दिव्य कुमार सोती। पाकिस्तान में बलूचिस्तान और पश्तून इलाकों में तो वर्षों से विप्लव का दौर चल रहा था, पर अब उसके अवैध कब्जे वाला गुलाम जम्मू-कश्मीर भी आक्रोश-असंतोष से अछूता नहीं है। गुलाम जम्मू-कश्मीर में बढ़ती महंगाई, बिजली-पानी के अभाव और प्राकृतिक संसाधनों की इस्लामाबाद द्वारा की जा रही लूट को लेकर आक्रोश तब चरम पर पहुंच गया, जब एक स्थानीय प्रभावशाली सामाजिक संगठन अवामी एक्शन कमेटी ने इन मुद्दों को लेकर गुलाम जम्मू-कश्मीर की राजधानी मुजफ्फराबाद की ओर कूच करने की घोषणा कर दी।

इस मार्च को भारी जनसमर्थन मिला और प्रदर्शनकारियों और पुलिस में भारी झड़पों के चलते पाकिस्तान सरकार को पाक रेंजर्स और फौज को भी सड़कों पर उतारना पड़ा। इस हिंसा में चार लोगों की मौत हो गई और दर्जनों लोग घायल हुए, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे। मामला इतना बिगड़ गया कि प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ को हस्तक्षेप करना पड़ा और प्रदर्शनकारियों की अधिकतर मांगें माननी पड़ीं, जिनमें आटे की प्रत्येक बोरी पर 2,100 पाकिस्तानी रुपये की सब्सिडी देने का वादा भी शामिल है।

चूंकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस विरोध-प्रदर्शन को लेकर पाकिस्तान की छीछालेदर हो रही है तो इससे बचने के लिए उसने गुलाम जम्मू-कश्मीर में स्थित मंगला और नीलम-झेलम बिजली परियोजनाओं से सस्ती बिजली भी इस क्षेत्र को मुहैया कराने और यहां के संसाधन भी वहीं लगाने जैसे आश्वासन दिए। हालांकि पाकिस्तान के मूल चरित्र और उसकी वित्तीय स्थिति को देखते हुए ये सब वादे शायद ही कभी पूरे किए जाएंगे।

यदि ये वादे पूरे नहीं हुए तो भविष्य में गुलाम जम्मू-कश्मीर में इस्लामाबाद के प्रति असंतोष और बढ़ना तय है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या भविष्य में यह नागरिक असंतोष पाकिस्तान से अलगाववाद की प्रवृत्ति में भी बदल सकता है? और क्या मौका मिलने पर गुलाम जम्मू-कश्मीर को भारत में शामिल किया जा सकता है? यदि हां तो क्या ऐसा करना युक्तियुक्त होगा? गुलाम जम्मू-कश्मीर को पाक अधिकृत गिलगित-बाल्टिस्तान से अलग करके देखने की आवश्यकता है। गुलाम जम्मू-कश्मीर भारत की स्वतंत्रता और पाकिस्तान के साथ कश्मीर को लेकर 1947 में हुए पहले युद्ध से बहुत पहले से इस्लामिक कट्टरपंथ का गढ़ रहा है।

इस इलाके में मीरपुरी मुसलमानों की बहुतायत है, जो कश्मीरी भाषी नहीं हैं। मीरपुरी मुस्लिम समाज इस्लामिक कट्टरपंथ में प्रभावित रहा है और पाकिस्तान के जम्मू-कश्मीर पर पहले हमले के समय मीरपुरी मुसलमानों ने वहां रहने वाले हजारों हिंदुओं और सिखों की हत्या कर दी थी। बाकी बचे लोगों को भारत में शरण लेनी पड़ी थी। मीरपुरी मुसलमानों का आइएसआइ द्वारा स्थापित वैश्विक जिहाद कांप्लेक्स में भी बड़ा योगदान रहा है। भारत में हुए अधिकांश आत्मघाती आतंकी हमलों में मीरपुरी और पंजाबी मुसलमान आतंकी ही शामिल रहे हैं।

