नई दिल्ली, गौरव कुमार। गत दिनों अमेरिका के रक्षा मंत्री का तीन दिवसीय भारत दौरा संपन्न हुआ। अमेरिका ने भारत को महत्व दिया है कि उसने रक्षा मंत्री की पहली यात्र के क्रम में भारत को स्थान दिया। यह अपने आप में कई तरह के नवीन समीकरणों को रेखांकित करने वाला है। इसे अमेरिका की विदेश नीति का नया रणनीतिक स्वरूप माना जा सकता है। वर्तमान में अमेरिका और चीन का संबंध न्यूनतम स्तर पर है। भारत इस दृष्टिकोण से अमेरिका के लिए एक बड़े सहयोगी की भूमिका निभा सकता है। अमेरिका इस बात को स्वीकार कर चुका है कि चीन के बढ़ते प्रभाव को सीमित करने में भारत की भूमिका अहम होगी। भारत के प्रति अमेरिका की नीति का एक दृष्टिकोण यह भी है कि भारत इस समय दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा हथियार आयात करने वाला देश है, जहां अमेरिका को अपार संभावनाएं दिख रही हैं। ऐसा करके वह इस क्षेत्र में रूस के प्रभाव को भी कम कर सकता है। हालांकि यह भी महत्वपूर्ण है कि कोविड के बाद जिस तरह से दुनिया में महाशक्ति का केंद्र बदला है। उसके बाद अमेरिका को यह बात समझ आ चुकी है कि उसे एशिया और अफगानिस्तान में अपनी पकड़ मजबूत बनाने के लिए भारत जैसे देश की जरूरत है।

भारत और अमेरिका दोनों स्वाभाविक दोस्त हैं। पिछली सदी के अंतिम दशक में जब भारत ने आर्थिक सुधार की प्रक्रिया आरंभ की तब अमेरिका के साथ संबंध का विकास भी स्वाभाविक प्रतिक्रिया थी। इस बीच दोनों के बीच आपसी विश्वास और सहयोग की भावना बढ़ी है। वर्तमान में भारत अमेरिका संबंधों के बीच कई पक्ष और कारक जुड़ चुके हैं। यूं तो अमेरिका काफी पहले से यह मान चुका है कि भारत के बिना वैश्विक व्यवस्था में टिके रहना काफी कठिन है। इसी पृष्ठभूमि में भारत के साथ उसके बहुपक्षीय संबंध उभरे हैं। अब इसका सबसे अहम चरण शुरू हो चुका है।

बदलते वैश्विक शक्ति संतुलन के बीच एशिया में अपने प्रभाव बनाने के लिए भारत के साथ बेहतर संबंध कायम करना अमेरिका की पहली प्राथमिकता बन गई है। भारत और अमेरिका दोनों आतंकवाद से सर्वाधिक प्रभावित हैं। अमेरिका का चीन एक बड़ा प्रतिद्वंद्वी बन चुका है जो न केवल आíथक, बल्कि कूटनीतिक मामलों में भी लगातार अमेरिका को चुनौती दे रहा है। यह स्थिति अमेरिका को भारत के और निकट आने को प्रेरित करने वाली है। भारत भी चीन के साथ अपने विवादों से प्रभावित है और उसे अमेरिका जैसे साथी की आवश्यकता भी है। कहा जा सकता है कि दोनों देश बेहतर संबंधों के लिए जरूरतमंद हैं। अमेरिका के रक्षामंत्री की यात्र इसी दिशा में बदलती रणनीति का हिस्सा कही जा सकती है। जिसमें भारत को एक नए साथी के रूप में अमेरिका मिला है और अमेरिका को अपनी वैश्विक प्रासंगिकता को बरकरार रखने के लिए भारत जैसा दोस्त।

(लेखक लोक नीति विश्लेषक हैं)