाय वह इसी मुगालते में रहा कि उसे कामयाबी मिल जाएगी।

वह कश्मीर और जम्मू के मुस्लिम बहुल इलाकों का पाकिस्तान में विलय चाहता

भले ही पाकिस्तान चाहता है कि कश्मीरी संयुक्त राष्ट्र के फैसले के अनुसार अपने भविष्य का निर्णय करें, लेकिन इसके पीछे उसकी कुत्सित मंशा कभी छिपी नहीं रही। वह कश्मीर और जम्मू के मुस्लिम बहुल इलाकों का पाकिस्तान में विलय चाहता है।

महाराजा हरी सिंह ने विलय संधि पर हस्ताक्षर कर यह राज्य भारत का हिस्सा बना

यह वही फार्मूला है जिसके आधार पर 1947 में भारत का विभाजन हुआ था। यह असंगत आधार भारतीय रियासतों पर लागू नहीं था। तब हैदराबाद के बाद जम्मू-कश्मीर सबसे बड़ी रियासत थी। उसके महाराजा हरी सिंह ने भारतीय संघ के साथ विलय संधि पर हस्ताक्षर किए और यह राज्य भारत का हिस्सा बना। कश्मीरी अवाम की राय लेने के मकसद से कश्मीर संविधान सभा बनी और उसने भी इस विलय पर मुहर लगाई। संयुक्त राष्ट्र के जनमत संग्र्रह का मामला अलग मसला है।

अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी कश्मीर मुद्दे को भारत-पाक के बीच द्विपक्षीय मसला मानता

पाकिस्तान ने कभी जनमत संग्रह के लिए उचित परिवेश नहीं बनने दिया और अब वह प्रस्ताव ही इतिहास के पन्नों में दफन हो गया है। इसी कारण संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अधिकांश सदस्य 5 अगस्त को उठाए भारत के कदमों पर चर्चा तक के लिए तैयार नहीं हुए। अब अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी कश्मीर मुद्दे को भारत-पाक के बीच एक द्विपक्षीय मसला मानता है।

नेताओं की नजरबंदी और प्रतिबंधित संचार सेवाएं चिंता का विषय

हालांकि नेताओं की नजरबंदी और प्रतिबंधित संचार सेवाएं, जिनमें चरणबद्ध ढंग से ढील भी दी जा रही हैं, अवश्य चिंता का विषय हैं, लेकिन ये मुद्दे पूरी तरह संवैधानिक बदलावों से इतर हैं। पाकिस्तान खासतौर से जम्मू-कश्मीर राज्य का विशेष दर्जा खत्म करने को लेकर भारत से कुपित है, क्योंकि इससे कश्मीर में उसके लिए बची-खुची संभावनाएं भी पूरी तरह खत्म हो गई हैं।

पाक 50 सालों से कश्मीर पर खयाली पुलाव पकाता रहा, मंसूबे चकनाचूर देख बिलबिला रहा

हालांकि बीते 50 सालों में भारत ने बार-बार यह दोहराया कि वह अपनी एक इंच जमीन के साथ भी समझौता नहीं करेगा, फिर भी पाकिस्तान खयाली पुलाव पकाता रहा। अब वह अपने मंसूबे चकनाचूर होते देख बिलबिला रहा है। उसका दर्द लगातार बढ़ रहा है, फिर भी वह वास्तविकता स्वीकार करने को राजी नहीं और भारत एवं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ अपनी भड़ास निकाल रहा है। उसने दो देशों एवं सरकारों के बीच कायम रहने वाले सामान्य शिष्टाचार को भी ताक पर रख दिया है।

इमरान दुष्प्रचार करने में जुटे कि भारत फासीवादी देश बनता जा रहा

पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान मोदी पर निजी हमले कर रहे हैं। वह यह दुष्प्रचार करने में भी जुटे हैं कि भारत फासीवादी देश बनता जा रहा है। इमरान खान के बयानों को नजरअंदाज करने वाली मोदी सरकार उस स्तर तक नहीं गई है। यह उचित ही है कि मोदी इमरान की बातों का जवाब नहीं दे रहे हैं। दरअसल अंतरराष्ट्रीय समुदाय पाकिस्तान और इमरान खान के ऐसे अशिष्ट व्यवहार को देख रहा है। इससे इमरान की ही फजीहत हो रही है।

पाक देगा भारत को कड़ा जवाब, सेवानिवृत्त अधिकारियों की चेतावनी

अनौपचारिक वार्ताओं में पाकिस्तान के कुछ सेवानिवृत्त अधिकारी अपने भारतीय समकक्षों को चेता रहे हैं कि उनका देश भारत के कदमों का कड़ा जवाब देगा। हालांकि वे यह नहीं बता रहे कि पाकिस्तान क्या करेगा।

पाकिस्तान के तरकश में हैं और भी कुछ तीर

उनके बयानों का यही अर्थ है कि उसके तरकश में और भी कुछ तीर हैं। एक दुस्साहस तो यही हो सकता है कि पाक कश्मीर और देश के अन्य इलाकों में आतंकी गतिविधियां बढ़ाए। वह जानता है कि इससे अंतरराष्ट्रीय आतंक के केंद्र के रूप में वह और कुख्यात ही होगा। ऐसे दौर में जब वह ऐसी छवि से पीछा छुड़ाना चाह रहा है तो यह रणनीति उस पर ही भारी पड़ेगी। हालांकि विकल्पहीनता की स्थिति में वह इसका आसरा भी ले सकता है। ऐसे में भारतीय प्रतिरक्षा प्रतिष्ठान को चौकन्ना रहना होगा।

( लेखक विदेश मंत्रालय में सचिव रहे हैं )