मीरपुरी समाज में कट्टरपंथ कितनी गहरी जड़ें जमा चुका है, इसका अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि ब्रिटेन जाकर बसे मीरपुरी मुसलमानों ने ही 7 जुलाई, 2005 के लंदन बम धमाकों को अंजाम दिया था, जिसमें 56 लोग मारे गए थे और 784 लोग घायल हुए थे। भारत की धरती पर किसी यूरोपीय व्यक्ति द्वारा आत्मघाती आतंकी हमला करने के एकमात्र मामले का भी मीरपुरी कनेक्शन रहा है। ब्रिटेन के बर्मिंघम में पैदा हुए मीरपुरी मुस्लिम अब्दुल्ला ने बीच श्रीनगर में खुद को बम से उड़ा दिया था। रा के पूर्व अधिकारी और आतंकवाद निरोधक मामलों के विशेषज्ञ बी. रमन ने लिखा था कि मीरपुरी मुसलमान भारत के विरुद्ध जिहादी कार्रवाइयों में हिस्सा लेने में सबसे आगे रहे हैं।

यह भी ध्यान देने योग्य है कि जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तयबा और हिजबुल मुजाहिदीन जैसे तमाम आतंकी संगठनों के कैंप दशकों से इस इलाके में सक्रिय रहे हैं और ये आतंकी गुलाम जम्मू-कश्मीर के मीरपुरी समाज में घुले-मिले हैं। ऐसे में 40 लाख की घनी आबादी वाली इस पट्टी को भारत में शामिल करना और मुख्यधारा से जोड़ पाना बहुत बड़ा सिरदर्द साबित हो सकता है, क्योंकि सदियों का कट्टरपंथ कुछ सालों में समाप्त नहीं होने वाला है। दूसरी समस्या यह है कि पाकिस्तान के कब्जे वाले इस क्षेत्र को बिना सैन्य कार्रवाई के भारत में शामिल नहीं किया जा सकता।

यदि नागरिक असंतोष बहुत अधिक बढ़ भी जाए तो भी पाकिस्तानी फौज इस इलाके को हाथ से जाने नहीं देगी और पाकिस्तान से मुक्त कराने के लिए भारत को अंततोगत्वा 1971 में बांग्लादेश के मामले की तरह ही सैन्य हस्तक्षेप करना ही पड़ेगा। हालांकि इस इलाके के पहाड़ी भूगोल के चलते यह लंबे छापामार संघर्ष में बदल सकता है। साथ ही इस युद्ध में चीन द्वारा भी मोर्चा खोले जाने की आशंका को नकारा नहीं जा सकता। अनुच्छेद-370 हटाए जाने और जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख के संवैधानिक दर्जे में परिवर्तन मात्र ने ही चीन की सेना को पूर्वी लद्दाख में ला खड़ा किया है।

अगर भारत गुलाम जम्मू-कश्मीर के हिस्सों को अपने नियंत्रण में लेता है तो चीन का सैन्य हस्तक्षेप अवश्य होगा, क्योंकि अमेरिका के साथ किसी भावी युद्ध में चीन के आपूर्ति मार्ग पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर के इन हिस्सों से होकर जाते हैं और वह उनमें अरबों डालर निवेश कर चुका है। ऐसे में अच्छा यह होगा कि भारत मौका आने पर त्वरित सैन्य कार्रवाई कर हाजी पीर दर्रे जैसे सामरिक इलाकों को नियंत्रण में ले, जिनके जरिये पाकिस्तान भारत में आतंकी घुसपैठ कराता है। इससे जम्मू-कश्मीर में आतंकी घुसपैठ लगभग बंद हो जाएगी और भविष्य के किसी बड़े सैन्य संघर्ष में भारत की स्थिति मजबूत होगी। साथ ही, भारत पर नई जनसंख्या का भार भी नहीं आएगा।

मीरपुर जैसे क्षेत्रों की जिहादी विचारधारा से ओतप्रोत आबादी को पाकिस्तान के कुशासन में तब तक रहने दिया जाना चाहिए, जब तक वे स्वयं आत्ममंथन कर इस जहरीली विचारधारा को नकारते हुए न दिखें। हां, तब तक भारत को गुलाम जम्मू-कश्मीर में हो रहे मानवाधिकार उल्लंघनों पर अवश्य आवाज उठाते रहना चाहिए, क्योंकि तकनीकी रूप से वह हमारी ही भूमि है। इसके लिए जम्मू-कश्मीर विधानसभा में इस क्षेत्र की खाली पड़ी सीटों में से कुछ पर विधायक भी नामित किए जा सकते हैं, जिन्होंने पाकिस्तान के अत्याचारों से त्रस्त होकर भारत से शरण मांगी हो। यह कश्मीर को लेकर पाकिस्तान द्वारा अंतरराष्ट्रीय मंचों पर किए जाने वाले प्रोपेगंडा की सही काट साबित होगा।

(लेखक काउंसिल आफ स्ट्रैटेजिक अफेयर्स से संबद्ध सामरिक विश्लेषक हैं)