[ भरत झुनझुनवाला ]: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मांग है कि भारत के बाजार को चिकन, चीज आदि अमेरिकी कृषि उत्पादों के लिए खोला जाए जिससे कि अमेरिकी किसानों को लाभ हो, परंतु भारत इसके लिए तैयार नहीं है, क्योंकि इससे हमारे किसानों पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। इस समय अमेरिका और भारत एक व्यापक व्यापार समझौते पर काम कर रहे हैं। ऐसे में हमें अपनी रणनीति तय करनी होगी, लेकिन इसके लिए समझना होगा कि राष्ट्रपति ट्रंप भारत को अमेरिकी निर्यात क्यों बढ़ाना चाहते हैं।

यूएस तकनीकी विकास का निर्यात कर भारी लाभ न कमा सकने से अर्थव्यवस्था सुस्त पड़ी

दरअसल अमेरिकी अर्थव्यवस्था पूर्व में नए-नए तकनीकी विकासों के आधार पर आगे बढ़ रही थी। जैसे अमेरिका में ही परमाणु रिएक्टर, जेट हवाई जहाज, कंप्यूटर, इंटरनेट आदि का आविष्कार हुआ था। इन हाईटेक मालों का निर्यात करके अमेरिका भारी लाभ कमा रहा था। इस लाभ से वह अपनी जनता को ऊंचे वेतन दे रहा था, लेकिन बीते दो दशकों में अमेरिका में ऐसे कोई आविष्कार नहीं हुए हैं, जिसका निर्यात कर वह भारी लाभ कमा सके। इस कारण अमेरिका की अर्थव्यवस्था सुस्त पड़ी हुई है, श्रमिकों के वेतन दबाव में हैं और अमेरिकी सरकार को टैक्स कम मिल रहा है, लेकिन अमेरिकी सरकार के खर्च लगातार बढ़ रहे हैं।

बजट घाटे को पाटने के लिए अमेरिका सरकार बांड बेच रही है और ऋण ले रही है

जैसे उसे अफगानिस्तान और ईरान से युद्ध करने के लिए खर्च करने पड़े हैं। इस बजट घाटे को पाटने के लिए सरकार बांड बेच रही है और ऋण ले रही है। इस ऋण का बड़ा हिस्सा विदेशों से आ रहा है विशेषकर चीन एवं जापान से। इस कारण अमेरिकी डॉलर का दाम बढ़ रहा है। जैसे चीन के निवेशक ने 100 डॉलर के अमेरिकी सरकार के बांड खरीदे तो बाजार में डॉलर की मांग बढ़ी। मांग बढ़ने से डॉलर के दाम बढ़ गए। इस विदेशी पूंजी के आवक से डॉलर के मूल्य ऊंचे बने हुए हैं और अमेरिका कृत्रिम अमीरी का आनंद ले रहा है।

डॉलर के ऊंचा होने का सीधा प्रभाव अमेरिका के विदेश व्यापार पर पड़ रहा

डॉलर के ऊंचा होने का सीधा प्रभाव अमेरिका के विदेश व्यापार पर पड़ रहा है। डॉलर महंगा होता है तो अमेरिका में माल का आयात अधिक होता है। जैसे मान लीजिए भारत में एक ग्लेडियोलस फूल के उत्पादन का मूल्य 15 रुपये पड़ता है। यदि एक डॉलर का मूल्य 15 भारतीय रुपये हो, जैसा कि आज से 30 वर्ष पूर्व था तो अमेरिकी उपभोक्ता को एक डॉलर में एक ग्लेडियोलस फूल मिलेगा, लेकिन यदि एक डॉलर का मूल्य 75 रुपये हो, जैसा कि आज है तो उसी एक डॉलर में अमेरिकी उपभोक्ता को पांच ग्लेडियोलस के फूल मिलेंगे। जाहिर है अमेरिकी डॉलर का मूल्य ऊंचा होने से अमेरिका में भारी मात्रा में आयात हो रहे हैं और निर्यात दबाव में हैं।

ट्रंप व्यापार घाटे से चिंतित, वे चाहते हैं भारत अमेरिकी माल का आयात बढ़ाए

इसलिए अमेरिकी सरकार के खर्च अधिक होने से, बजट घाटा बढ़ने से, ऋण ज्यादा लेने से, विदेशी पूंजी के आने से और डॉलर का मूल्य ऊंचा होने से अमेरिका के आयात बढ़ रहे हैं, निर्यात दबाव में हैं और व्यापार घाटा बढ़ रहा है। अमेरिका के व्यापार घाटे के बढ़ने का रहस्य बजट घाटे के बढ़ने में है। राष्ट्रपति ट्रंप व्यापार घाटे से चिंतित हैं। उन्हें अपना बजट घाटा नहीं दिख रहा है। इसलिए उन्होंने भारत से आयातित स्टील पर आयत कर बढ़ाए हैं। अपने व्यापार घाटे को नियंत्रण करने के लिए वे चाहते हैं कि भारत अमेरिकी माल का आयात बढ़ाए।

