[ अभिषेक कुमार सिंह ]: पिछले कुछ अरसे से चंद बड़े देश जिस तरह भविष्य के युद्धों का खाका खींच रहे हैं उसे देखते हुए यह आशंका सच साबित हो सकती है कि आने वाले दिनों में कोई जंग धरती पर नहीं, बल्कि अंतरिक्ष में लड़ी जाए। युद्ध यदि सीधे-सीधे अंतरिक्ष में नहीं हुआ तो भी ऐसा हो सकता है कि धरती पर होने वाले युद्ध अंतरिक्ष के जरिये संचालित हों। इन चुनौतियों को ध्यान में रखें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उस घोषणा का महत्व समझ में आ जाता है जिसमें उन्होंने बताया कि किस तरह हमारे वैज्ञानिकों ने 300 किलोमीटर दूर अंतरिक्ष में एक सैटेलाइट को मिसाइल ए-सैट से मार गिराया।

हालांकि प्रधानमंत्री ने साफ किया कि मिशन शक्ति के तहत किए गए परीक्षण में पृथ्वी की निचली कक्षा में मौजूद अपने ही उपग्रह को सफलतापूर्वक मार गिराने की सामरिक क्षमता हासिल करने का मकसद युद्ध छेड़ना नहीं, बल्कि शांति बनाए रखना है। इससे देश खुद को भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार कर रहा है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह परीक्षण किसी भी तरह के अंतरराष्ट्रीय कानून या संधि-समझौते का उल्लंघन नहीं करता। इससे भारत की गिनती अमेरिका, रूस और चीन के साथ चौथे ऐसे राष्ट्र के रूप में होने लगी है जिनके पास अंतरिक्ष में सैटेलाइट मार गिराने की क्षमता है, पर ज्यादा खास बात यह है कि मिशन शक्ति परीक्षण से हमें इसका अहसास भी होता है कि आने वाले वक्त में अंतरिक्ष में चुनौतियां कितनी बढ़ने वाली हैं।

वैसे तो अंतरिक्ष में जंग को सनसनी फैलाने वाला विषय मानकर काफी अरसे से टेलीविजन पर स्टार वॉर्स जैसे धारावाहिकों को दुनिया भर में दिखाया जाता रहा है और इसी के साथ यह दावा भी किया जाता रहा कि अमेरिका और रूस ने 1950 के दशक में ही एंटी-सैटेलाइट हथियार बनाने शुरू कर दिए थे, लेकिन ये हथियार वास्तव में अंतरिक्ष में तैनात उपग्रहों को निशाने पर ले सकते हैं। इसके कुछ उदाहरण 2007 और 2008 में मिले थे। 2008 में अमेरिका ने अंतरिक्ष से बेकाबू होकर गिर रहे अपने जासूसी उपग्रह को एक इंटरसेप्टर मिसाइल से मार गिराया था। हालांकि इसका उद्देश्य मानव जाति की रक्षा करना ही बताया गया था।

दावा किया गया था कि उस सैटेलाइट में बेहद खतरनाक किस्म का ईंधन-हाइड्राजीन था जो इंसानों के लिए नुकसानदेह था, लेकिन रूस समेत दुनिया के कई मुल्कों ने कहा था कि सैटेलाइट को स्पेस में नष्ट करना तो महज एक बहाना था। असल में तो अमेरिका स्पेस वॉर की अपनी गुप्त परियोजना के मकसद से अपने अंतरिक्ष में आजमाए जाने वाले जंगी हथियारों (स्पेस वींपस) का परीक्षण करना चाहता था। अमेरिकी कार्रवाई के विरोध में पर्यावरणविद भी थे, जिनका मत था कि इससे अंतरिक्ष में कबाड़ बढ़ेगा। मिसाइल के इस्तेमाल को सीधे तौर पर स्पेस वॉर की तैयारियों से जोड़ा गया था। अभी भारत ने भी जिस तरह मिसाइल से उपग्रह नष्ट किया है, स्वाभाविक है कि ऐसे सवाल फिर से उठें।

उल्लेखनीय है कि अमेरिका से पहले 2007 में चीन ने भी अपने एक मौसम-उपग्रह को स्पेस में मिसाइल के बजाय अपेक्षाकृत बहुत साधारण टेक्नोलॉजी की मदद से नष्ट किया था। हालांकि अंतरिक्ष में जंग भड़काने का इल्जाम उस पर भी लगा था। उस वक्त दुनिया ने चीन की कार्रवाई को अमेरिका के ग्लोबल मिसाइल डिफेंस सिस्टम के लिए एक चुनौती की तरह देखा था। यहां यह भी गौरतलब है कि बीते वर्षों में चीन और रूस ने उस संधि का पक्ष लिया है जिसके तहत अंतरिक्ष में जंग के लिए इस्तेमाल हो सकने वाले हथियारों पर प्रतिबंध लगाने की पहल की गई थी। अमेरिका ने इस संधि को यह कहते हुए मानने से इन्कार कर दिया था कि इस तरह के समझौते से जीपीएस नेटवर्क समेत उसके अन्य अंतरिक्ष कार्यक्रमों पर भी रोक लग जाएगी।

