[ दिव्य कुमार सोती ]: अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद घाटी में जैसे उपद्रव की आशंका जताई जा रही थी, वैसा अब तक कुछ देखने को नहीं मिला है। यह सही है कि उपद्रवी पाकिस्तानपरस्त नेताओं का जेल में होना और इंटरनेट पर प्रतिबंध भी एक मुख्य कारण है। हालांकि वर्तमान स्थिति में यह पाकिस्तान के लिए निराशाजनक है, क्योंकि कश्मीर में उपद्रव पर ही उसकी सारी कूटनीति निर्भर है। जब-जब कश्मीर आंतरिक तौर पर स्थिर हुआ है तब-तब पाकिस्तान ने उसे अस्थिर करने की कोशिश की है।

ऑपरेशन जिब्राल्टर

इसका सबसे बड़ा उदाहरण 5 अगस्त, 1965 को पाकिस्तान द्वारा कश्मीर में शुरू किया गया ऑपरेशन जिब्राल्टर था जिसके तहत जनरल अयूब खान ने पाक के कब्जे वाले कश्मीर यानी पीओके के लोगों को आतंकी प्रशिक्षण दिलवाकर पाक सैनिकों के साथ कश्मीर घाटी में भारतीय सुरक्षा बलों को निशाना बनाने के लिए भेजा था। अयूब खान की योजना यह थी कि पीओके से आने वाले आतंकी आसानी से आम जनता में घुलमिल जाएंगे और घाटी में भारत के विरुद्ध बड़े पैमाने पर विद्रोह भड़क जाएगा, जिसका फायदा उठाकर पाक फौज कश्मीर पर बड़ा हमला कर वहां अपना कब्जा जमा लेगी। हालांकि भारतीय सेना की सजगता के चलते पाकिस्तान की यह कोशिश तकरीबन नाकाम रही थी।

कश्मीर को कब्जाना पाक का मुख्य उद्देश्य रहा

यहां यह समझना आवश्यक है कि चाहे 1947 हो या 1965 या फिर 1999 का कारगिल युद्ध, पाकिस्तान ने कश्मीर में घुसपैठ कराकर कब्जा करने के फॉर्मूले को ही अलग-अलग तरह से इस्तेमाल किया है। इसका कारण यह है कि कश्मीर को कब्जाना पहले दिन से पाकिस्तान का मुख्य उद्देश्य रहा है और पाकिस्तान में हर स्तर पर पिछले 70 साल से इसे लेकर मंथन हो चुका है।

अयूब खान के शासन में पाक में काफी विकास हुआ था

इमरान खान के अनाड़ी मंत्रियों और बिलावल भुट्टो जैसे अनुभवहीन विपक्षी नेताओं को अलग रख अगर पाक फौज की बात करें तो वह अच्छे से जानती है कि कश्मीर को लेकर ज्यादा से ज्यादा क्या किया जा सकता है और हमेशा से उसके विकल्प सीमित रहे हैं। 1965 में जब जनरल अयूब खान ने भारत के विरुद्ध युद्ध छेड़ा था तब भारत तीन साल पहले ही चीन से युद्ध हार चुका था, अमेरिका पाकिस्तान को भारी सैन्य मदद दे रहा था और चीन को पाकिस्तान ने 1963 में ही पीओके का एक हिस्सा दे दिया था। अयूब खान के शासन में पाकिस्तान में काफी विकास हुआ था, जबकि भारत की आर्थिक स्थिति खास अच्छी नहीं थी। आज स्थिति एकदम उलट है।

अमेरिका ने बंद की पाक को आर्थिक मदद

पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति बेहद खराब है और आतंक को समर्थन देने के चलते अमेरिका ने पाक को मदद बंद कर दी है। अंतरराष्ट्रीय बिरादरी पाकिस्तान के शोरशराबे पर कोई खास ध्यान नहीं दे रही है। चीन जरूर पाकिस्तान के साथ है, पर वह अमेरिका के साथ ट्रेड वॉर में उलझा है और हांगकांग में चल रहे ऐतिहासिक प्रदर्शनों से जूझ रहा है। ऐसी स्थिति में वह पाकिस्तान के लिए भारत के साथ अपने व्यापक व्यापारिक हितों को दांव पर लगाने से बच रहा है।

केंद्रशासित प्रदेश बनना चीन के लिए बड़ा झटका 

जम्मू-कश्मीर का भारत में पूर्ण एकीकरण और लद्दाख का केंद्रशासित प्रदेश बनना चीन के लिए भी बड़ा झटका है, क्योंकि वह भी पाकिस्तान की तरह कश्मीर और लद्दाख के इलाकों पर कब्जा जमाए है। साथ ही वह भारत के अब और तेजी से उभार को लेकर चिंतित है। फिलहाल वह भारत से सीधा टकराव भले न मोल ले, पर पाकिस्तान को भारत को जख्मी करने से रोकेगा, इसमें जरूर संदेह है।

