नई दिल्ली,[कपिल अग्रवाल]। देश में जनसंख्या वृद्धि की समस्या दिन प्रति दिन गंभीर होती जा रही है। दरअसल जनसंख्या नियंत्रण इतना मुश्किल काम नहीं है जितना लगता है। चीन व जापान समेत विश्व के तमाम देश सफलतापूर्वकअपनी आबादी पर नियंत्रण रखे हुए हैं और ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस व स्विट्जरलैंड जैसेदेशों में तो खाली क्षेत्रफल बहुत ज्यादा हैऔर आबादी बहुत कम। इन देशों की कुल आबादी उत्तर प्रदेश से भी बहुतकम है। एक समय चीन की आबादी काबू के बाहर हो गईथी, लेकिन उसने बहुत कड़ाई से एक दंपती एक बच्चा नीति अपनाकर हालात काबू मेंकर लिए। अपने देश में भी ऐसा हो सकता है बशर्ते उचित नियम कानून बनाकर बहुत कड़ाई से उनका अनिवार्य रूप से क्रियान्वयन किया जाए, परंतु इसके लिए धर्म व राजनीति को दरकिनार कर दृढ़ इच्छाशक्ति की जरूरतहै जो हमारे राजनेताओं में नहीं है।

जनसंख्या और सरकारी नीति

जनसंख्या नियंत्रण के लिए हमें चीन का अनुसरण करना होगा जिसने बेहद कड़ाई से इसका समाधान निकाला। इसके तहत एक से ज्यादा संतान होने पर दंपती को नौकरी से लेकर बैंक आदि समस्त सरकारी सुविधाओं से वंचित कर दिया जाता है। दूसरी संतान देशभर में कहीं भी शिक्षा तक नहीं ले सकती थीऔर ये नियम मुस्लिम समेत सभी मजहबों परसमान रूप से लागू किए गए थे। इससे पिछले डेढ़ दशक के दौरान चीन की आबादी में कमी तो नहीं आई, लेकिन वृद्धि की रफ्तार थमी है। संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक एवं सामाजिक मामलों के विभाग द्वारा जून, 2017 में जारी 25वीं रिपोर्ट में बताया गया है कि वैश्विकआबादी में भारत व चीन की संयुक्त हिस्सेदारी 37 फीसदी है और नाइजीरिया, इंडोनेशिया,कांगो के अलावा पाकिस्तान व अमेरिकातेजी से अपनी आबादी बढ़ा रहे हैं। विभाग के मुताबिक यदि स्थिति को नियंत्रित नहीं किया गया और युद्धस्तरीय उपाय नहीं किए गए तो वर्ष 2050 तक हालात विस्फोटक हो सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में यह कूवत है कि वह देश को इस गंभीर समस्या से निजात दिला सकते हैं। ठीक वैसे ही जैसे उन्होंने रसोई गैस के मामले में किया।

सामाजिक अभियान की जरूरत

असल में इसके लिए बहुत व्यापक स्तर पर सामाजिक जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है। इसका दूसरा रास्ता वही है कि चीन की राह पर चला जाए।प्रधानमंत्री मोदी को अपनी साख औरअच्छी छवि का लाभ उठाते हुए जनता का आह्वान करना चाहिए कि वह राष्ट्र हित में को काबू में करने के लिए सहयोगजा सकता है और एक करे। इसके लिए बाकायदा कानून भी बनाया से ज्यादा बच्चों वालेदंपतियों की सुविधाओं में कटौती की जाएगी।साथ ही हमारे समाज में लिंगभेद को लेकर भी नई सोच का भाव विकसित करना होगा,क्योंकि अक्सर देखा जाता है कि पुत्र की चाह में दंपती लगातार संतानोत्पत्ति में लगे रहते हैं।आबादी व जनसंख्या से जुड़ी एक समस्या और भी है जिसका निदान सिर्फ सरकार ही कर सकती है। देश में आबादी का घनत्व कहीं जरूरत से ज्यादा है और कहीं बहुत कम। जैसे सिक्किम, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश केअलावा मध्य प्रदेश के बीहड़ व आदिवासी इलाकों में आबादी बहुत कम है।

जनसंख्या का स्थांतरण हो सकता है विकल्प

रोजगार की व्यवस्था कर बहुत ज्यादा आबादी वाले महानगरों व प्रदेशों से आबादी कम आबादीवाले क्षेत्रों में स्थानांतरित की जा सकती है।इस विषमता को दूर कर जनसंख्या वृद्धि केदुष्प्रभावों को कम किया जा सकता है।देश की आबादी घटाने व उसको नियंत्रितकरने में एक और कठिन कदम सरकार को उठाना होगा और वह है शरणार्थी के रूपमें बसी करोड़ों की आबादी को चिन्हितकर देश से विदा करना। असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, मणिपुर आदि ग्यारह से भी अधिक राज्यों की सकल जनसंख्या में शरणार्थियों की भागीदारी चालीस से तिहत्तर फीसदी हो चुकी है। इनकी पहचान करना नामुमकिन है। कोई अधिकारिक आंकड़े तो उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन अनुमान है कि देशभर में इनकी संख्या अब आठ करोड़ से भी ज्यादा हो चुकी है!

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)