[रंजन मुखर्जी]। पिछले कुछ समय से भारत के साथसाथ अन्य देशों में भी इस्लाम को लेकर सवाल बढ़ते जा रहे हैं। चंद कट्टरपंथी मुसलमानों के कारण इस्लाम शांति, भाईचारे एवं सौहार्दपूर्ण मजहब की छवि से दूर होता जा रहा है। कुछ लोग अपनी गलत सोच और विचारधारा को हावी करने पर तुले हुए हैं और समग्र कौम को बदनाम कर रहे हैं। हाल ही में श्रीलंका में एक चर्च पर आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (आइएसआइएस) द्वारा किए गए बम धमाके के बाद वहां की सरकार ने तीन अहम फैसले लिए हैं। पहला, पूरे देश में बुर्के पर बैन लगाना। दूसरा, कट्टरता का प्रसार करने मौलवियों पर अंकुश लगाना और तीसरा, जिहाद को बढ़ावा देने वाली वहाबी विचारधारा पर अंकुश लगाना। 

आजकल सोशल मीडिया में बहुत सारे वीडियो प्रसारित हो रहे हैं, जिनमें दिखाया जा रहा है कि तमाम असहाय मुसलमान बोरिया-बिस्तर बांधकर अपने परिवारजनों के साथ दुखी मन से श्रीलंका से विदा हो रहे हैं। हालांकि ये सब दिखाना सही नहीं है, क्योंकि इसे देखने के बाद किसी के मन में बदला लेने की भावना पैदा हो सकती है। लेकिन, जरा सोचिए कि इसके पीछे की वजह क्या है? इस्लाम की एक गलत व्याख्या के कारण कट्टरपंथ को दुनिया भर में प्रसारित किया जा रहा है। विगत तीन दशकों से ऐसे लोग लगातार अपना दायरा बढ़ाते जा रहे हैं, जो लोगों को अपने धर्म की रक्षा के लिए हथियार उठाने की शिक्षा देते हैं। जन्नत प्राप्ति के झूठे सपने दिखाकर नौजवानों को धर्म के नाम पर गलत रास्ते पर ले जाया जा रहा है। इस प्रक्रिया को बेहतर तरीके से समझने के लिए पहले इस विषय को जानना जरूरी है।

भारत में युगों से सूफी इस्लाम
दरअसल परंपरागत रूप से भारत में इस्लाम को मानने वाले लोग युगों से सूफी इस्लाम को ही मानते आए हैं और अधिकांश मुस्लिम भारत में सूफी इस्लाम को अपनाए हुए थे। जम्मूकश्मीर के भी ज्यादातर लोग सूफी इस्लाम यानी शांति, भाईचारे और सौहार्दपूर्ण तरीके से जीवन-यापन करने के पक्षधर रहे हैं। हालांकि विगत करीब 700 वर्षों से कश्मीर में सात बार बाहरी आक्रांताओं ने आक्रमण किया, इसके बावजूद सूफी परंपरा जारी रही। पिछली सदी के आखिरी दो दशकों में इसको बदलने के लिए व्यापक तरीके से प्रयास आरंभ किया गया और कुछ पैसों की खातिर निजी स्वार्थ के कारण कुछ लोग, मजहबी नेता कट्टरपंथ की तरफ भारत के मुसलमानों को धकेलते रहे। मदरसों में शिक्षा के नाम पर नियमित रूप से उनका ब्रेनवॉश होता रहा और कुछ मस्जिदों से मौलवियों द्वारा लोगों को भड़काऊ बयानों के जरिये उन्हें भड़काने का काम किया गया, जिसका नतीजा आज हमारे सामने है। वहाबी मुसलमानों की संख्या बढ़ती रही और सूफी घटते रहे।

