[सुशील कुमार सिंह]। India Russia Relations: हमें भारत की नीतियों पर शक नहीं, जिन्हें है, वे कश्मीर का दौरा करें। यह वक्तव्य रूस की ओर से तब आया है जब पाकिस्तान चीन के जरिये कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में उठाने की लगातार कोशिश में है। गौरतलब है कि बीते 17 जनवरी को रूस के उपराजदूत से जब यह पूछा गया कि क्या वह कश्मीर की यात्रा करना चाहेंगे तो उन्होंने कहा कि दोस्त के तौर पर आमंत्रित करेंगे तो निश्चित तौर पर जाएंगे, मगर बिना गए भी भारत की कश्मीर नीति का हम समर्थन करते हैं। यह उन लोगों को कड़ा संदेश हो सकता है जो भारत के इस फैसले को संदेह से देखते हैं।

पाकिस्तान के साथ खड़े दिखाई दिया चीन

रूस का यह बयान भारत की नैसर्गिक मित्रता की बात को एक बार फिर साबित करता है। वैसे इस मामले में दुनिया अब यह जान गई है कि कश्मीर भारत का आंतरिक मामला है और इससे दूर ही रहना चाहिए। पांच अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद पाकिस्तान ने इसके खिलाफ दुनिया में गोलबंदी करने का प्रयास किया, पर वह पूरी तरह विफल रहा। भारत का आंतरिक मामला बताते हुए किसी ने पाकिस्तान का साथ नहीं दिया। हालांकि कुछ देश पाकिस्तान के साथ खड़े दिखाई दिए मसलन चीन और मलेशिया जैसे देश।

भारत और रूस के बीच संबंध

चीन इस मामले में खुलकर नहीं बोला और अक्टूबर में भारत के महाबलिपुरम में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की यात्रा अनुच्छेद 370 से दूर ही रही। जाहिर है चीन की इस चुप्पी ने पाकिस्तान को मनोवैज्ञानिक लाभ नहीं दिया। ऐसा भारत की मजबूत विदेश नीति के कारण हुआ। भारत और रूस के बीच संबंध भरोसे और एक-दूसरे के विश्वास का है जो बीते 70 वर्षों में कभी डगमगाया नहीं।

रूस अंतरराष्ट्रीय मंच पर दोस्ती निभाता रहा

अनुच्छेद 370 पर साथ खड़ा होने वाला रूस कल भी भारत के साथ था और आज भी है। दुनिया की परवाह किए बिना रूस अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की दोस्ती निभाता रहा। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रूस (सोवियत संघ) ने 22 जून, 1962 को अपने 100वें वीटो का इस्तेमाल कर कश्मीर मुद्दे पर भारत का समर्थन किया था। दरअसल सुरक्षा परिषद में आयरलैंड ने कश्मीर मसले को लेकर भारत के खिलाफ एक प्रस्ताव पेश किया था, जिसका अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन और चीन जो सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य थे, के अलावा चिली समेत वेनेजुएला ने उसका समर्थन किया था।

कश्मीर को भारत से छीना जाए 

तब भारत की कूटनीति वैश्विक मंच पर उतनी सशक्त नहीं थी। उस प्रस्ताव के पीछे पश्चिमी देशों की भारत के खिलाफ साजिश थी जिसमें चीन बराबर का हकदार था। सभी की मंशा थी कि कश्मीर को भारत से छीना जाए और पाकिस्तान को थमा दिया जाए, लेकिन नैसर्गिक मित्र रूस के रहते इसकी कोई संभावना नहीं थी। लिहाजा उनकी साजिश नाकाम हुई। यहां रूस की भारत के पक्ष में सशक्त भूमिका देखी जा सकती है।

इतना ही नहीं इसके पहले 1961 में रूस ने अपने 99वें वीटो का प्रयोग करते हुए गोवा मामले में भारत का साथ दिया था। गौरतलब है कि जब भी भारत पर कोई भी समस्या आई सुरक्षा परिषद में मॉस्को ने दिल्ली का साथ दिया और पाकिस्तान समेत चीन को उसकी हैसियत समझाता रहा। देखा जाए तो रूस ने परमाणु और अंतरिक्ष कार्यक्रम से लेकर विकास के अनेकों कार्य में भारत का अक्सर साथ दिया है। भले ही शीत युद्ध की समाप्ति के बाद दुनिया में बदलाव आया हो, पर 1990 से पहले और बाद में दोनों परिस्थितियों में आपसी संबंध बने रहे। गौरतलब है कि भारत और रूस (तत्कालीन सोवियत संघ) की दोस्ती की कहानी 13 अप्रैल, 1947 को तब शुरू हुई जब भारत ने आधिकारिक तौर पर दिल्ली और मॉस्को में मिशन स्थापित करने का फैसला किया था। भले ही मौजूदा समय में भारत की अमेरिका से नजदीकी हो, लेकिन रूस से तनिक मात्र भी दूरी नहीं बढ़ी।

कश्मीर में यूरोपीय सांसदों की एक टीम ने अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद दौरा किया था। कई जानकारों ने माना है कि भारत सरकार को उन्हें इसकी इजाजत नहीं देनी चाहिए थी। जाहिर है भारत को यह विश्वास दिलाने की कत्तई जरूरत नहीं थी कि अनुच्छेद 370 की मुक्ति के बाद वहां मानवाधिकार और आम जिंदगी का क्या हाल है। यह निहायत भारत का आंतरिक मामला है और इसका समाधान केवल अपनी नीतियों से ही तय करना है। यह समझ से परे है कि यूरोपीय संघ के 23 सांसदों के प्रतिनिधिमंडल के कश्मीर दौरे का क्या पैगाम है।

जाहिर है जो विश्वास करते हैं वे सीमा पार रहकर भी भरोसा करेंगे और जिन्हें संदेह है वे कश्मीर में घूमकर भी छींटाकशी करेंगे। इसमें कोई दुविधा नहीं कि अनुच्छेद 370 के हटने से वैश्विक स्तर पर थोड़ी बहुत सुगबुगाहट हुई, पर भारत के अंतरराष्ट्रीय प्रभाव के चलते किसी ने खुलकर जुबान नहीं खोली। यदि यह मामला संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद तक जाता भी है तो अब केवल सात दशकों का मित्र रूस ही नहीं ब्रिटेन, फ्रांस के साथ अमेरिका का भी साथ मिल सकता है।

चीन जानता है कि पाकिस्तान के आतंकियों के समर्थन में जितना बचाव एवं वीटो करना था अब वह कर चुका है। उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि पुलवामा घटना के बाद अजहर मसूद के मामले में चीन को कैसे किनारे लगाते हुए अन्य स्थायी सदस्यों ने मसूद को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित किया था। फिलहाल भारत और रूस के संबंधों की सारगर्भिता को केवल कश्मीर मामले से ही आंकना सही नहीं होगा। भारत के औद्योगीकरण में योगदान, अंतरिक्ष तथा सैन्य सहयोग और सोवियत संघ के विघटन के बाद भी भारत के प्रति न बदलने वाले उसके मिजाज समेत कई मापदंड इसमें समावेश लिए हुए हैं जो आज भी नैसर्गिक मित्रता की अभिव्यक्ति बने हुए हैं।

[निदेशक, वाईएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन]

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