डॉ. जोसेफ के थॉमस। चीन के महाशक्ति बनने के रास्ते में फिलहाल कई तरह की बाधाएं हैं। एक बाधा यह भी है कि भारत समेत दुनिया के ज्यादातर देश अपने यहां छोटे व मझोले उद्यमों को बढ़ावा दे रहे हैं। वे आत्मनिर्भर बनने के उपायों में लगे हुए हैं। दूसरी ओर अमेरिका और जापान समेत दुनिया के कई देश चीन से अपनी कंपनियों को वापस लाने के उपाय भी कर रहे हैं। इसका मतलब है कि चीन की सप्लाई चेन बिगड़ेगी और उसके सामानों की मांग भी कम होगी। ऐसे में भारत के लिए नए अवसर पैदा होंगे। जरूरत केवल उन अवसरों को समझने और उसके अनुरूप रणनीति बनाने की है

समग्र विश्व में कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण और जान-माल के भारी नुकसान के बाद दुनिया की मौजूदा राजनीतिक, सामरिक और आर्थिक संरचना को लेकर कई अहम सवाल खड़े हुए हैं। क्या ऐसी स्थिति का फायदा चीन को मिल सकता है और वह दुनिया की नंबर एक महाशक्ति बन सकता है? क्या भारत इस आपदा को अवसर बना कर चीन से आगे निकल सकता है और महाशक्ति बन सकता है।

दुनिया की एकमात्र महाशक्ति देश है अमेरिका : ध्यान रहे अमेरिका दशकों से दुनिया की एकमात्र महाशक्ति है और चीन उसकी जगह लेने का प्रयास कर रहा है। परंतु मेरा मानना है कि चीन के लिए यह आसान नहीं होगा। ऐसा मानने के कई ठोस कारण हैं। पहला कारण यह है कि कोरोना वायरस के बारे में खबरें छिपाने से लेकर इसके प्रसार में अपनी भूमिका के कारण चीन की साख बहुत बिगड़ गई है। दुनिया के देशों का भरोसा अब चीन पर नहीं रहा है। अमेरिका और यूरोपीय देशों सहित अनेक देश चीन से नाराज हैं। वे मान रहे हैं कि उसने वायरस की गंभीरता को छिपाया। दुनिया की सबसे बडी अर्थव्यवस्था वाले जी-7 देश कोरोना के दुष्प्रभाव और जान-माल को हुए नुकसान के लिए चीन पर साढ़े छह खरब डॉलर का दावा करने पर विचार कर रहे हैं।

चीन की ताकत को समझना होगा : चीन ने ऐसा क्या किया जिससे वह दुनिया की फैक्टरी बना, यह समझे बगैर उसे रोकना संभव नहीं होगा। असल में चीन ने अपनी सैन्य ताकत बढ़ाने से पहले आर्थिक ताकत बढाई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज जिस तरह से भारत को आत्मनिर्भर बनाने की बात कर रहे हैं, लगभग उसी अंदाज में चीन ने हर मामले में अपने को आत्मनिर्भर बनाया और फिर दुनिया के देशों को धीरे-धीरे अपने ऊपर निर्भर बनाता गया। भले उसने आत्मनिर्भरता दूसरों की नकल करके हासिल की है। जैसे उसके यहां दुनिया के सबसे बड़े सर्च इंजन गूगल का इस्तेमाल नहीं होता है। उसने गूगल की नकल कर बाइडू बना लिया। वाट्सएप की जगह वीचैट बना लिया या अमेजन की तर्ज पर अलीबाबा बना लिया। उसने फेसबुक, लिंक्डइन, नेटफ्लिक्स आदि सबका अपना वर्जन तैयार किया है। इसके दो फायदे हुए। पहला तो यह कि उसके अपने लोगों का सारा डाटा या निजी जानकारी अपने यहां रही, अपने सर्वर पर रही है और दूसरा, राजस्व अन्य देशों को नहीं गया। उसने दुनिया के देशों को अपने ऊपर निर्भर बनाया। भारत आज अपनी दवा की जरूरतों के लिए अधिकतर कंपोनेंट चीन से आयात करता है। दुनिया भर में बनने वाले मोबाइल फोन का 70 फीसद चीन में तैयार होता है। एयर कंडीशनर का 80 फीसद चीन में बनता है। ऐसे ही सीमेंट, सोलर सेल, जूते, खिलौने आदि के लिए दुनिया भर के देश चीन पर निर्भर हैं।

