डॉ. अंशु जोशी। अंतरराष्ट्रीय राजनीति और संबंधों में किसी भी राष्ट्र की शक्ति और स्थान उसकी आर्थिक, सैन्य, राजनीतिक और सामाजिक स्थिति के अलावा एक और अत्यंत महत्वपूर्ण बिंदु से निर्धारित होते हैं, उसके शासक या नेता का स्वरूप और स्वभाव। किसी भी राष्ट्र के साथ संबंध किस दिशा में ले जाने हैं, अंतरराष्ट्रीय पटल पर अपने राष्ट्र की छवि निर्माण से लेकर कौनसे मुद्दे रखने हैं, द्वि-पक्षीय तथा बहु-पक्षीय संबंधों को कैसी दिशा देनी है, कितनी गति देनी है, यह सब नेता या राजनीतिक प्रतिनिधि से ही निश्चित होता है। इसीलिए कूटनीति का अध्ययन करते समय शासकों या नेताओं के स्वभाव आदि का भी अध्ययन किया जाता है और विभिन्न राष्ट्रों के अंतरराष्ट्रीय संबंधों के कालक्रम का अध्ययन उनके प्रतिनिधियों के आधार पर बंटा होता है, जैसे इंदिरा गांधी काल, अटल बिहारी वाजपेयी काल या नरेंद्र मोदी काल।

यदि वैश्विक पटल पर भारतीय प्रतिनिधियों के हिसाब से देखें तो वर्ष 2014 के बाद का समय भारत को शक्ति की नई ऊंचाइयों पर ले जाता दिखाई देता है और नरेंद्र मोदी इसका एक महत्वपूर्ण कारण कहे जा सकते हैं। वर्ष 2014 के बाद जिस तरह से भारत की छवि वैश्विक पटल पर एक तीसरी दुनिया के देश से बदलकर एक तेजी से विकसित होते देश के रूप में बनी है, यह मानना होगा कि नरेंद्र मोदी का इसमें बड़ा योगदान रहा है। पहली बार सरकार बनाते ही उन्होंने विश्व राजनीति में भारत की छवि मजबूत करने की गतिशील पहल की। वे फ्रांस गए और सामरिक मुद्दों पर भारत व फ्रांस के बीच नए मजबूत संबंधों की नींव रखी। ब्राजील गए तो वहां के लोगों और राष्ट्रपति के साथ ऐसे सहज होकर घुल-मिल गए कि वर्षों से ठंडे पड़े संबंधों ने वहां भी एक नई करवट ली। आज ब्राजील और भारत ऊर्जा से लेकर कई अन्य क्षेत्रों में साथ काम करना प्रारंभ कर चुके हैं। कोविड से जूझते ब्राजील की जिस तरह से नरेंद्र मोदी ने सहायता की, वहां के राष्ट्रपति ने न सिर्फ पत्र लिख उन्हें धन्यवाद किया, बल्कि उन्होंने भारत की सहायता को हनुमान जी द्वारा संजीवनी ला लक्ष्मण के प्राण बचने के प्रसंग से जोड़ इसका उल्लेख अपने पत्र में किया। उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के साथ भी संबंधों में एक नया सकारात्मक अध्याय जोड़ा व अपनी सशक्त तथा मैत्रीपूर्व छवि से ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री मॉरिसन के साथ ऐसे सहज संबंध स्थापित किए कि उनका समोसा प्रेम ट्विटर के माध्यम से पूरे विश्व तक पहुंचा। संबंधों की ऊष्मा समोसों के पार सामरिक और व्यापारिक संबंधों में दिखाई पड़ती है। हाल ही में एक वर्चुअल द्वि-पक्षीय वार्ता के बाद भारत और ऑस्ट्रेलिया ने सात महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं जिनमें से एक अत्यंत महत्वपूर्ण समझौता सैन्य लॉजिस्टिक्स सहायता हेतु किया गया है।

इसी प्रकार अमेरिका से भी नरेंद्र मोदी के चलते सकारात्मक संबंधों का एक नया युग प्रारंभ होता दिखाई पड़ता है। अमेरिका और भारत के कई उद्देश्य एक से होते हुए भी वर्षों से दोनों के बीच संबंधों में वह सहजता कभी नहीं दिखाई पड़ी जिसकी दरकार थी और इसका प्रभाव भारत की बाह्य शक्ति पर पड़ा। अपने आप को गुटनिरपेक्ष कहते हुए भी हम कहीं न कहीं रूस के खेमे से जुड़े रहे, और यहां तत्कालीन भारतीय नेताओं का प्रभाव स्पष्ट हो जाता है। किंतु नरेद्र मोदी ने न सिर्फ अमेरिका के साथ संबंधों को मजबूत किया, बल्कि रूस के साथ चले आ रहे सशक्त संबंधों पर इसका कोई प्रभाव पड़ने नहीं दिया। अंतरराष्ट्रीय राजनीति में यह अपनेआप में एक बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है। फरवरी में जब राष्ट्रपति ट्रंप भारत आए, पूरे विश्व ने देखा कि किस प्रकार दो मित्रों ने अपने-अपने देशों का प्रतिनिधित्व करते हुए अपनी मित्रता की डोर से संबंधों को एक नई दिशा, एक नई गति दी। सबसे महत्वपूर्ण यह देखना रहा कि मोदी और ट्रंप के आपसी संबंध दो मित्रों के हैं, इससे निश्चित ही भारत की छवि पर असर पड़ा। पहले विश्व के ताकतवर राष्ट्रों के सामने भारत की छवि एक -स्मॉल ब्रदर- की रहती थी, पर यहां ऐसी भावना थी ही नहीं। यहां तो दो मित्र, अपने अपने देशों को बराबर के मंच पर लिए खड़े थे।

जापान और कोरिया जैसे देशों के साथ भी मोदी ने संबंधों को नई गति प्रदान करने का प्रयास किया है। सुदूर पूर्व हो या पश्चिम, खाड़ी देश हों या लैटिन अमेरिका या ऑस्ट्रेलिया या न्यूजीलैंड, नरेंद्र मोदी ने भारत के साथ विभिन्न देशों के संबंध सशक्त करने के प्रयास किए हैं। आज पूरे विश्व में भारत की सॉफ्ट पावर का सकारात्मक असर स्पष्ट दिखाई पड़ता है और इसका श्रेय हमारे प्रधानमंत्री को जाता है।

हमारे प्रधानमंत्री ने विभिन्न वैश्विक राजनयिकों के साथ मित्रता के नए सोपान गढ़े, पाकिस्तान और चीन जैसे देशों के समक्ष एक कठोर छवि प्रस्तुत करते हुए स्पष्ट संदेश दिए कि भारत की सुरक्षा पर किसी प्रकार का प्रहार सहन नहीं किया जाएगा। सर्जिकल स्ट्राइक के माध्यम से पाकिस्तान जैसे देशों को यह स्पष्ट संदेश दे दिया गया कि भारत न अब किसी के दबाव में आकर आतंकवाद बर्दाश्त करेगा, न पीछे हटेगा। वैश्विक स्तर पर बेहतर छवि और संबंधों के साथ निश्चित ही हम तत्कालीन और दूरगामी उद्देश्यों की पूर्ति कर पाने में सक्षम होंगे और इसके लिए निरंतर प्रयास अत्यंत आवश्यक हैं। हमारे प्रधानमंत्री ने ऐसे ही निरंतर प्रयासों से भारत के विश्व के साथ संबंधों का नया अध्याय लिखा है जो निश्चित ही भारत की प्रगति में मील का पत्थर साबित होगा।

[असिस्टेंट प्रोफेसर, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय ]