[ रमेश कुमार दुबे ]: एक ऐसे दौर में जब वैश्वीकरण अपनी चमक खो रहा हो तब 15 देशों द्वारा दुनिया के सबसे बड़े व्यापारिक समझौते पर हस्ताक्षर करना कम महत्वपूर्ण नहीं है। दुनिया के सकल घरेलू उत्पाद में तीस फीसद योगदान देने वाले क्षेत्रीय समग्र व्यापारिक भागीदारी (आरसेप) समझौते पर वियतनाम की राजधानी हनोई में वर्चुअल बैठक के दौरान हस्ताक्षर किए गए। इस समझौते में आसियान के दस सदस्य देशों के अलावा जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और चीन शामिल हैं। इन देशों को दो वर्ष के भीतर समझौते को अनुमोदित करना होगा, जिसके बाद यह लागू हो जाएगा।

भारत के लिए आरसेप के दरवाजे खुले हैं

समझौते में शामिल देशों का मानना है कि कोविड-19 के कारण बनी महामंदी जैसे हालात को सुधारने में इससे मदद मिलेगी। समझौते के मुताबिक आरसेप अगले बीस वर्षों के भीतर कई तरह के सामानों पर सीमा शुल्क खत्म करेगा। इसमें बौद्धिक संपदा, दूरसंचार, वित्तीय सेवाएं, ई-कॉमर्स और व्यावसायिक सेवाएं शामिल होंगी। बैठक में यह भी कहा गया कि भारत के लिए आरसेप के दरवाजे खुले हैं।

भारत ने आरसेप से पीछे हटने का लिया फैसला

गौरतलब है कि भारत आरसेप वार्ताओं में शुरू से शामिल रहा, लेकिन नौ वर्षों तक चली व्यापार वार्ता के बाद नवंबर 2019 में भारत ने इस समझौते से कदम पीछे खींच लिए थे। उस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि समाज के कमजोर वर्गों और उनकी आजीविका पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में सोचकर उन्होंने आरसेप से पीछे हटने का फैसला लिया है। प्रधानमंत्री ने यह फैसला फिक्की, एसोचैम जैसे अग्रणी उद्योग संगठनों और भारत सरकार द्वारा गठित सलाहकार समिति की सिफारिशों को ठुकराते हुए लिया था।

आसियान के साथ मुक्त व्यापार समझौते से भारत के बागवानी किसानों को नुकसान उठाना उड़ा

दरअसल मुक्त व्यापार के कई कटु अनुभवों को देखते हुए प्रधानमंत्री ने आरसेप से अलग होने का फैसला लिया था। वर्ष 2002 में आसियान और चीन के बीच मुक्त व्यापार समझौता हुआ था, लेकिन इससे आसियान देशों की तुलना में चीन को ही अधिक फायदा हुआ। 2010 में भारत और आसियान के बीच हुए मुक्त व्यापार समझौते के बाद भारत में बागवानी किसानों को बहुत नुकसान उठाना उड़ा, क्योंकि सस्ते आयात से नारियल, कॉफी, काली मिर्च और रबड़ की कीमतें तेजी से कम हुईं। सबसे बड़ी बात यह रही कि आसियान और चीन के बीच हुए मुक्त व्यापार समझौते की आड़ में चीन में बनीं वस्तुएं आसियान देशों के रास्ते भारत में धड़ल्ले से डंप की जाने लगीं। आज देश के सभी शहरों के मुख्य बाजार चीनी वस्तुओं से भरे पड़े हैं तो उसका कारण मुक्त व्यापार की नीतियां ही हैं। स्पष्ट है आरसेप समझौते से किसानों, छोटे उद्यमियों और कारोबारियों को भारी नुकसान उठाना पड़ता।

