[अश्विनी उपाध्याय]। जल-जंगल और जमीन की समस्या, गरीबी और बेरोजगारी की समस्या, भुखमरी और कुपोषण की समस्या तथा वायु, जल, मृदा और ध्वनि प्रदूषण की समस्या का मूल कारण प्राकृतिक संसाधनों का बढ़ता दोहन है, जो सीधे-सीधे बढ़ती आबादी से जुड़ा मसला है। भारत में इस विशाल आबादी के कारण ही अनेक समस्याएं विकराल रूप धारण करती जा रही हैं। अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग में भारत की दयनीय स्थिति का मुख्य कारण भी यह विकराल जनसंख्या ही है।

चिंताजनकः भूजल दोहन में सबसे आगे भारत
ग्लोबल हंगर इंडेक्स में हम 103वें स्थान पर, साक्षरता दर में 168वें स्थान पर, वर्ल्ड हैपिनेस इंडेक्स में 133वें स्थान पर, ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स में 130वें स्थान पर, एनवायरनमेंट परफॉरमेंस इंडेक्स में 177वें स्थान पर तथा प्रति व्यक्ति जीडीपी में 139वें स्थान पर हैं, लेकिन धरती से पानी निकालने के मामले में हम दुनिया में पहले स्थान पर हैं, जबकि हमारे पास कृषि योग्य भूमि दुनिया की दो फीसद तथा पीने योग्य पानी मात्र चार फीसद है। प्रदूषण नियंत्रण को लेकर पिछले पांच वर्षो में बहुत से प्रयास भी किए गए हैं, लेकिन जनसंख्या विस्फोट के कारण वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, मृदा प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण बढ़ता जा रहा है और इसका मूल कारण भी जनसंख्या विस्फोट है।

आजादी के बाद बढ़ी 100 करोड़ की आबादी
अमेरिका और यूरोप के विकसित देशों में यदि हम जनंसख्या के पैमाने को देखें तो वहां पर बीते करीब पांच-छह दशकों से आबादी में बढ़ोतरी बहुत ही कम हुई है। भारत की बात करें तो देश की आजादी के समय जनसंख्या करीब 37 करोड़ के आसपास थी, जबकि आज उसमें तकरीबन 100 करोड़ की बढ़ोतरी हो चुकी है। ऐसे में इतनी विशाल आबादी के लिए सभी प्रकार के संसाधनों को उपलब्ध कराना देश की सरकार और अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ी चुनौती है। वह भी तब जब उसमें तेजी से वृद्धि निरंतर जारी हो। ऐसे में जापान जैसे देशों से सीखने की आवश्यकता है जहां आबादी पूरी तरह से नियंत्रण में है।

चीन से लें सबक
देश भर में महिलाओं के प्रति हिंसा बढ़ती जा रही है और इसका मुख्य कारण भी जनसंख्या विस्फोट ही है। बेटियों को बराबरी का दर्जा मिले, उनका स्वास्थ्य ठीक रहे, तथा बेटियां खूब पढ़ें और वे भी आगे बढ़ें, इसके लिए चीन की तर्ज पर एक प्रभावी और कठोर जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाना बहुत जरूरी है। कठोर संबंधित नीति से ही बालिकाओं और महिलाओं को परिवार-समाज द्वारा भेदभाव को पूरी तरह से खत्म किया जा सकता है।

इसलिए फेल हो जाती हैं सरकारी योजनाएं
एक कठोर और प्रभावी जनसंख्या नियंत्रण कानून के बिना बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ अभियान तो सफल हो सकता है, लेकिन विवाह के बाद बेटियों पर होने वाले अत्याचार को नहीं रोका जा सकता है। आज देश के लगभग सभी राजनीतिक दल स्वीकार करते हैं कि जनसंख्या विस्फोट वर्तमान समय में बम विस्फोट से भी अधिक खतरनाक है, इसलिए चीन की तर्ज पर एक प्रभावी जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू किए बिना रामराज्य की कल्पना करना संभव नहीं है। देश की इस बड़ी समस्या का निपटारा किए बिना स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत, साक्षर भारत, समृद्ध भारत, स्वावलंबी भारत और अपराध-मुक्त भारत का निर्माण मुश्किल ही नहीं, बल्कि नामुमकिन है।

