डा. जयंतीलाल भंडारी। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि कोविड महामारी और वर्तमान वैश्विक संघर्षों के बीच अपनी नई प्रतिभाशाली पीढ़ी के बल पर भारत स्टार्टअप और साफ्टवेयर से लेकर अंतरिक्ष जैसे विभिन्न क्षेत्रों में सामथ्र्यवान देश के रूप में उभर रहा है और दुनिया की समस्याओं का समाधान भी पेश कर रहा है। मोदी ने युवाओं से आग्रह किया कि वे अगर 15 अगस्त, 2023 तक डिजिटल लेन-देन करें और नकदी का व्यवहार न करें तो देश में एक बड़ी आर्थिक क्रांति ला सकते हैं। इसमें कोई दो मत नहीं कि मजबूत होती भारतीय अर्थव्यवस्था से भारत सामथ्र्यवान बनता जा रहा है। नि:संदेह इस समय यूक्रेन संकट के कारण जब अमेरिका और जापान सहित दुनिया की विभिन्न अर्थव्यवस्थाएं मंदी का सामना कर रही हैं, तब भारत तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था वाले देश के रूप में चिन्हित किया जा रहा है।

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वृद्धि चालू वित्त वर्ष में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी)में 6.4 प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान है। यह कोई छोटी बात नहीं है कि वैश्विक मंदी की चुनौतियों के बीच वित्त वर्ष 2021-22 में भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) में रिकार्ड बढ़ोतरी हुई है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के मुताबिक भारत ने वित्त वर्ष 2021-22 में 83.57 अरब डालर का रिकार्ड एफडीआइ प्राप्त किया है। वहीं वित्त वर्ष 2020-21 में यह आंकड़ा 81.97 अरब डालर था। प्रमुख निवेशक देशों के मामले में सिंगापुर 27 प्रतिशत के साथ शीर्ष पर मौजूद है। इसके बाद अमेरिका 18 प्रतिशत के साथ दूसरे, जबकि मारीशस 16 प्रतिशत के साथ तीसरे स्थान पर है। कंप्यूटर साफ्टवेयर एवं हार्डवेयर, सेवा क्षेत्र और आटोमोबाइल उद्योग में सबसे अधिक एफडीआइ प्राप्त हुआ है। देश का विदेशी मुद्रा भंडार भी इस समय करीब 600 अरब डालर के मजबूत स्तर पर दिखाई दे रहा है।

आज भारत मैन्यूफैक्चरिंग के क्षेत्र में विदेशी निवेश के लिए एक पसंदीदा देश के रूप में तेजी से उभर रहा है। दुनिया भर में यह माना जा रहा है कि भारत सस्ती लागत के विनिर्माण में चीन को पीछे छोड़ सकता है। भारत में विनिर्माण उद्योग जितनी अधिक तरक्की करेंगे, अर्थव्यवस्था में उतने ही अधिक रोजगार सृजित होंगे। भारत में श्रम लागत चीन की तुलना में सस्ती है। भारत के पास तकनीकी और पेशेवर प्रतिभाओं की भी कमी नहीं है। इसके अलावा केंद्र सरकार ने उद्योग-कारोबार, करारोपण और विभिन्न श्रम कानूनों को सरल बनाया है। इससे भी उद्योग-कारोबार आगे बढ़ रहे हैं। यह बात भी महत्वपूर्ण है कि कोविड-19 के बीच चीन के प्रति बढ़ी हुई वैश्विक नकारात्मकता और चीन में कोरोना संक्रमण के कारण उद्योग-व्यापार में ठहराव के चलते चीन से बाहर निकलते विनिर्माण, निवेश और निर्यात के मौके भारत की ओर आने लगे हैं। वहीं अब विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) की नई अवधारणा और नए निर्यात प्रोत्साहनों से देश को दुनिया का नया मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाए जाने और आयात में कमी लाने की संभावनाएं भी उभरकर दिखाई दे रही हैं। सेज की नई अवधारणा के तहत सरकार द्वारा सेज से अंतरराष्ट्रीय बाजार और राष्ट्रीय बाजार के लिए विनिर्माण करने वाले उत्पादकों को विशेष सुविधाओं से नवाजा जाएगा।

देश को सामथ्र्यवान बनाने में देश के कृषि क्षेत्र की भी अहम भूमिका है। कृषि मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत तीसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार फसल वर्ष 2021-22 में देश में कुल खाद्यान्न उत्पादन रिकार्ड 31. 45 करोड़ टन होगा, जो पिछले वर्ष की तुलना में 37.7 लाख टन अधिक है। यद्यपि इस वर्ष गेहूं का उत्पादन 10.64 करोड़ टन होगा, जो कि पिछले साल के मुकाबले 31 लाख टन कम है, लेकिन धान, मोटे अनाज, दलहन और तिलहन का रिकार्ड उत्पादन होता दिखाई दे रहा है। ऐसे परिदृश्य से जहां महंगाई और गरीबी नियंत्रित रहेगी, वहीं कृषि निर्यात से जरूरतमंद देशों की मदद करते हुए विदेशी मुद्रा की कमाई भी की जा सकेगी।

यह भी महत्वपूर्ण है कि क्वाड के रूप में जिस नई ताकत का उदय हो रहा है, वह भारत के उद्योग-कारोबार के विकास में मील का पत्थर साबित हो सकता है। इससे भारत के मैन्यूफैक्चरिंग हब बनने को बड़ा आधार मिलेगा। इसके साथ-साथ भारत उद्योग-कारोबार के विस्तार के लिए जिस त्रिआयामी रणनीति पर आगे बढ़ रहा है, उससे भी मैन्यूफैक्चरिंग हब की संभावनाएं मजबूत होंगी। ये तीन महत्वपूर्ण आयाम हैं-चीन के प्रभुत्व वाले व्यापार समझौतों से अलग रहते हुए नार्डिक देशों जैसे संगठनों के व्यापार समझौते का सहभागी बनना, पाकिस्तान को किनारे करते हुए क्षेत्रीय देशों के संगठन बिम्सटेक (बंगाल की खाड़ी से सटे देशों का एक अंतरराष्ट्रीय आर्थिक सहयोग संगठन) को प्रभावी बनाना और मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) की डगर पर तेजी से आगे बढऩा।

नि:संदेह भारत से दुनिया की उम्मीदें लगातार बढ़ती जा रही हैं। उन पर खरा उतरने के लिए अभी देश को कई बातों पर ध्यान देना होगा। आत्मनिर्भर भारत अभियान और मेक इन इंडिया को सफल बनाना होगा। देश में खाद्यान्न उत्पादन एवं खाद्यान्न निर्यात को और अधिक बढ़ाने के रणनीतिक प्रयत्न किए जाने होंगे। अर्थव्यवस्था को डिजिटल करने की रफ्तार तेज करनी होगी। तभी भारत वर्ष 2026-27 तक पांच लाख करोड़ डालर की अर्थव्यवस्था बन पाएगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि अपने उद्योग, कृषि और सेवा क्षेत्र की मजबूती से भारत देश के करोड़ों लोगों को आर्थिक-सामाजिक खुशियां देने के साथ-साथ दुनिया के जरूरतमंद देशों की उम्मीदों को भी पूरा करेगा।

(लेखक एक्रोपोलिस इंस्टीट्यूट आफ मैनेजमेंट स्टडीज एंड रिसर्च, इंदौर के निदेशक हैं)