[ रामिश सिद्दीकी ]: इंसान अनंत काल तक शांति की अवस्था में रह सकता है, लेकिन हमेशा संघर्ष और टकराव की स्थिति में रहना उसके लिए असंभव है। यह तथ्य समय की कसौटी पर बार-बार खरा उतरा है। बीते माह 13 अगस्त को भी यह तब खरा उतरा जब संयुक्त अरब अमीरात यानी यूएई और इजरायल द्वारा शांति संधि की घोषणा की गई। इस संधि ने दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया। इस संधि की खास बात यह है कि इजरायल वेस्ट बैंक के हिस्सों का अधिग्रहण करने की अपनी योजना को स्थगित कर देगा। हालांकि इस पर इजरायली प्रधानमंत्री को अपने यहां विरोध का सामना करना पड़ा, फिर भी वह पीछे नहीं हटे। वैसे उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि वेस्ट बैंक के अधिग्रहण का निलंबन कितने समय तक के लिए है?

यूएई और इजरायल शांति संधि की घोषणा अब्राहम एकॉर्ड के नाम से जाना जा रहा है

यह कहना गलत न होगा कि अधिग्रहण न सिर्फ इस समझौते को, बल्कि भविष्य में किसी भी अरब देश के साथ होने वाले समझौतों को आघात पहुंचा सकता है। इस संधि के बाद यूएई के मुसलमान आसानी से यरूशलम जा पाएंगे और उन जगहों को देख पाएंगे, जिनकी इस्लाम में विशेष मान्यता है। इनमें मुख्यत: अल-अक्सा मस्जिद है, जो इस्लाम के तीन सबसे पवित्र स्थलों में से एक है। इस द्विपक्षीय समझौते पर वाशिंगटन में 15 सितंबर को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की उपस्थिति में हस्ताक्षर हुए। इसे अब्राहम एकॉर्ड के नाम से जाना जा रहा है। यह नाम पैगंबर इब्राहिम के नाम पर है। पैगंबर इब्राहीम एकेश्वरवादी धर्म-ईसाई, यहूदी और इस्लाम में बहुत बड़ा स्थान रखते हैं। इन तीनों धर्मों में उन्हें खुदा का पैगंबर बताया गया है। इसी कारण इन तीनों को अब्राहमिक धर्म भी कहा जाता है।

15 साल के विनाशकारी संघर्ष के बाद दोनों पक्षों ने शांति का मार्ग अपनाया

मानव जाति के इतिहास में अनेक शांति संधियां हुई हैं। इनमें सबसे पहली शांति संधि तीन हजार साल पहले हित्तियों और मिस्रियों के बीच हुई थी। 15 साल के विनाशकारी संघर्ष के बाद दोनों पक्षों ने महसूस किया कि उनकी लड़ाई का एकमात्र विकल्प शांति का मार्ग है। इसके बाद दोनों पक्षों ने शांति संधि तैयार की। इसके जरिये दोनों ने अपने ज्ञान को साझा करने और विकास को बढ़ावा देने का फैसला लिया। इस शांति संधि की महत्ता के कारण उसकी एक प्रतिकृति संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय में रखी गई है।

यूएई फारस की खाड़ी का पहला और विश्व का तीसरा मुस्लिम राष्ट्र है

यूएई फारस की खाड़ी का पहला और विश्व का तीसरा मुस्लिम राष्ट्र है, जिसने इजरायल के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए। 1948 में इजरायल के जन्म के बाद अरब दुनिया और इजरायल के बीच सामंजस्य स्थापित करने के लिए दो समझौते हुए थे। एक 1979 में मिस्न के साथ और दूसरा 1994 में जॉर्डन के साथ। इसके बावजूद अब्राहम समझौते को शांति के पक्ष में एक बड़ी सफलता के रूप में देखा जा रहा है। यूएई इस्लामी जगत का एक प्रभावशाली राष्ट्र है। इसी कारण इस संधि का दूरगामी प्रभाव पड़ने की संभावना है। पिछले कुछ वर्षों में अबूधाबी के क्राउन प्रिंस शेख मुहम्मद बिन जायद ने विभिन्न देशों के साथ सामंजस्यपूर्ण संबंध बनाने की की दृष्टि से कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। इसी के चलते पोप फ्रांसिस ने यूएई की पहली बार यात्रा की। इस यात्रा के बाद वहां एक अब्राहमिक भवन के निर्माण की घोषणा हुई। कुछ ऐसा ही तब हुआ था जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूएई गए थे। उस समय अबूधाबी में मंदिर निर्माण के लिए जमीन देने की घोषणा की गई थी।