भारत की एक बड़ी आपत्ति सीमा शुल्क के आधार वर्ष को लेकर है

चीन-अमेरिका संघर्ष और कोविड-19 ने चीन पर व्यापार एवं निवेश संबंधी निर्भरता के खतरे को उजागर करने का काम किया है। भारत को डर है कि आरसेप समझौते के सहारे चीन इस क्षेत्र में अपनी सैन्य और आर्थिक वर्चस्व को थोपेगा। यह भी देखना होगा कि चीन के साथ भारत के व्यापार घाटे की मात्रा आरसेप के अन्य सभी देशों को मिलाकर होने वाले घाटे से भी ज्यादा है। यदि भारत आरसेप में शामिल होता तो आयात शुल्क खत्म हो जाने के कारण चीन से विनिर्मित वस्तुएं, ऑस्ट्रेलिया से अनाज और न्यूजीलैंड से डेयरी उत्पादों का धड़ल्ले से आयात होने लगता। भारत की एक बड़ी आपत्ति सीमा शुल्क के आधार वर्ष को लेकर है। भले ही आरसेप 2022 में लागू होगा, लेकिन सीमा शुल्क का आधार 2014 ही रखा गया है। चूंकि उस समय यह बहुत कम था, ऐसे में आयात तेजी से बढ़ता जिससे आत्मनिर्भर भारत अभियान को झटका लगना तय था। सबसे बड़ा खतरा भारत में तेजी से विकसित हो रहे मोबाइल एवं इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण को था, क्योंकि आरसेप के जरिये चीन विर्नििमत वस्तुओं का आयात बढ़ जाता। आरसेप में एक प्रावधान यह भी है कि यदि कोई देश आरसेप के अलावा किसी दूसरे देश को अपने यहां निवेश करने पर अलग से कुछ फायदा देता है तो वही फायदा आरसेप देशों को भी देना पड़ेगा। इस प्रावधान पर भारत को कड़ी आपत्ति है, क्योंकि इससे भारत की द्विपक्षीय व्यापार वार्ताएं प्रभावित होंगी।

चीन ने कहा- आरसेप से हटना भारत की रणनीतिक भूल

आलोचक यह तर्क दे रहे हैं कि मोदी सरकार ने 2024 तक घरेलू अर्थव्यवस्था को पांच लाख करोड़ डॉलर का बनाने का लक्ष्य तय किया है। ऐसे में विश्व की 30 फीसद जीडीपी और दुनिया की एक-तिहाई आबादी वाले आर्थिक संगठन की अनदेखी करने से इस भारी भरकम लक्ष्य को भारत कैसे हासिल करेगा। कई विशेषज्ञों का मानना है कि समझौते से पीछे हटने से भारत एक बड़े क्षेत्रीय बाजार से बाहर हो जाएगा। सबसे तीखी प्रतिक्रिया चीन से आई। चीन के अखबारों एवं मीडिया ने इसे भारत की रणनीतिक भूल करार दिया जिससे भारत आर्थिक रिकवरी करने से चूक जाएगा, लेकिन यह आलोचना ठीक नहीं है।

भारत का व्यापार घाटा बढ़ता गया

तीन देशों ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और चीन को छोड़ दिया जाए तो आसियान के सभी दस देशों और जापान एवं दक्षिण कोरिया के साथ भारत का मुक्त व्यापार समझौता हुआ है। विडंबना यह है कि मुक्त व्यापार समझौता होने के बाद से ही आसियान देशों और जापान एवं दक्षिण कोरिया से भारत का व्यापार घाटा बढ़ता गया। इन्हीं कटु अनुभवों को देखते हुए भारत ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के साथ चल रही मुक्त व्यापार वार्ताओं में बहुत सतर्क रवैया अपना रहा है।

मुक्त व्यापार समझौतों से मिले कटु अनुभवों के चलते भारत ने आरसेप से किया किनारा

समग्रत: मुक्त व्यापार समझौतों से मिले कटु अनुभवों को देखते हुए ही भारत आरसेप से किनारा करने का फैसला किया है। भारत की अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के साथ चल रही द्विपक्षीय मुक्त व्यापार वार्ताओं में हो रही देरी का कारण भी यही है। स्पष्ट है मोदी सरकार मुक्त व्यापार नीतियों को इस तरह तर्कसंगत बना रही है, ताकि वे भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए फायदे का सौदा बनें।

( लेखक केंद्रीय सचिवालय सेवा में अधिकारी हैं )