पर अब उसकी साख बिगड़ी है, दुनिया के देश उससे नाराज हैं और उसे अछूत बनाने की सोच रखे हुए हैं। कोरोना वायरस का संक्रमण फैलाने में उसकी भूमिका के साथ साथ उसकी साख इसलिए भी खराब हुई है, क्योंकि उसने दुनिया के देशों को जो पीपीई किट्स, मेडिकल उपकरण और टेस्टिंग किट्स आदि भेजे हैं वे खराब क्वालिटी के निकले हैं। इससे भी दुनिया के देशों का भरोसा उस पर से कम हुआ है। तभी यह भारत के लिए एक अच्छा मौका है कि वह आत्मनिर्भर भारत अभियान के सहारे चीन को पीछे छोड़ने के लिए आगे बढ़े। इसके लिए भारत भी चाहे तो चीन वाला मॉडल अपना सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इरादा 2024-25 तक भारत को पांच खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का है। यह चुनौतीपूर्ण है पर संभव है। हम अगले पांच वर्षों में पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था हो सकते हैं। नोटबंदी और जीएसटी जैसे सुधार अर्थव्यवस्था को औपचारिक रूप देने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। वैसे वर्तमान महामारी जनित संकट ने इस लक्ष्य को प्राप्त करने में कुछ बाधा जरूर पैदा की है, लेकिन देर-सवेर इसे हासिल कर लिया जाएगा।

अलग से हो संबंधित मंत्रालय का गठन : बहरहाल भारत को यह लक्ष्य हासिल करने के लिए कुछ अहम नीतिगत और व्यवस्थागत बदलाव करने होंगे। भारत को अगला सुपरपावर बनाने के लिए एक अलग मंत्रालय की जरूरत है, जो सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय के तहत हो और इसे तकनीक या आर्थिकी का कोई जानकार संभाले। इसके बाद अगली जरूरत कानून और व्यवस्था को बेहतर बनाने की होगी, इसके बिना हम आगे नहीं बढ़ पाएंगे। कानून-व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए पुलिस और कानूनी सुधार सबसे पहले होने चाहिए। एक अच्छी योजना और उससे भी अच्छा अनुशासन देश को आगे ले जाने के लिए जरूरी है। इसके लिए जरूरी है कि विवादित और सामाजिक विभाजन को बढ़ाने वाले तमाम मुद्दों को थोड़े समय के लिए ठंडे बस्ते में डाला जाए। अभी भारत को उसकी जरूरत नहीं है। पाकिस्तान को बहुत अधिक महत्व देने की नीति भी बदलनी होगी। आखिर हमें चीन से मुकाबला करना है तो उसमें पाकिस्तान से तुलना का कोई मतलब नहीं है। बारहवीं या स्नातक के बाद हर व्यक्ति के लिए दो साल की सैन्य सेवा अनिवार्य की जाए और साथ ही हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाई जाए।

इसके बाद आती है संरचनागत सुधारों की बारी। एक विश्व स्तरीय संरचना के बगैर आर्थिक विकास को गति नहीं दी जा सकती है। अगले दो-तीन दशकों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए बुनियादी ढांचे का विकास किया जाना चाहिए। इस ढांचे के साथ साथ प्रधानमंत्री की कौशल विकास योजना के जरिये श्रम शक्ति को इस योग्य बनाना चाहिए कि वह उत्पादकता बढ़ाने में मददगार हो। उत्पादन की क्षमता बढ़ेगी, तभी चीन पर निर्भरता कम होगी। कोरोना वायरस की महामारी ने स्वास्थ्य के ढांचे की जरूरत दुनिया को समझाई है। भारत ने भी निश्चित रूप से इससे सबक लिया है। एक सबक यह भी है कि भविष्य में आणविक नहीं, बल्कि जैविक युद्ध हो सकते हैं। इसलिए रक्षा के भारी-भरकम उपकरणों के बजाय स्वास्थ्य सेवाओं पर ध्यान देना ज्यादा जरूरी है।

[शिक्षाविद और सामाजिक उद्यमी]