अवधेश माहेश्वरी। भारतीय सिलिकॉन वैली की नई पीढ़ी पुराने गाने सुनना कम पसंद करती है, लेकिन उसके लिए एक गीत की लाइन फिट दिख रही है। सपने सुहाने लड़कपन के...। तकनीक की दुनिया में माहिर युवा अब बड़ी कंपनियां बनाने के सपने न केवल देख रहे हैं, बल्कि स्टार्टअप बनाकर उन्हें पूरा भी कर रहे हैं। भारतीय ब्लॉकचेन कंपनी मैटिक (अब पॉलीगॉन) इन्हीं सपनों से निकली है। क्रिप्टोकरेंसी की दुनिया में पिछले एक सप्ताह से छाई हुई बेंगलुरु की यह कंपनी तीन युवाओं संदीप नैनवाल, अनुराग अर्जुन और जयंती कनानी की ‘ब्रेन चाइल्ड’ है। उनकी कड़ी परीक्षा और उसकी सफलता की कहानी है। मैटिक की वर्ष 2017 में शुरुआत के बाद आगे इसके कामकाज के लिए फंड जुटाना आसान काम नहीं था।

भारत में अनुकूल माहौल नहीं था। ऐसे में इसके संस्थापकों ने वर्ष 2019 में बिनेंस एक्सजेंच से टोकन बेचकर फंड जुटाने का रास्ता अपनाया। प्रारंभिक प्रयास सफल हुए तो क्रिप्टोकरेंसी वल्र्ड का आकर्षण इसकी ईथरम प्लेटफार्म आधारित ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी के चलते पिछले साल से बढ़ना शुरू हुआ। विशेषज्ञ इसकी तकनीकी को नोटिस में लेने के साथ आगे बढ़ने की बात कर रहे थे, लेकिन दिसंबर-जनवरी तक मूल्यों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। दिसंबर में मैटिक कॉइन सिर्फ दो रुपये और जनवरी में ढाई रुपये का था। मार्च तक इन्फोसिस जैसी कंपनी से करार कर मैटिक ने बढ़त के संकेत निवेशकों को दे दिए। गेम इंडस्ट्री की बड़ी कंपनी और डीफाइ (डीसेंट्रलाइज्ड फाइनेंस) ने भी इसकी तकनीक को अपनाया। इसकी वजह से पिछले एक सप्ताह में मैटिक टोकन 145 फीसद वृद्धि के साथ 18 मई को 220 रुपये के सर्वकालीन उच्च स्तर पर पहुंचा। इस कीमत ने भारत के लिए एक इतिहास रच दिया।

कॉइनमार्केट वेल्युएशन का आकलन करने वाली वेबसाइटों के अनुसार कंपनी की कीमत 10 अरब डॉलर से ऊपर पहुंच गई। मैटिक क्रिप्टोकरेंसी भी टॉप-20 कॉइन में आ खड़ी हुई। यदि कंपनी की वेल्यूशन को देखें, तो ‘गेल’ जैसी कंपनी से ऊपर निकल गई। क्रिप्टो बाजार 20 मई को धराशाई हुई तो भी मैटिक गिरने के बाद तुरंत बढ़त बना गया। कंपनी की सफलता फाउंडर्स को खुशी देती ही है, भारतीय टेकवल्र्ड में ब्लॉकचेन के लिए भी बड़ी सफलता की कहानी है। वैसे अमेरिका और चीन से तुलना करें तो अभी भारत को लंबा रास्ता तय करना होगा। इसके बावजूद तीनों मैटिक फाउंडर्स अलग हैं, क्योंकि उन्होंने प्रतिकूल परिस्थितियों में यह कर दिखाया है।

भारत में क्रिप्टोकरेंसी को लेकर फिलहाल कोई स्पष्ट नीति नहीं है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया क्रिप्टोकरेंसी को लेकर लगातार प्रतिकूल रुख दर्शा रहा है। बैंकों पर लगातार दबाव है कि वह क्रिप्टोकरेंसी में हो रहे निवेश को हतोत्साहित करें। बैंक भी इस सख्त रुख से डरे हुए लगते हैं। वह क्रिप्टो इन्वेस्टर्स के फंड को ट्रांसफर में बार-बार अड़चन पैदा कर रहे हैं। भारत सरकार भी क्रिप्टोकरेंसी के खिलाफ कानून लाने की बात कर रही है, लेकिन इसके बावजूद मैटिक टेक इंडिया के जुनून की धुन है।

क्रिप्टो एक्सपर्ट कासिफ रजा का मत है कि क्रिप्टो वर्ल्ड की बदली हुई स्थिति को देखते हुए सरकार को सुभाष चंद गर्ग समिति की सिफारिशें बेमलतब हो चुकी हैं। वैसे सरकार दो माह पहले तक इस समिति की सिफारिशों पर पुर्निवचार करने को तैयार नहीं थी, लेकिन अब कुछ बदलाव दिखता है। क्रिप्टो एक्सचेंज कॉइनस्विच कुबेर में अमेरिकी फंड टाइबर ग्लोबल का अप्रैल में किया गया 25 लाख डालर का निवेश इसका संकेत दे चुका है। टाइबर ग्लोबल जैसे निवेशक सरकार की नीति में किसी बदलाव के संकेत के बिना निवेश नहीं कर सकते हैं। हालांकि सरकार की आशंका क्रिप्टो में समानांतर मुद्रा को लेकर ज्यादा है। लेकिन क्रिप्टो में अब बिटकॉइन की तरह मुद्रा ही नहीं रह गई है, उसके दूसरे टोकन कंपनी की वेल्युएशन से जुड़े हैं।

ऐसे में सरकार को क्रिप्टो पर रोक की जगह शेयरधारकों के हितों पर नजर रखने वाले सिक्योरिटी एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया की तरह नियामक संस्था बनानी चाहिए। सरकार की ओर से ऐसी संस्था के अभाव में यह कार्य अभी एक्सचेंज स्वयं करने की कोशिश में हैं। पिछले सप्ताह शिब के वजीरएक्स एक्सचेंज में हुई लिस्टिंग के दौरान गड़बड़ी के बाद निवेशकों की प्रतिक्रिया के बाद एक्सचेंज की घोषणा कि वह स्वयं इसके हरजाने पर कदम बढ़ाएगा, क्रिप्टो करेंसी के प्रति सकारात्मक माहौल के लिए जरूरी भी है।

वैसे मैटिक ने यह भी बताया है कि डाटा ट्रांसफर में प्रयुक्त होने वाली बलॉकचेन जैसी तकनीक में भारतीय तकनीक जगत की नई पौध बढने लगी है। यह भविष्य में फ्लिपकार्ट और ओयो जैसे स्टार्टअप की तरह ब्लॉकचेन में भी ऐसी कंपनियां देगी। पोलीगोन की तकनीक को नान फंजेबल टोकन (एनएफटी) से लेकर महाराष्ट्र सरकार तक कोरोना के आंकड़ों में दर्शाने के लिए जिस तरह प्रयोग करने को आगे आए हैं, वह बता रही है कि यह आगे लंबी दूरी तय करेगी। क्रिप्टोकरेंसी में एक्सपर्ट राय देने वाले अभिनव का ट्वीट इसकी झलक देता है कि टेस्ला या लेंर्बोिगनी नहीं, सिर्फ मैटिक। वहीं मैटिक के संदीप की चाह है कि ब्लॉकचेन में भारत दुनिया का सबसे बड़ा पावरहाउस बने, यह उनका सपना है, जो पूरा हो सकता है।