डा. एनके सोमानी। पधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नेपाल यात्रा दोनों देशों के संबंधों में नई ऊर्जा का संचार करने में सफल रही। वह बुद्ध पूर्णिमा के पावन अवसर पर लुंबिनी गए। इससे कुछ दिन पहले नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा भी जब भारत आए थे तो काशी गए थे। मोदी और देउबा की यात्राओं के लिए जिस तरह समय और स्थान का निर्धारण किया गया, उसे महज संयोग नहीं कहा जा सकता। जिस तरह दोनों देशों ने अपने नेताओं के दौरे में धार्मिक महत्व के नगरों को शामिल किया, उसका असल उद्देश्य बहुत गहरा और दूरगामी परिणाम देने वाला है। भारत वास्तव में नेपाल का बहुत पुराना सहयोगी रहा है। दोनों के बीच रोटी और बेटी का रिश्ता है।

सांस्कृतिक रूप से भी दोनों के बीच खासे गहरे संबंध हैं। इसके अलावा धार्मिक-सांस्कृतिक दृष्टि से भी भारत का नेपाल के साथ एक अटूट रिश्ता है, लेकिन पिछले कुछ समय से जिस तरह चीन भारत के पड़ोस में अपनी पैठ जमाने की कोशिशों में जुटा हुआ है, उससे भारत के सामरिक हलकों में कुछ सवाल उठते रहे हैं। यह बहुत स्वाभाविक भी है। यह किसी से छिपा नहीं कि चीन नेपाल की ढांचागत परियोजनाओं में काफी रुचि ले रहा है।

नेपाल में अपना प्रभाव बनाए रखने के लिए अब वह निवेश के साथ-साथ धार्मिक कूटनीति का भी सहारा ले रहा है। महात्मा बुद्ध के कारण लुंबिनी दुनिया भर के बौद्ध अनुयायियों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। बौद्ध धर्मावलंबियों को आकर्षित करने के लिए चीन पिछले एक दशक से लुंबिनी में निवेश कर रहा है। उसने वहां अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का निर्माण किया है। अब वह लुंबिनी में विश्व शांति केंद्र की स्थापना कर रहा है। ऐसे में भारत के लिए यह जरूरी हो गया था कि वह चीन की इस नीति की प्रभावी काट करके लुंबिनी में अपना प्रभाव बढ़ाए। मोदी की लुंबिनी यात्रा को इसी कवायद से जोड़कर देखा जा रहा है। इस यात्रा के दौरान मोदी ने लुंबिनी में इंडिया इंटरनेशल सेंटर फार बौद्ध कल्चर एंड हेरिटेज की नींव रखी।

मोदी ने अपने लुंबिनी दौरे की शुरुआत माया देवी मंदिर में दर्शन के साथ की। मान्यता है कि यहीं महात्मा बुद्ध का सिद्धार्थ के तौर पर जन्म हुआ था। मोदी-देउबा द्विपक्षीय वार्ता के दौरान भारत द्वारा नेपाल में संचालित की जा रही परियोजनाओं को तय समय पर पूरा करने के लिए उनकी प्रगति की समीक्षा की गई। भारत इस समय नेपाल में बिजली परियोजनाओं, संचार एवं डिजिटल समेत कई क्षेत्रों में काम कर रहा है। इसके अलावा भारत और नेपाल के बीच बिजली उत्पादन के क्षेत्र में भी समझौता हुआ। भारत और नेपाल के विभिन्न विश्वविद्यालयों के बीच कई समझौते हुए। उच्च शिक्षा के लिहाज से ये समझौते काफी अहम माने जा रहे हैं। दोनों नेताओं के बीच सुरक्षा संस्थाओं के मामले में बेहतर तालमेल और सहयोग के मुद्दे पर भी वार्ता हुई। ध्यान रहे कि पिछली ऐसी वार्ता में मोदी ने साफ कहा था कि भारत-नेपाल खुली सीमाओं का अवांछित तत्वों द्वारा किए जा रहे दुरुपयोग को रोकने के लिए सुरक्षा संस्थाओं के बीच सहयोग होना चाहिए।

2015 में नेपाल में कम्युनिस्ट सरकार आने के बाद भारत-नेपाल संबंधों पर संशय के जो बादल मंडरा रहे थे, वे तब और गहरा गए थे, जब तत्कालीन नेपाल सरकार ने भारत विरोधी रवैया अपना लिया था। नवंबर 2019 में भारत-नेपाल संबंधों में उस वक्त तनाव उत्पन्न हो गया था जब नेपाल के तत्कालीन प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने कालापानी इलाके पर कहा था कि भारत को इस क्षेत्र से अपनी सेना हटा लेनी चाहिए। 2020 में भारत-नेपाल रिश्ते उस वक्त और बिगड़ गए, जब ओली ने कालापानी, लिपुलेख और्र ंलपियाधुरा जैसे विवादित क्षेत्रों को नेपाल का हिस्सा बताने वाला नक्शा जारी किया। ये सभी इलाके भारत की सीमा में हैं।

भारत शुरू से ही इस नक्शे को खारिज करता रहा है। सीमा संबंधी मुद्दे उछालने के अलावा ओली ने अपने कार्यकाल के दौरान ऐसे कई बयान दिए, जिनसे भारत-नेपाल रिश्तों में खटास उत्पन्न हुई। जुलाई 2020 में ओली ने भगवान श्रीराम की जन्मस्थली अयोध्या पर प्रश्न उठाते हुए कहा था कि भारत ने सांस्कृतिक अतिक्रमण करने के लिए वहां फर्जी अयोध्या का निर्माण कराया है। जबकि असली अयोध्या तो नेपाल के बीरगंज में है। इसी प्रकार जब दुनिया कोरोना संकट से गुजर रही थी, तब भी ओली ने भारत के खिलाफ विवादित बयान दिया। वन बेल्ट-वन रोड परियोजना में चीन का सहयोगी होने और व्यापारिक हितों के कारण भी नेपाल का झुकाव चीन की ओर है। 2019 में काठमांडू में हुए बिम्सटेक सम्मेलन में पीएम मोदी ने सदस्य देशों के सामने सैन्य अभ्यास का प्रस्ताव रखा था, लेकिन चीन के दबाव के चलते नेपाल ने सैन्य अभ्यास में भाग लेने से इन्कार कर दिया था। जबकि उससे कुछ समय पहले ही नेपाल ने चीन के साथ सैन्य अभ्यास किया था।

भारत और नेपाल, दोनों समान संस्कृति एवं मूल्यों वाले पड़ोसी होने के बावजूद आज तक संबंधों के एक निर्धारित दायरे से बाहर नहीं निकल पाए हैं, लेकिन देउबा के भारत दौरे और अब पीएम मोदी की नेपाल यात्रा के बाद स्थिति बदलती नजर आ रही है। भारत और नेपाल में जैसे गहरे रिश्ते होने चाहिए, उनकी उम्मीद अब बढ़ रही है। ध्यान रहे कि 2014 में सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की यह पांचवीं नेपाल यात्रा थी। यह पहला अवसर था, जब दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के बीच डेढ़ माह से भी कम समय में दूसरी बार द्विपक्षीय वार्ता हुई। नेपाल यात्रा के दौरान जिस तरह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चीन की धार्मिक कूटनीति को चुनौती देने का प्रयास किया है, वह दोनों देशों के रिश्तों में मील का पत्थर साबित होनी चाहिए।

(लेखक अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ हैं)