[सुशील कुमार सिंह]। इमरान खान को पाकिस्तान की सत्ता उस दौर में मिली जब वह अनेक समस्याओं से घिरा था। खजाना खाली था, बेशुमार कर्ज था और अप्रत्याशित व्यापार घाटा लगातार बना हुआ था। पाक की अर्थव्यवस्था में इन दिनों भी चालू खाते और बजटीय घाटे बेकाबू हैं, विदेशी कर्ज लगातार बढ़ रहा है तथा मुद्रा का अवमूल्यन भी हो रहा है निवेशक तेजी से घट रहे हैं। चीन जैसी विदेशी संस्थाओं पर बहुत अधिक निर्भरता ने पाकिस्तान को आर्थिक रूप से कमजोर बना दिया और यह क्रम अभी भी जारी है।

पाकिस्तान के पास अपने आयात बिलों का भुगतान करने हेतु कोई विदेशी जमा पूंजी शायद ही बची हो। पाकिस्तान से टूट कर बने बांग्लादेश का विदेशी मुद्रा भंडार 32 अरब डॉलर तक पहुंच चुका है, जबकि पाकिस्तान के पास इसका एक चौथाई ही है। भारत इस मामले में 400 अरब डॉलर के पार है। पाकिस्तान रुपये की विदेशी मुद्रा बाजार में कोई कीमत नहीं रह गई है।

बुनियादी ढांचा, नये रोजगार और विकास जैसे संदर्भों से जुड़े बिजनेस जब किसी देश में प्रवेश करते हैं तब वहां आर्थिक स्थिति बेहतर होती है, जबकि पाकिस्तान में यह सब नहीं हो रहा है। पाकिस्तान की आर्थिक तंगहाली के लिए कौन जिम्मेदार है यह सवाल भी गैर वाजिब नहीं है। वर्ष 2013 में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) के साढ़े छह बिलियन डॉलर के हालिया बेल आउट पैकेज के मात्र पांच साल बाद यानी 2018 में पाकिस्तान ने एक बार पुन: 12 बिलियन डॉलर के बेल ऑउट पैकेज के लिए आइएमएफ से संपर्क किया। यह उसकी बदहाल स्थिति की कहानी को दर्शाता है।

वर्तमान आर्थिक स्थिति के मद्देनजर पाकिस्तान ऐसे स्थान पर आ खड़ा हुआ है, जहां से वापसी मुमकिन दिखाई नहीं देती। देश में आतंक का कारोबार तेजी से फलता-फूलता रहा और पाकिस्तान आंख मूंद कर बैठा रहा। अमेरिका ने करोड़ों की रियायत रोक ली फिर भी आतंकियों पर लगाम नहीं लगाया। अमेरिका के धौंस के बावजूद वह आतंकी संगठनों को मजबूती देता रहा, भारत पर बार-बार आतंकियों का प्रयोग करता रहा।

पुलवामा घटना के बाद तो पाकिस्तान न केवल वैश्विक फलक पर अलग-थलग है, बल्कि आर्थिक टूटन की मात्रा भी बढ़ गई है। हालांकि बीते 20 फरवरी को सऊदी अरब ने 20 अरब डॉलर के निवेश की घोषणा की, पर इससे सऊदी अरब को क्या मिलेगा और सऊदी के पैसे से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में कितना परिवर्तन आएगा यह कहना कठिन है, क्योंकि उसकी मौजूदा आर्थिक स्थिति से ऐसा लगता है कि उसकी राह बीते 70 सालों से आर्थिक सुधार न होकर भारत विरोध की रही है।

पाकिस्तान में एक अनुकूल, पारदर्शी और कुशल टैक्स प्रणाली के अभाव के कारण टैक्स कलेक्शन जीडीपी का लगभग 10 फीसद ही है। चरम पर पहुंचे भ्रष्टाचार ने भी आर्थिक संकट खड़ा किया है। आइएमएफ ने पाकिस्तान से चीन-पाकिस्तान इकोनोमिक कोरीडोर में चीनी खर्च का हिसाब मांगा, पर चीन इसे सार्वजनिक करने के पक्ष में नहीं है।