1947 से ही कश्मीर को हासिल करने का सपना पाक की जनता को दिखाया

इस सबसे अलग पाकिस्तान के शासकों की समस्या यह है कि उन्होंने 1947 से ही कश्मीर को हासिल करने का सपना जनता को दिखाया है और पाकिस्तानी समाज को जिहादी विचारधारा में लैस कर डाला है। पाकिस्तानी फौज हर एक युद्ध में हारने के बावजूद पाकिस्तानी जनता के सामने खुद को विजयी बताती आई है। ऐसे में भारत द्वारा जम्मू-कश्मीर का पूर्ण एकीकरण किए जाने के मौके पर पाक फौज हाथ पर हाथ धरे बैठी नहीं दिख सकती। इसलिए वह देर सवेर कुछ न कुछ जरूर करेगी। इसमें भारत में आतंकी हमले कराने से लेकर कश्मीर में 1965 जैसा कुछ करने का प्रयास शामिल हो सकता है।

जब भारत ने पाक फौज को खदेड़ा था

हाल ही में पाक फौज के प्रवक्ता ने कहा कि फौज कश्मीर के लिए किसी भी हद तक जाएगी। अंतरराष्ट्रीय एवं आंतरिक स्तर पर प्रतिकूल परिस्थितियों के चलते फिलहाल वह पीओके में रहने वाले कश्मीरियों का एक बार फिर से इस्तेमाल करने की कोशिश में है। 1965 में जब पाकिस्तान ने कश्मीर में घुसपैठ कराई थी तो भारत ने जवाबी कार्रवाई करते हुए नियंत्रण रेखा पार कर पीओके के सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हाजी पीर दर्रे से पाक फौज को खदेड़ दिया था।

ताशकंद समझौते के तहत जीता हुआ इलाका पाक को लौटाना पड़ा

हालांकि बाद में ताशकंद समझौते के तहत दुर्भाग्यवश यह जीता हुआ इलाका लौटा दिया था। आज तक पाक फौज कश्मीर में आतंकी घुसपैठ कराने के लिए इसी रास्ते का इस्तेमाल करती है, परंतु अब भारत अनुच्छेद 370 खत्म किए जाने के बाद की परिस्थिति में पैदा हुई पाकिस्तान की छटपटाहट और पाक फौज की कुछ कर दिखाने की मजबूरी का इस्तेमाल पीओके के ज्यादा से ज्यादा हिस्सों को हासिल करने में कर सकता है।

पीओके में भारत की जवाबी कार्रवाई को पूरा अंतरराष्ट्रीय समर्थन मिलेगा

अब अंतरराष्ट्रीय समीकरण ऐसे बन गए हैं कि किसी भी पाकिस्तानी दुस्साहस की सूरत में पीओके में भारत की जवाबी कार्रवाई को पूरा अंतरराष्ट्रीय समर्थन मिलेगा। जैसा बालाकोट और 370 खत्म करने पर मिला। ऐसी स्थिति में जीते हुए इलाकों को लौटाने का भारत पर कोई दबाव भी नहीं होगा। डोनाल्ड ट्रंप द्वारा तालिबान के साथ लंबे समय से चल रही शांति वार्ता रद किए जाने के बाद फिलहाल पाकिस्तान के हाथ से आखिरी पत्ता भी निकल गया है। ट्रंप अगले चुनाव से पहले अमेरिकी सैनिकों को अफगानिस्तान से निकाल कर घर वापस लाना चाहते थे, ताकि अमेरिकी इतिहास के सबसे लंबे चलने वाले युद्ध को समाप्त करने का श्रेय ले सकें, पर आइएसआइ की चालबाजियों के चलते ऐसा नहीं हो सका।

गुलाम कश्मीर खोने पर चीन-पाक हो जाएंगे अर्थहीन

भारत को अमेरिकी नीतिकारों को समझाना होगा कि बिना बड़ा झटका खाए पाक फौज अफगानिस्तान में शांति का रास्ता नहीं खुलने देगी और गुलाम कश्मीर को खोना ही वह बड़ा झटका है। ऐसा होने पर चीन-पाक सामरिक गठजोड़ भी काफी हद तक अर्थहीन हो जाएगा जिससे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीनी शक्ति का विस्तार भी रुक जाएगा, जो पीओके से होती हुई पाकिस्तान के जरिये अरब सागर, फारस की खाड़ी और अफगानिस्तान में फैलना चाहती है।

( लेखक काउंसिल फॉर स्ट्रैटेजिक अफेयर्स से संबद्ध सामरिक विश्लेषक हैं )