[अरविंद कुमार सिंह]। भारत में कई राज्यों में सर्दी के मौसम में भी टिड्डी दलों के हमलों ने वैज्ञानिकों को हैरत में डाल दिया है। जलवायु परिवर्तन से जीव-जंतुओं के व्यवहार में भी बदलाव आना चिंता की बात है। जनवरी और फरवरी तक टिड्डियों का प्रकोप बने रहने को इस कारण से जोड़ कर देखा जा रहा है। अभी भी भारत और पाकिस्तान में कई क्षेत्रों में खेती-बाड़ी पर टिड्डी दलों का हमला देखा जा सकता है। टिड्डी दलों के हमले की सबसे चिंताजनक बात यह रही कि वे कड़ाके की सर्दी के दौरान भी कहर बरपाती रहीं। इस बार वे मई के बाद से अब तक इतने लंबे समय तक कैसे सक्रिय रहीं, इसकी पड़ताल जारी है।

हाल ही में बीकानेर के भारतीय जनता पार्टी के विधायक बिहारी लाल राजस्थान विधानसभा में टिड्डियों से भरी टोकरी के साथ सदन का ध्यान दिलाने पहुंचे तो यह समस्या मीडिया की सुर्खियां बनी। वहीं संसद में भी इस मसले पर सवाल-जवाब का दौर जुलाई 2019 से ही आरंभ हो गया था। राज्यसभा में 26 जुलाई 2019 को केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने एक सवाल के जवाब में माना था कि जैसलमेर इलाके में 21 मई 2019 से रेगिस्तानी टिड्डी दलों का आक्रमण हुआ और बाद में इसका कई जिलों में विस्तार हुआ। तबसे उनकी मौजूदगी लगातार बनी रही और गुजरात के बाद वे पंजाब और हरियाणा की सीमा तक आ पहुंचीं।

टिड्डी दलों के हमले के बाद से ही भारत सरकार और गुजरात तथा राजस्थान की राज्य सरकारें सक्रिय रहीं, लेकिन उनके एक के बाद एक हमले होते रहे। गुजरात में बीते मानसून के सीजन में बारिश देरी से हुई, जबकि राजस्थान जहां टिड्डियां सक्रिय थीं, वहां का मौसम ठंडा हो गया तो वहां से टिड्डियां अपेक्षाकृत गुजरात के गरम इलाकों में चली गईं और कई जिलों में फसलों को भारी नुकसान पहुंचाया। मई 2019 में जब पाकिस्तान की तरफ से आए टिड्डी दलों ने खेती पर पहला धावा बोला तो अफसरों और किसानों को हैरत नहीं हुई। लेकिन कुछ समय बाद यह बात समझ में आ गई कि यह हमला 1993 से भी बड़ा है। धीरे-धीरे इसका दायरा बढ़ने लगा और ये फसलों को भारी नुकसान पहुंचाने लगीं।

हालांकि जुलाई 2019 के दौरान खाद्य और कृषि संगठन ने चेतावनी जारी करते हुए कहा था कि इनका प्रकोप नवंबर महीने तक रहेगा। लेकिन 14 दिसंबर 2019 के बाद गुजरात के पांच जिलों में टिड्डी दलों ने जब भारी तबाही मचाना शुरू किया तो सबका चौंकना स्वाभाविक था। टिड्डी दलों को समाप्त करने के लिए मैलाथियान का छिड़काव हुआ, लेकिन हालत सुधरी नहीं और ये पंजाब के मालवा इलाके तक अपनी मौजूदगी दिखाने लगीं। राजस्थान में एक दर्जन जिलों में पिछले नौ महीनों तक सात लाख हेक्टेयर से अधिक भू-भाग पर फसलों को भारी नुकसान इन्होंने पहुंचाया। हालांकि राजस्थान में पौने चार लाख हेक्टेयर इलाके में दवाओं का छिड़काव भी हुआ। सरकार ने पाकिस्तान के कृषि विभाग के साथ भी पांच बार बैठकें कीं। इस संकट को लेकर पाकिस्तान में तो राष्ट्रीय आपदा तक घोषित कर दी गई। वहां भी यह पहला मौका है जब सिंध और पंजाब के बाद खैबर पख्तून तक में टिड्डियों का दल पहुंच गया।

वर्ष 1993 में हुआ था खतरनाक हमला : इसके पहले सबसे खतरनाक हमला सितंबर-अक्टूबर 1993 में हुआ था। इस बार का हमला उससे भी भयावह है। हालांकि वर्ष 1993 में अक्टूबर में उनका प्रकोप समाप्त हो गया था, जबकि इस बार वे नौ महीने तक आतंक फैलाती रहीं। वैसे वर्ष 1993 में राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, हरियाणा और पंजाब ही नहीं, उत्तर प्रदेश के भी कुछ हिस्सों में इन टिड्डी दलों ने नुकसान पहुंचाया था। टिड्डी चेतावनी संगठन कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के तहत आता है। संगठन कृषि और खाद्य संगठन के साथ अन्य देशों से भी जुड़ा है और टिड्डी दलों की स्थिति की अद्यतन जानकारी रखता है। कृषि मंत्रालय ने टिड्डी दलों से बचाव के लिए राजस्थान में आठ और गुजरात में दो टिड्डी परिमंडल कार्यालय बनाया हुआ है जिनका नियंत्रण जोधपुर में टिड्डी चेतावनी संगठन के हाथ है।

दुनिया भर में टिड्डियों की दस प्रजातियों में से चार रेगिस्तानी टिड्डी, प्रवासी, बॉम्बे और ट्री टिड्डी भारत में गाहे-बगाहे दिखती हैं। टिड्डी दल सामान्यतया एक दिन में 70 से 80 किलोमीटर की दूरी तय करते हैं। उनका छोटा दल भी दिन भर में दस हाथियों के खाने के बराबर फसलों का नुकसान कर देता है। भारत में टिड्डी चेतावनी संगठन की स्थापना 1946 में की गई। उसके पहले 1926 से 1931 के दौरान टिड्डियों से करीब दस करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था।

[वरिष्ठ पत्रकार ]