‘ब्लूमबर्ग’ की रिपोर्ट कहती है कि पाकिस्तान पर विदेशी कर्ज लगभग 92 अरब डॉलर हो गया है। पांच साल पहले यह इससे आधा था। पाकिस्तान पर कर्ज और उसकी जीडीपी का अनुपात 70 फीसद पर पहुंच गया है। चीन का दो-तिहाई कर्ज सात फीसद के उच्च ब्याज दर पर है, जिससे पाकिस्तान की आर्थिक कमर लगातार टूट रही है। इस कर्ज को पाकिस्तान को वर्ष 2030 से लौटाना भी है जो मौजूदा स्थिति में कहीं से मुमकिन नहीं दिख रहा। पाकिस्तान 22 करोड़ लोगों का देश है, परंतु आय कर देने वालों की संख्या बहुत कम है। वर्ष 2007 में आय कर भरने वालों की संख्या यहां 21 लाख थी जो 2017 आते-आते 12.6 लाख पर सिमट गई है।

पाकिस्तान के ही सरकारी आंकड़े कहते हैं कि वर्ष 2018 में चीन से पाकिस्तान का व्यापार घाटा 10 अरब डॉलर का था जो बीते पांच सालों में पांच गुना बढ़ा है। आर्थिक संकट से जूझ रहे पाक को चीन लगातार कर्ज देता रहा। एक रिपोर्ट बताती है कि पाकिस्तान 1998 से अब तक 13 बार आइएमएफ की शरण में जा चुका है। चीन के कर्ज से निरंतर पाक आर्थिक गुलामी की ओर बढ़ रहा है।

‘स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट’ की रिपोर्ट देखें तो वर्ष 2017 में पाकिस्तान ने 52 करोड़ डॉलर के हथियार चीन से आयात किए, जबकि अमेरिका से महज दो करोड़ डॉलर का ही हथियार सौदा हुआ है। ये आंकड़े न केवल चीन से आर्थिक और व्यापारिक संबंध को दर्शाते हैं, बल्कि पाकिस्तान की दिशा और दशा को भी जताते हैं कि उसके पैसे विकास के बजाय भारत से होड़ लेने में खर्च हो रहे हैं। हालांकि पुलवामा के बाद चीन की ओर से पाकिस्तान को थोड़ी निराशा जरूर मिली है।

पुलवामा घटना के बाद भारत ने ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ का पाकिस्तान से दर्जा वापस लिया और वहां से आयात होने वाली वस्तुओं पर सीमा शुल्क 200 फीसद कर दिया। इससे भी उसकी अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ रहा है। तीन हजार करोड़ से ज्यादा का निर्यात इससे प्रभावित हुआ है जिसमें ताजे फल, सीमेंट, पेट्रोलियम उत्पाद और खनिज सहित चमड़ा आदि शामिल है। भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2017-18 में करीब ढाई अरब डॉलर का था जो 2016-17 की तुलना में थोड़ा अधिक है।

पाकिस्तान से सिंधु जल समझौता भी खत्म किया जा सकता है। आने वाले दिनों में सिंधु, झेलम और चिनाब नदियों के पानी का बहाव पाकिस्तान की ओर जाने से रोका जा सकता है। इससे पाकिस्तान में आधे से अधिक खेती का इलाका खतरे में पड़ सकता है। इससे अर्थव्यवस्था पर व्यापक असर होगा। पाकिस्तान का व्यापार घाटा भी लगातार बढ़ रहा है। इसका सीधा मतलब है कि आयात बढ़ रहा है और निर्यात घट रहा है।

दुनिया भर में उसके सामानों की मांग घट रही है। अर्थव्यवस्था के मामले में जहां भारत ने फ्रांस को पछाड़कर छठी अर्थव्यवस्था का तमगा ले लिया है और यदि वह ब्रिटेन को पछाड़ दे तो दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश हो जाएगा, जबकि पाकिस्तान आतंकियों को शरण देने में अभी भी अव्वल बना हुआ है और उन्हीं के सहारे पुलवामा की घटना को अंजाम देकर एक नई मुसीबत भी इन दिनों मोल ले ली है। फिलहाल पाकिस्तान की बिगड़ती आर्थिक स्थिति, खाली होता विदेशी मुद्रा भंडार और बढ़ता विदेशी कर्ज समेत आंतरिक गरीबी कई सवाल खड़े करती है और इन सभी सवालों का जवाब केवल पाकिस्तान को ही ढूंढना है, क्योंकि इसके लिए जिम्मेदार भी वही है।

[निदेशक, वाइएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पब्लिक

एडमिनिस्ट्रेशन]