एक गलत सोच और माहौल ने समाज में लोगों को बांटने का काम किया है, साथ ही भाईचारा कम होता रहा। इससे चंद लोगों को तो लाभ मिलता रहा, लेकिन इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि देश हारता रहा। याद कीजिए, आज से दो-ढाई दशक पहले गांवों और कस्बों में, शहरों के मोहल्लों में एक सौहार्दपूर्ण परिवेश होता था और सभी धर्मों के लोग विशेषत: हिंदू और मुसलमान एक होकर जीवन-यापन करते थे। एक-दूसरे के त्योहार मनाते थे या उसमें शामिल होते थे। उस समय यह पता नहीं चलता था कि कौन किस मजहब का है।

आज हालात अलग हैं। कपड़े और पोशाक से भी हम समाज को बांटने का काम कर रहे हैं। पश्चिम बंगाल, असम और दक्षिण भारत में मुस्लिम महिलाओं के लिए बुर्का पहनना कभी जरूरी नहीं था, लेकिन कट्टरपंथी मुसलमानों ने जबरदस्ती की और पिछले लगभग दो दशकों में परिणाम ये हुआ कि ज्यादातर मुस्लिम महिलाएं बुर्का पहनने लगी हैं। उष्णकटिबंधीय देश होने के कारण विशेषकर पश्चिम बंगाल, असम और दक्षिण भारत में पसीना ज्यादा आता है और धूल-मिट्टी से हालात और भी कष्टदायक हो जाते हैं। इस कारण बुर्के का प्रचलन कदापि इन जगहों पर नहीं था, लेकिन कट्टरपंथ की महिमा देखिए, परेशानियों के बावजूद न चाहते हुए भी लोगों को इसे अपनाना पड़ा।

विगत कुछ वर्षों से जम्मू-कश्मीर में कभीकभार आइएस के काले झंडे या पाकिस्तानी झंडे को लहराते हुए देखा गया, लेकिन आज देश के कई अन्य हिस्सों में भी कुछ कट्टरपंथी तत्व आइएस या फिर पाकिस्तान का झंडा फहराने में गुरेज नहीं करते। ऐसी कट्टरपंथ ताकतों को रोकने की एकमात्र औषधि है उनका सख्ती से मुकाबला करना। ऐसे लोगों को जेल के पीछे ही भेज देना सही है, क्योंकि देश की सुरक्षा और संप्रभुता सर्वोपरि है और जो उसे चुनौती देगा, शांतिभंग करने की कोशिश करेगा उसे कड़ी से कड़ी सजा मिलनी ही चाहिए। कट्टरपंथ से सख्ती के साथ मुकाबला करने का समय आ गया है।

श्रीलंका द्वारा निर्धारित की गई नीति को भारत को भी अपने तरीके से लागू करना होगा। अगर दहशतगर्दों से सही ढंग से निपटना है तो कट्टरपंथ को हावी नहीं होने देना है। उसे रोकना जरूरी हो गया है। मस्जिद इबादत की जगह है, न कि कट्टरपंथ फैलाने का स्थल। मदरसा पढ़ाई की जगह है, न कि आतंकवादी पैदा करने का स्थान। जहां भी ऐसा हो रहा है वहां तुरंत सख्ती से कार्रवाई होनी चाहिए। हमारी खुफिया एजेंसियों और पुलिस को सब पता रहता है, लेकिन विभिन्न दबाव के कारण सही दिशा में कोई कठोर कार्रवाई नहीं हो पाती है।

श्रीलंका में बीते दिनों आतंकवादियों द्वारा किए गए बम धमाकों में 350 से अधिक लोगों के मारे जाने के बाद वहां की सरकार ने आतंकवाद को पूरी तरह से कुचलने के लिए वहां मौजूद इस्लामिक चरमपंथियों पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। हालांकि वैश्विक आतंकवाद को खत्म करने की दिशा में भी यह अच्छा प्रयास कहा जा सकता है, लेकिन इससे भारत को भी सीख लेनी होगी और आतंक को काबू में करने के लिए कड़े कदम उठाने होंगे। श्रीलंका से बाहर किए जा रहे चरमपंथी किस देश का रुख कर रहे हैं, इस पर भी नजर बनाए रखने की आवश्यकता है, क्योंकि भारत उसके पड़ोस में है।

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