शांति से पहले न्याय के चलते भारी आर्थिक क्षति हुई, तमाम लोगों की जानें गईं

अभी तक अरब देशों और इजरायल के बीच शांति की कोई बड़ी पहल इसलिए नहीं हो सकी, क्योंकि पश्चिम एशिया में सक्रिय कई गुट इस एक असंभव उसूल को पकड़े बैठे हैं कि शांति से पहले न्याय। इसके चलते न केवल भारी आर्थिक क्षति हुई, बल्कि असंख्य लोगों की जान भी गई। ऐसे में अब्राहम समझौता आशा की एक किरण है। इससे पश्चिम एशिया में स्थाई शांति की उम्मीद लगाई जा रही है। शायद लोगों को यह समझ आ रहा है कि शांति के बाद ही विकास और न्याय के अवसर खुलते हैं। इस पर हैरानी नहीं कि यूएई-इजरायल में दोस्ती की पहल में बहरीन ने भी शिरकत कर ली। इसके बाद ओमान भी इसी रास्ते पर चलने जा रहा है।

अब सभी की निगाहें अन्य मुस्लिम राष्ट्रों पर टिकी हैं

अब सभी की निगाहें अन्य मुस्लिम राष्ट्रों पर टिकी हैं, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण है सऊदी अरब। हालांकि सऊदी अरब ने आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा है, लेकिन सद्भावना के तौर पर उसने पहली बार इजरायली विमानों को अपने हवाई क्षेत्र का उपयोग करने की अनुमति दी। इसके अलावा सऊदी अरब की प्रभावशाली संस्था मुस्लिम वल्र्ड लीग के महासचिव शेख मोहम्मद बिन अब्दुल करीम ने यह बयान दिया कि हम अपने यहूदी भाइयों का सम्मान करते हैं।

तुर्की, कतर, ईरान यूएई-इजरायल शांति समझौते का विरोध कर रहे हैं

जहां सऊदी अरब यूएई-इजरायल शांति समझौते पर सकारात्मक संकेत दे रहा है, वहीं तुर्की, कतर, ईरान इस समझौते का खुलकर विरोध कर रहे हैं। इसका कारण शायद यह है कि ईरान के प्रभाव को रोकने के लिए भी यह समझौता किया गया है।

मोदी की कूटनीति के कारण भारत के संबंध अरब देशों के साथ-साथ इजरायल और ईरान से भी हैं

आज विश्व में बहुत कम ऐसे देश हैं जिनके संबंध अरब देशों के साथ-साथ इजरायल और ईरान से भी हैं। ऐसे में भारत की भूमिका और अहम हो जाती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कूटनीति के कारण भारत के संबंध इन सभी देशों से बहुत अच्छे हैं। इन देशों से भारत की सांस्कृतिक निकटता भी है। पश्चिम एशिया में शांति और स्थिरता को बल मिले, इस दिशा में भारत को काम करना चाहिए, क्योंकि यही भारत के हित में है। अब्राहम समझौता कामयाब हो, इसके लिए इतिहास की नकारात्मक घटनाओं को भूलना पड़ेगा। वास्तव में यह प्रत्येक समाज को तय करना होता है कि वह आने वाली पीढ़ियों के लिए क्या छोड़ना चाहते हैं-संघर्ष, गरीबी, निराशा या फिर आशा, शांति और प्रगति की एक नई राह?

( लेखक इस्लामिक विषयों के जानकार हैं )

[ लेखक के निजी विचार हैं ]