अटल सरकार में हुई थी जनसंख्या नियंत्रण कानून की सिफारिश
उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए ही पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा बनाए गए 11 सदस्यीय संविधान समीक्षा आयोग (वेंकटचलैया आयोग) ने दो वर्ष तक परिश्रम और विस्तृत विचार-विमर्श के बाद संविधान में आर्टिकल 47ए जोड़ने और जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने का सुझाव दिया था जिसे आज तक लागू नहीं किया गया। अब तक 125 बार संविधान में संशोधन हो चुका है। तीन बार सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी बदला जा चुका है, सैकड़ों नए कानून बनाए गए, लेकिन देश के लिए सबसे ज्यादा जरूरी जनसंख्या नियंत्रण कानून नहीं बनाया गया, जबकि ‘हम दो, हमारे दो’ कानून से देश की 50 प्रतिशत समस्याओं का समाधान हो जाएगा। लेकिन इन सबके बावजूद इस संबंध में कोई फैसला नहीं हो पा रहा है।

भारत में सबसे प्रतिष्ठित है वेंकटचलैया आयोग
अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा 20 फरवरी 2000 को बनाया गया संविधान समीक्षा आयोग भारत का सबसे प्रतिष्ठित आयोग है। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस वेंकटचलैया इसके अध्यक्ष तथा जस्टिस सरकारिया, जस्टिस जीवन रेड्डी और जस्टिस पुन्नैया इसके सदस्य थे। भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल और संविधान विशेषज्ञ केशव परासरन तथा सोली सोराबजी और लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष कश्यप इसके सदस्य थे। पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पीए संगमा भी इसके सदस्य थे। वरिष्ठ पत्रकार सीआर ईरानी और अमेरिका में भारत के राजदूत रहे वरिष्ठ नौकरशाह आबिद हुसैन भी इस आयोग के सदस्य थे।

वेंकटचलैया आयोग की प्रमुख सिफारिशें
वेंकटचलैया आयोग ने सभी संबंधित पक्षों से विस्तृत विचार-विमर्श के बाद 31 मार्च 2002 को अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपी थी। इसी आयोग की सिफारिश पर मनरेगा, शिक्षा का अधिकार, सूचना का अधिकार और भोजन का अधिकार जैसे महत्वपूर्ण कानून बनाए गए, लेकिन जनसंख्या नियंत्रण कानून पर संसद में चर्चा भी नहीं हुई। इस आयोग ने मौलिक कर्तव्यों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए भी महत्वपूर्ण सुझाव दिया था, जिसे आज तक लागू नहीं किया गया। वेंकटचलैया आयोग द्वारा चुनाव सुधार प्रशासनिक सुधार और न्यायिक सुधार के लिए दिए गए सुझाव भी आज तक पेंडिंग हैं। लिहाजा संविधान समीक्षा आयोग के सुझावों को संसद के पटल पर रखना चाहिए और आयोग के सभी सुझावों पर विशेषरूप से चुनाव सुधार, न्यायिक सुधार, प्रशासनिक सुधार और जनसंख्या नियंत्रण कानून पर विस्तृत चर्चा करना चाहिए।

50 फीसद समस्याओं का कारण जनसंख्या विस्फोट
लगभग सभी राजनीतिक दलों के नेता, बुद्धिजीवी, समाजशास्त्री, पर्यावरणविद, शिक्षाविद और विचारक इस बात से सहमत हैं कि देश की 50 प्रतिशत से ज्यादा समस्याओं का मूल कारण जनसंख्या विस्फोट है। ऐसे में केंद्र की सत्ता में प्रचंड बहुमत से लौटी नरेंद्र मोदी सरकार को भी इस दिशा में आवश्यक कदम उठाना चाहिए।

अश्विनी उपाध्याय
[अधिवक्ता, उच्चतम न्यायालय]

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