विजेंद्र गुप्ता। India-China Border News आज जब भारत अपनी सेनाओं के साथ चीन के विरोध में मजबूती से खड़ा है, कांग्रेस के नेता इन भारतीय सेनानियों के बलिदान को विफल साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। यह वही कांग्रेस है जिसके शासन में भारत के 43,000 वर्ग किमी (रणनीतिक) भू-भाग को चीन को तोहफे में दे दिया गया।

जहां चीन, लद्दाख के कुछ हिस्से में अपने दावे को मजबूत करने के लिए हर मौसम में परिवहन के लिए सड़कों और पुलों का निर्माण कर रहा था, वहीं कांग्रेस नेतृत्व मूकदर्शक बना रहा। सीमांत क्षेत्र में मिशन मोड में सड़कों को विकसित करने के बजाय उन्होंने सीमाओं को परिभाषित ना कर चीनी रणनीति का ही साथ दिया। परिभाषित सीमा के अभाव में चीन भारत की सीमाओं का बार-बार उल्लंघन करता रहा है।

आज सीमा पर बॉर्डर इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत किया जा रहा है। यह सब एक कुशल प्रशासन और मजबूत सरकार की देन है। और यह पूर्णतया तथ्यों पर आधारित है। वर्ष 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने पर भारत की चीन नीति में उल्लेखनीय बदलाव हुआ। सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) ने वास्तविक नियंत्रण रेखा के 100 किमी की दूरी तक सीमा सड़कों के निर्माण के लिए स्वीकृति दे दी थी। सेनाओं के ऑपरेशन के लिहाज से महत्वपूर्ण 66 सड़कों को बनाने का रास्ता साफ कर दिया गया। वर्ष 2017 के बाद से भारी निर्माण गतिविधि को अंजाम दिया गया। वास्तविक नियंत्रण रेखा के आसपास सैनिकों और सैन्य सामग्रियों की सुगम आवाजाही के लिए बुनियादी ढांचे के विकास हेतु बजटीय आवंटन में भी वृद्धि की गई।

इस क्षेत्र में वर्ष 2008 से 2014 के बीच केवल एक सुरंग का निर्माण किया गया। नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल में अब तक छह सुरंगों का काम पूरा किया जा चुका है तथा 19 अन्य सुरंगों को बनाने की योजना है। भारत ने वर्ष 2008 से 2014 के बीच 7,270 मीटर की तुलना में 2014 से 2020 के दौरान 14,450 मीटर की दूरी के बराबर पुलों का निर्माण किया है। वर्ष 2008 से 2014 के बीच 3,610 किमी की तुलना में 2014 से 2020 के बीच 4,764 किमी सड़क का निर्माण किया गया। इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि चीन इससे बौखला गया है। चीनियों को यह उम्मीद नहीं थी कि भारत इस दुर्गम इलाके में और कठिन परिस्थितियों में अपनी परियोजनाओं को पूरा कर पाएगा। वास्तव में सीमा पर चीनियों के आक्रामक व्यवहार से पता चलता है कि ड्रैगन अब भारत के आसपास पहुंचने में असमर्थ है।

पहले से मजबूत संकल्प : चीन की नजर में भारत का नेतृत्व निशक्त और बेअसर माना जाता था। मनमोहन सिंह की सरकार के दौरान इसी संदेहपूर्ण प्रवृत्ति को देखते हुए चीन की सेना ने भारत की जमीन पर करीब 600 बार घुसपैठ की। उन्हें रोकने के बजाय हमारे सैनिकों को दुश्मन को केवल झंडे दिखाने की अनुमति थी। वर्ष 2013 में एक रिपोर्ट द्वारा देश को पता चला कि चीनी सेना ने भारत की 640 वर्ग किमी तक जमीन पर कब्जा कर लिया है। इसलिए आश्चर्य होता है जब राहुल गांधी मोदी सरकार पर कटाक्ष करते हैं, जबकि उनकी सरकार के समय भारतीय सेना को यह आजादी भी नहीं थी कि वह चीन की सेना के मंसूबों पर पानी फेर सकें।

उदित हो रहे भारत को रोकने के लिए तथा अपने समुद्री हितों की रक्षा के लिए चीन ने हिंद महासागर क्षेत्र में भारत को घेरने वाली वाणिज्यिक और सैन्य संपत्तियों का निर्माण किया। इस तरह से चीन ने बिना कोई गोली चलाए या सीमा पर संघर्ष का सहारा लिए भारत को रणनीतिक और आर्थिक रूप से रोके रखने का प्रयास किया। यह स्थिति वर्ष 2014 से पहले की थी। वर्ष 2014 के बाद केंद्रीय नेतृत्व ने राष्ट्र की संप्रभुता और अखंडता को लेकर अपनी प्रतिबद्धता के प्रति मजबूती दिखाई है। केंद्रीय नेतृत्व ने बार-बार भारत के हित को सर्वोपरि रखा तथा चीन की धमकियों में नहीं आया। दरअसल चीन चाहता था कि भारत उसकी महत्वाकांक्षी योजना बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव में शामिल हो जिसका उद्देश्य मध्य एशिया को यूरोप से जोड़ने वाला एक सहज व्यापार मार्ग बनाना है। भारत ने इस परियोजना से जुड़ने के लिए साफ मना कर दिया, क्योंकि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (मुख्य रूप से गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र) से गुजरने वाले चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के रूप में यह मार्ग भारत की संप्रभुता के खिलाफ था।

डोकलाम में हुए गतिरोध के दौरान भी भारत ने चीन की सड़क निर्माण गतिविधियों को रोकने के लिए मजबूती के साथ अपना पक्ष रखा। इसके रहते 73 दिनों तक भारतीय सेना से चीन की सेना को कड़ी चुनौती दी। इससे भारत ने यह स्पष्ट कर दिया कि चीन के मनमानी करने के दिन जा चुके हैं। भारत उसके द्वारा वास्तविक नियंत्रण रेखा को एकतरफा बदलने के किसी प्रयास को बर्दाश्त नहीं करेगा।

ऐसे समय में जब विश्व समुदाय द्वारा चीन के खिलाफ विश्व भर में कोरोना वायरस महामारी फैलाने तथा महामारी को लेकर जानकारियों के दमन के लिए उत्तरदायी ठहराया जा रहा है, चीन विश्व समुदाय को डराने-धमकाने के लिए वास्तविक नियंत्रण रेखा सहित दुनिया में अपनी ताकत का प्रदर्शन कर रहा है। गोपनीयता और सत्तावाद के धोखे में डूबे चीन के खिलाफ विश्वास की भारी कमी और बेहद नाराजगी है।

दूसरी ओर भारत एक परिपक्व लोकतंत्र के रूप में सामने आया है जो सामूहिक हित के लिए अपनी प्रतिबद्धता के लिए अतिरिक्त प्रयास करने को हमेशा तैयार रहता है। भारत, चीनी खतरे का डट कर सामना करने के लिए तथा जरूरत पड़ने पर चीन को दमदार जवाब देने में पूरी तरह से सक्षम है। यह भारत नया भारत है जो चीन से डरने वाला नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी यह बात स्पष्ट कर दी, जब उन्होंने कहा कि हमारे लिए भारत की अखंडता और संप्रभुता सर्वोच्च है, और इसकी रक्षा करने से हमें कोई भी नहीं रोक सकता। इस बारे में किसी को भी संदेह नहीं होना चाहिए। भारत शांति चाहता है। लेकिन भारत को उकसाने पर हर हाल में निर्णायक जवाब भी दिया जाएगा।

[वरिष्ठ भाजपा नेता]