नई दिल्ली [रमेश दुबे]। केंद्र सरकार के प्रयासों को हाल में तब बड़ी कामयाबी मिली जब बीते शनिवार को देश के सभी गांवों तक बिजली पहुंच गई। मणिपुर के सेनापति जिले का लेसांग गांव राष्ट्रीय पॉवर ग्रिड से जुड़ने वाला देश का आखिरी गांव बना। देश के हर क्षेत्र में बिजली पहुंचाने की दिशा में यह यह एक बड़ा बदलाव है। इसके सकारात्मक नतीजे आएंगे। आजादी के 70 साल बाद अंधेरे में डूबे 18 हजार से अधिक गांवों में समय सीमा से पहले बिजली पहुंचना एक बड़ी उपलब्धि है। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री मोदी ने 15 अगस्त 2015 को लाल किले की प्राचीर से एक हजार दिनों में देश के इन गांवों में बिजली पहुंचाने का समयबद्ध लक्ष्य तय किया था।

इसके तहत ग्रामीण घरों और कृषि कार्यों के लिए अलगअलग फीडर की व्यवस्था कर पारेषण और वितरण ढांचे को मजबूत किया गया और सभी स्तरों पर मीटर लगाया गया। माइक्रो ग्रिड की स्थापना भी की गई और राष्ट्रीय पॉवर ग्रिड से दूर दराज के इलाकों के लिए ऑफ ग्रिड वितरण नेटवर्क तैयार किया गया। इसमें जिस भी गांव के समुदाय भवन अथवा पंचायत भवन तक बिजली पहुंच जाती है उसे विद्युतीकृत गांव मान लिया जाता है। लक्ष्य का तय समय से 12 दिन पहले ही पूरा हो जाना एक बड़ी कामयाबी है।

सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए बिजली एक अनिवार्य जरूरत होने के बावजूद ग्रामीण विद्युतीकरण पर उतना ध्यान नहीं दिया गया जितना दिया जाना चाहिए था। देश के आजाद होने के समय महज 1500 गांवों तक बिजली पहुंची थी। ग्रामीण विद्युतीकरण में तेजी लाने के लिए 1969 में ग्रामीण विद्युतीकरण निगम की स्थापना की गई। इसके साथ कई और प्रयास किए गए जैसे न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के तहत ग्रामीण विद्युतीकरण कुटीर ज्योति योजना, त्वरित ग्रामीण विद्युतीकरण कार्यक्रम। इसके बावजूद 1991 तक 481124 गांवों तक ही बिजली पहुंच पाई। व्यावहारिक कठिनाइयों और राज्य बिजली बोर्डों के घाटे में चलने के कारण 2004 तक कई गांव बिजली सुविधा से वंचित कर दिए गए। इस प्रकार बिजली विहीन गांवों की संख्या घट गई। दूसरे मीटर व्यवस्था न होने से बिजली बिल की वसूली नहीं हो पाई और बिजली चोरी में तेजी आई।

विद्युतीकृत गांवों की घटती संख्या को देखते हुए ग्रामीण विद्युतीकरण से संबंधित सभी योजनाओं का विलय कर 2005 में राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना शुरू की गई। इसमें दिसंबर 2012 तक सभी घरों में बिजली पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया जो पूरा नहीं हो पाया। मोदी सरकार ने देश के सभी हिस्सों में सातों दिन चौबीसों घंटे निर्बाध और गुणवत्तापूर्ण बिजली आपूर्ति के लिए नवंबर 2015 में दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना की शुरुआत की। हर गांव तक बिजली पहुंचाने के बाद अब असली चुनौती हर घर को रोशन करने की है, क्योंकि अभी भी साढ़े तीन करोड़ ग्रामीण घर अंधेरे में डूबे हैं। इन तक बिजली पहुंचाने के लिए मार्च 2019 की समय सीमा निर्धारित की गई है। इसके लिए प्रधानमंत्री सहज हर घर बिजली योजना (सौभाग्य) शुरू की गई। इसके तहत गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले परिवारों को मुफ्त में बिजली कनेक्शन मुहैया कराया जा रहा है।

यह बिजली की प्रति व्यक्ति की खपत को बढ़ाने का काम करेगी, जो अभी 1200 किलोवाट घंटा ही है। बिजली खपत का यह औसत विश्व में सबसे कम खपत करने वाले देशों में है। संयुक्त राष्ट्र डेवलपमेंट प्रोग्राम की एनर्जी प्लस नामक रिपोर्ट के मुताबिक रोशनी के लिए बिजली जरूरी है, लेकिन इससे ग्रामीण विकास का लक्ष्य हासिल नहीं होगा। बिजली का असली लाभ तब मिलेगा जब उसका उपयोग उत्पादक गतिविधियों में हो ताकि यह आमदनी बढ़ाने और गरीबी उन्मूलन का कारगर हथियार बने। स्पष्ट है कि ग्रामीण विद्युतीकरण को उत्पादक गतिविधियों से जोड़ने पर ध्यान दिया जाना चाहिए। इससे बिजली बिल की समय से वसूली होगी और आपूर्ति में भी सुधार आएगा। सौभाग्य योजना में इस पहलू पर विशेष ध्यान दिया गया है। इस योजना में बिजली आपूर्ति को घरों को रोशन करने से आगे बढ़ाकर सामाजिक-आर्थिक विकास से जोड़ दिया गया है। दूसरे शब्दों में बिजली आपूर्ति को पर्यावरण सुधार, सार्वजनिक स्वास्थ्य, शिक्षण गतिविधियां, संचार संपर्क आदि से संबंद्ध कर दिया गया है।

सौभाग्य योजना की कामयाबी के बाद बिजली खपत में तेजी आएगी और भारत अमेरिका एवं चीन के बाद विश्व का तीसरा सबसे बड़ा बिजली उपभोक्ता बन जाएगा। भारत में दुनिया की 16 फीसद आबादी रहती है, लेकिन विश्व की कुल बिजली खपत में उसकी हिस्सेदारी महज 3.5 फीसद ही है। देश में व्याप्त गरीबी, बेकारी की एक बड़ी वजह यह भी है। ग्रामीण इलाकों में बिजली खपत बढ़ने से केरोसीन और डीजल पर निर्भरता घटेगी। इससे खेती की लागत में भी कमी आएगी, साथ ही बिजली के अभाव में ग्रामीण इलाकों में जो आर्थिक गतिविधियां शुरू नहीं हो पाती हैं वे भी शुरू होंगी। इस सबके अतिरिक्त भारत अपनी जलवायु परिवर्तन संबंधी प्रतिबद्धताओं पर भी खरा उतर सकेगा।

(लेखक केंद्रीय सचिवालय सेवा के अधिकारी हैं)