इसमें कोई शक नहीं है कि भावी अंतरिक्ष युद्ध के हिसाब से खुद को नए-नए हथियारों से लैस करना अमेरिका का पुराना सपना रहा है। सबसे पहले 1983 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने इस तरह की जंग का सपना देखा था। रीगन चाहते थे कि पृथ्वी पर जो युद्ध होते हैं, उन पर अंतरिक्ष में तैनात सैन्य उपग्रहों और उपकरणों से इस तरह नियंत्रण पाया जाए कि अमेरिका और उसके मित्र देश हमेशा बढ़त पा सकें। 1996 में जब बिल क्लिंटन ने स्टार वॉर की योजना को कुछ समय के लिए ठंडे बस्ते में डाला तो दुनिया ने चैन की सांस ली थी, पर बुश प्रशासन के सामने इस योजना पर पुनर्विचार का दबाव बना रहा। अमेरिका ने काफी लंबे समय तक जिस ‘एयरबॉर्न लेजर प्रोजेक्ट’ पर काम किया है उसके तहत धरती और अंतरिक्ष में ऐसे उपकरण तैनात हो सकते हैं, जो लेजर किरणों के जरिये सब कुछ तबाह कर सकते हैं।

खतरनाक किरणें, रॉकेट एवं मिसाइलों के अलावा और भी कई तरह के हथियार हैं, जो अंतरिक्ष से पृथ्वी में कहर बरपा सकते हैं। इनमें स्पेस बग्स, स्पेस हैकर्स, ई-बम, प्रोपल्शन सिस्टम, स्पेस फाइटर, एलियन टेक्नोलॉजी और प्लाज्मा वीपंस तक शामिल हैं। स्पेस हैकर्स के जरिये अंतरिक्ष में स्थित उपग्रहों से लेकर पृथ्वी पर स्थित संचार एवं विद्युत प्रणालियों को ठप किया जा सकता है। इनके अलावा जमीन पर बैठे-बैठे कंप्यूटर से अंतरिक्ष में तैनात उपग्रहों को हैक किया जा सकता है। इस सबको देखते हुए भारत इस मोर्चे पर काफी कुछ कर रहा है। खासतौर से पाकिस्तान और चीन से मिल रही चुनौतियों के बीच भारतीय सेना भविष्य की तैयारियों में जुट गई है। इसके लिए पिछले साल रक्षा मंत्रालय ने टेक्नोलॉजी पर्सपेक्टिव एंड कैपेबिलिटी रोडमैप-2018 नाम से एक रोडमैप पेश किया था, जिसमें कहा गया था कि भारतीय सेना को अगले दशक में 400 से ज्यादा ड्रोन विमानों की जरूरत है। इनमें लड़ाकू और सबमरीन से लांच किए जाने वाले रिमोट संचालित एयरक्राफ्ट (ड्रोन) भी शामिल हैं। इसके अलावा सेना को ऐसे हथियार भी चाहिए जो सिर्फ जमीन पर मौजूद दुश्मन के ठिकानों को ही नष्ट न करें, बल्कि अंतरिक्ष में मौजूद दुश्मन सैटेलाइटों को भी तबाह कर सकें।

साफ है कि सेना ने अगले कुछ वर्षों में अगली पीढ़ी की पनडुब्बियों, डेस्ट्रॉयर, युद्धपोतों, मिसाइलों, आधुनिक गोला-बारूद के साथ जिन अन्य हथियारों की जरूरत बताई है, अब उनमें ऐसी मिसाइलों को भी शामिल किया जा सकता है जो स्पेस में तैनात सैटेलाइटों के साथ जंगी हथियारों की भी टोह लेकर उन्हें नष्ट कर सकें। कोई शक नहीं कि मिशन शक्ति से भारत ने वह ताकत हासिल कर ली है जिससे वह स्पेस से आने वाली चुनौतियों का मुंहतोड़ जवाब दे सकेगा और अपनी तैयारियों से साबित कर सकेगा कि कोई दुश्मन किसी भी रास्ते से भारत की शांति व्यवस्था में खलल न डाल सके।

( लेखक एफआइएस ग्लोबल से संबद्ध हैं )