अभिषेक कुमार सिंह। मानव इतिहास की तरक्की दर्शाती कुछ तस्वीरें ऐसी हैं जिन्हें विस्मृत करना कठिन है। एक तस्वीर वह है जब 1963 में भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो अपने पहले रॉकेट का प्रक्षेपण तिरुवनंतपुरम स्थित थुंबा प्रक्षेपण केंद्र से करने जा रही थी तो उस रॉकेट के हिस्सों को साइकिल पर रखकर ले जाया गया था। दूसरी 20 जुलाई, 1969 की है, जब अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के यान अपोलो-11 में सवार अमेरिकी एयरफोर्स के दो पायलट नील आर्मस्ट्रांग और एडविन बज एल्ड्रिन पहली बार चंद्रमा पर जा उतरे थे।

अंतरिक्ष में चंद्रयान-2 छोड़ेगा नया छाप
इसके बाद की एक तस्वीर 2008 की है, जब भारत का चंद्रयान चांद की परिक्रमा लगाने अंतरिक्ष में जा पहुंचा था। उम्मीद है कि अब कुछ नई तस्वीरें हमें तब मिलेंगी जब 22 जुलाई, 2019 को प्रक्षेपण के 52 दिन बाद भारत का चंद्रयान-2 पहली बार चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचेगा और उसका रोवर प्रज्ञान अपने एक पांव से अशोक स्तंभ और दूसरे पांव से इसरो के प्रतीक चिन्ह की छाप छोड़ता नजर आएगा।

चंद्रमा पर मनुष्य के पदार्पण की इस 50वीं वर्षगांठ
बेशक चांद पर जाने की कल्पना कई देश कर रहे हैं, पर ज्यादा बड़ी बात तब होगी जब मानव सभ्यता को आगे ले जाने वाले तथ्य मिलेंगे। यही वह कसौटी है जो चंद्रमा पर मनुष्य के पदार्पण की इस 50वीं वर्षगांठ के नजरिये से सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। इसी कसौटी पर खरा उतरने से भावी अंतरिक्ष कार्यक्रमों की रूपरेखा तय होगी और पता चलेगा कि सदियों से जिस आसमान की ओर हम टकटकी लगाए देखते रहे हैं उसके अन्वेषण से हमारे जमीनी विकास में क्या और कितनी मदद मिलेगी?

अंतरिक्ष में इंसान
अंतरिक्ष से इंसान के परिचय का सिलसिला 4 अक्टूबर, 1957 को शुरू हो गया था, जब तत्कालीन सोवियत संघ ने पहला उपग्रह स्पुतनिक-1 छोड़ा था, लेकिन तब कोई यह नहीं जानता था कि अगले चंद वर्षों में ही मानव के चरण चांद तक पहुंच जाएंगे और उससे भविष्य के अंतरिक्ष कार्यक्रमों की ठोस शुरुआत हो जाएगी।

चंद्रयान-1 से हरेक के मन में उपजे सवाल
हालांकि वियतनाम युद्ध से पैदा हुए उलझाव और अंतरिक्ष कार्यक्रमों पर बढ़ते खर्च से झुंझलाकर अमेरिका ने अपने छह मून मिशन के बाद 1972 में चांद पर इंसान को भेजे जाने के सिलसिले को एकतरफा बंद कर दिया था, लेकिन इस टूटे क्रम को फिर से जोड़ने का साहस भारत-चीन जैसे देशों ने किया। 2008 में भारत के चंद्रयान-1 अभियान के समय दो सवाल हरेक के मन में थे। पहला कि क्या इससे हमारी गरीबी का कोई हल निकलेगा और दूसरे, क्या चंद्रयान-1 पहले से काफी हद तक जान लिए चांद और उसके रहस्यों पर कोई नई रोशनी डालने में सफल होगा।

भारत के PSLV और GSLV रॉकेट
पहले सवाल का यह जवाब बीते अरसे में बखूबी मिला है कि यह मामला महज चंद्रयान भेजने का नहीं, बल्कि स्पेस मार्केट में इसरो की धाक जमाने का था। आज दुनिया में भारत के PSLV और GSLV रॉकेटों की काफी पूछ है और दुनिया के कई मुल्क सस्ते में अपने उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने के लिए उन पर भरोसा कर रहे हैं। इससे इसरो की जो कमाई हुई है वह अंतत: देश के चौतरफा विकास में मददगार साबित हुई है। दूसरे सवाल के भी ठोस जवाब चंद्रयान-1 से हासिल डाटा के आधार पर मिल चुके हैं, जिन्होंने चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी की पुष्टि की है।

भविष्य में चंद्रमा हमारे लिए उपयोगी
चंद्र-सतह पर पदार्पण की 50वीं वर्षगांठ बेशक मनुष्य की उपलब्धियों का जश्न मनाने का एक मौका है, पर यह अवसर इस सवाल का जवाब पाने की जरूरत पैदा करता है कि क्या भविष्य में चंद्रमा हमारे लिए उपयोगी होगा। वैज्ञानिकों का तर्क है कि चंद्रमा जल्द ही सुदूर अंतरिक्ष अभियानों के लिए एक महत्वपूर्ण अड्डा बन सकता है। उसके बहुमूल्य खनिज किसी दिन पृथ्वी के काम भी आ सकते हैं। समझा जाता है कि चांद पर यूरेनियम, टाइटेनियम आदि बहुमूल्य धातुओं के भंडार हैं। वहां सौर ऊर्जा उत्पादन के लिए भी पर्याप्त अवसर मौजूद हैं।

चंद्रमा की उत्पत्ति का रहस्य
चंद्रमा के विकास को समझ कर हम पृथ्वी की उत्पत्ति की गुत्थियों को भी सुलझा सकते हैं। समझा जाता है कि करीब 4.51 अरब वर्ष पहले मंगल के आकार के एक पिंड के पृथ्वी से टकराने से उत्पन्न मलबे से चंद्रमा की उत्पत्ति हुई थी। बहुत से वैज्ञानिक चांद को पृथ्वी का ही हिस्सा मानते हैं। असल में चंद्रमा पर अब भेजे जाने वाले ज्यादातर मिशनों में चांद के ध्रुवों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।

भविष्य में अंतरिक्ष अभियानों का संचालन होगा आसान
अभी कोई लैंडर चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों में नहीं पहुंचा है, लेकिन परिक्रमा यानों से प्राप्त आंकड़ों से पता चलता है कि दोनों ध्रुवों की चट्टानों और छायादार क्रेटरों में अरबों टन बर्फ मौजूद है। इस बर्फ और उसमें जमा पदार्थों के विस्तृत विश्लेषण से हमें इस सवाल का जवाब मिल सकता है कि पृथ्वी पर पानी कहां से आया और जीवन निर्माण की सामग्री कहां से आई? चंद्रमा पर पानी प्रचुर मात्रा में होगा तो वहां इंसानी बस्ती बसाने का सपना भी साकार हो सकेगा। ईंधन का स्रोत चांद पर ही उपलब्ध होने से भविष्य में सुदूर अंतरिक्ष अभियानों का संचालन करना भी आसान हो जाएगा।