जब तक अमेरिका का बजट घाटा बना रहेगा तब तक व्यापार घाटा कम नहीं हो सकता

लेकिन ट्रंप अपने उद्देश्य को हासिल करने में निश्चित रूप से असफल होंगे। अमेरिकी सरकार के बजट घाटे के बने रहने से और विदेशी पूंजी के प्रवेश करने से व्यापार घाटा कम हो ही नहीं सकता है। इसे ऐसे समझिए, किसी परिवार की आय कम है, वह लगातार ऋण ले रहा है और शोर मचा रहा है कि दुकानदार ने कपड़े का अनुचित दाम वसूला है। मूल विषय तो परिवार की आय का है। जब आय ही नहीं है तो यदि दुकानदार ने कपड़े का दाम कम भी कर दिया तो परिवार आटे- दाल के ऊंचे दाम पर शोर मचाएगा। ऐसा शोर करने से परिवार की आय नहीं बढ़ेगी। इसी प्रकार जब तक अमेरिकी सरकार का बजट घाटा बना रहेगा तब तक अमेरिकी सरकार का व्यापार घाटा कम हो ही नहीं सकता है।

बजट घाटे पर नियंत्रण करने के स्थान पर ट्रंप बेवजह ही भारत पर दोष लगा रहे

इस परिस्थिति में राष्ट्रपति ट्रंप चाहते हैं कि भारत अमेरिकी माल के आयात बढ़ाए। उन्होंने भारत के स्टील उत्पादों पर आयात कर बढ़ा दिए हैं। इन कदमों से अमेरिका की समस्या हल नहीं होगी। यदि भारत अमेरिका के माल को प्रवेश करने भी देता है तो वही व्यापार घाटा किसी दूसरे देश को स्थानांतरित हो जाएगा। जैसे वियतनाम और फिलीपींस से आयात बढ़ जाएंगे। व्यापार घाटे के बढ़ने का जो वास्तविक कारण है वह पूर्ववत बना ही रहेगा। अपने बजट घाटे पर नियंत्रण करने के स्थान पर ट्रंप बेवजह ही भारत पर दोष लगा रहे हैं।

राष्ट्रपति ट्रंप का उद्देश्य अपनी घरेलू राजनीति को साधना है

वास्तव में राष्ट्रपति ट्रंप का उद्देश्य अपनी घरेलू राजनीति को साधना है। वे अपनी जनता को दिखाना चाहते हैं कि उन्होंने दूसरे देशों के ऊपर सख्ती की है और अमेरिकी हितों को हासिल किया है। वे इस बात को अपनी जनता को नहीं बताना चाहते कि उनकी सरकार का बजट घाटा समस्या की जड़ है। इस परिस्थिति में हमें अपने हितों की रक्षा करनी है।

ट्रंप का दबाव- भारत अमेरिकी कृषि उत्पादों के आयात के लिए बाजार खोले

राष्ट्रपति ट्रंप का दबाव है कि भारत अमेरिकी कृषि उत्पादों के आयात के लिए अपने बाजार खोले। अब भारत इसके खिलाफ अड़ा रह सकता है अथवा इसके बदले में अमेरिका से कुछ मांग सकता है। जैसे कि भारत अपने स्टील के निर्यातों को बढ़ा सकता है, नई तकनीकों को हासिल कर सकता है अथवा अपने सेवा क्षेत्र के निर्यातों के लिए अमेरिकी बाजार को खोलने के लिए कह सकता है। हमें तय करना है कि हम अपने किस क्षेत्र को आगे बढ़ाएंगे।

सेवा क्षेत्र को बढ़ावा दें जिससे भारतीय युवाओं को रोजगार मिल सके

मेरा मानना है कि संपूर्ण विश्व की तरह भारत में भी कृषि का ह्रास तो होगा ही। इस समय जरूरत है कि हम सेवा क्षेत्र को बढ़ावा दें जिससे हम अपने युवाओं को रोजगार दे सकें। हम चिकन और चीज का आयात होने दे सकते हैं। इससे अपने किसानों को होने वाली हानि को हमें बर्दाश्त करना ही होगा। इसके बदले में अमेरिका से अपनी सेवाओं के निर्यात को सुलभ बनाने का रास्ता मांगना चाहिए। इस प्रकार के लेन-देन से राष्ट्रपति ट्रंप को अपनी घरेलू राजनीति में लाभ होगा। वे अपने नागरिकों से कह सकेंगे कि उन्होंने भारत को कृषि के सूर्यास्त क्षेत्र में चित कर दिया है, लेकिन हम अपने सूर्योदय सेवा क्षेत्र के निर्यात से उनके बाजार में प्रवेश करेंगे और उन्हें ही चित कर सकेंगे।

( लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं )