नई दिल्ली [ ली सीन लूंग ]। भारत-आसियान रिश्तों की रजत जयंती मनाने की तैयारी के बीच हम इसकी अनदेखी नहीं कर सकते कि दक्षिण पूर्व एशिया के साथ भारत के रिश्ते दो हजार वर्षों से भी अधिक पुराने हैं। इतिहास में स्पष्ट प्रमाण मिलते हैं कि प्राचीन भारत और कंबोडिया, मलेशिया और थाईलैंड के बीच व्यापार हुआ करता था। इन प्राचीन संपर्कों ने दक्षिणपूर्व एशियाई संस्कृति, परंपराओं और भाषाओं को प्रभावित किया। सभी जगहों पर भारतीय हिंदू-बौद्ध प्रभाव की छाप साफ तौर पर नजर आती है। इंडोनेशिया, म्यांमार और थाईलैंड सहित कई दक्षिणपूर्व एशियाई देशों में रामायण को खासा महत्व दिया जाता है। सिंगापुर के मलय नाम की उत्पत्ति भी संस्कृत भाषा से ही हुई है जिसका अर्थ होता है लॉयन सिटी यानी सिंह का शहर। सिंगापुर हमेशा से ही आसियान में भारत के प्रवेश का समर्थक रहा है। भारत 1992 में आसियान की एक श्रेणी में संवाद साझेदार बना और 1995 में पूर्ण रूप से संवाद साझेदार। उसने 2005 से सभी पूर्वी एशिया सम्मेलनों में भाग लिया। पूर्वी एशिया सम्मेलन इस क्षेत्र के प्रमुख नेताओं के नेतृत्व वाला एक खुला, समावेशी और तेजी से बढ़ता क्षेत्रीय मंच है।

 

भारत-आसियान रिश्ते रणनीतिक साझेदारी में बदल गए

समय के साथ भारत-आसियान रिश्ते और परवान चढ़ते गए और 2012 में दोस्ती की बीसवीं वर्षगांठ के अवसर पर रणनीतिक साझेदारी में बदल गए। दोनों पक्ष आज आसियान के विभिन्न राजनीतिक-सुरक्षा, आर्थिक एवं सामाजिक-सांस्कृतिक पहलुओं पर साथ मिलकर काम कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक्ट ईस्ट नीति में भी व्यापार, संपर्क और संस्कृति की तिकड़ी पर जोर दिया गया है। इस मंत्र के माध्यम से वह आसियान के साथ सक्रियता को और धार देना चाहते हैं जो हमारे बहुस्तरीय और व्यापक सहयोग को दर्शाता है। हमारे पास सहयोग के लिए लगभग 30 प्लेटफॉर्म हैं। समय के साथ दोनों पक्षों के बीच व्यापार में भी बहुत तेजी आई है। इसमें आसियान-भारत मुक्त व्यापार क्षेत्र यानी एआइएफटीए जैसे समझौते की अहम भूमिका रही है। आसियान-भारत व्यापार 1993 के 2.9 अरब डॉलर से उछलकर 2016 में 58.4 अरब डॉलर हो गया। सामाजिक सांस्कृतिक मोर्चे पर भी आसियान-भारत छात्र विनिमय कार्यक्रम और दिल्ली डायलॉग ने दोनों पक्षों के बीच जनसंपर्क को और तेजी दी है। इन मंचों के माध्यम से हमारे युवा, अकादमिक और कारोबारी जगत के लोगों को एक दूसरे से मुलाकात के दौरान सीखने-समझने का अवसर मिला है जिससे रिश्ते और मजबूत हुए हैं।

 

गणतंत्र दिवस परेड के लिए आमंत्रण आसियान नेताओं के लिए सम्मान की बात है

भारत के गणतंत्र दिवस समारोह में आसियान की भागीदारी से दोनों पक्षों की उत्सवधर्मिता चरमोत्कर्ष पर पहुंच गई है। गणतंत्र दिवस परेड के लिए मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रण आसियान नेताओं के लिए बहुत सम्मान की बात है। वैश्विक स्तर पर पल-प्रतिपल बदल रही परिस्थितियों में चुनौतियों के साथ अवसर भी विद्यमान हैं। रणनीतिक संतुलन की धुरी खिसक रही है। दुनिया के कई हिस्सों में जनसांख्यिकीय और राजनीतिक स्तर पर बदलाव आकार ले रहे हैं। वैश्वीकरण और मुक्त व्यापार पर सहमति जरूर प्रभावित हुई है, लेकिन एशिया में यह सकारात्मक बनी हुई है। हमें आर्थिक जुड़ाव की दिशा में आगे बढ़ने की जरूरत है। साथ ही आतंकवाद, साइबर अपराध और जलवायु परिवर्तन जैसी उभरती चुनौतियों से निपटने को लेकर भी सतर्क रहना होगा।

भारत और आसियान की सोच भी एकसमान है

कई अहम पैमानों पर भारत और आसियान की सोच भी एकसमान है। क्षेत्र में शांति और सुरक्षा के साथ ही खुली, संतुलित और समावेशी अवधारणा पर भी दोनों एकमत हैं। भारत की भौगोलिक स्थिति रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है। यह हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के बीच कई प्रमुख समुद्री मार्गों के बीच स्थित है। ये समुद्री मार्ग तमाम आसियान देशों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण व्यापारिक मार्ग भी हैं। ऐसे में व्यापार को सुगम बनाए रखने के लिए इन समुद्री मार्गों की सुरक्षा दोनों पक्षों के लिए समान रूप से आवश्यक है।

आसियान और भारत की जनसंख्या दुनिया की एक चौथाई आबादी के बराबर है

आसियान और भारत की करीब 180 करोड़ की जनसंख्या है जो दुनिया की एक चौथाई आबादी के बराबर है। हमारा सम्मिलित जीडीपी भी 4.5 लाख करोड़ डॉलर से अधिक है। वर्ष 2025 तक भारत दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार बन जाएगा तो दक्षिणपूर्व एशिया में भी मध्यवर्ग का दायरा भी दोगुना बढ़कर 16.3 करोड़ होने का अनुमान है। आसियान की 60 प्रतिशत से अधिक आबादी 35 साल से कम के युवाओं की है तो वर्ष 2020 तक 29 वर्ष की औसत आयु के साथ भारत दुनिया का सबसे युवा देश होगा। आसियान और भारत में इंटरनेट उपभोक्ताओं की मांग भी तूफानी रफ्तार से बढ़ रही है जिससे डिजिटल अर्थव्यवस्था तेजी से कुलांचे भर सकती है। दोनों पक्षों में इतनी अनुकूलता होने के बावजूद संबंधों को नया आयाम देने के लिए अभी भी बहुत गुंजाइश बाकी है। आसियान के विदेशी व्यापार में भारत की हिस्सेदारी महज 2.6 प्रतिशत है जिसे और ज्यादा बढ़ाया जा सकता है।

व्यापार और निवेश को बढ़ाने के लिए भारत और आसियान को दोगुनी गति से प्रयास करने होंगे

परस्सर लाभ के लिए मैं तीन सुझाव देना चाहूंगा। पहला यह कि व्यापार और निवेश को और गति देने के लिए भारत और आसियान को दोगुनी गति से प्रयास करने चाहिए। हमें मुक्त व्यापार सहित मौजूदा रास्तों को समय रहते सुधार करने के साथ उन्हें प्रासंगिक बनाए रखना होगा। मौजूदा एआइएफटीए से भी बढ़कर उच्च स्तरीय क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी यानी आरसीईपी जैसी पहल की ओर कदम बढ़ाने होंगे। इससे ऐसे एकीकृत एशियाई बाजार का निर्माण होगा जिसमें दुनिया की लगभग एक तिहाई जीडीपी शामिल होगी। दोनों ओर से नियम-कानूनों को सुसंगत बनाना होगा और भारत की एक्ट ईस्ट नीति को सफल बनाने के साथ ही क्षेत्र में निर्यात को बढ़ाने के मकसद से मेक इन इंडिया को भी हरसंभव सहयोग देना होगा। दूसरा सुझाव यह है कि जल, थल और वायु परिवहन के मोर्चे पर सुधार हो। इस दिशा में भारत के प्रयास सराहनीय है जहां वह भारत-म्यांमार-थाईलैंड हाईवे के विस्तार के साथ ही आसियान के साथ बेहतर कनेक्टिविटी के लिए बुनियादी ढांचा विकास हेतु एक अरब डॉलर की राशि के लिए सहमत हुआ है। तीसरा सुझाव डिजिटल कनेक्टिविटी सहयोग का है। यह एक महत्वपूर्ण पहलू है। भारत में आधार से जुड़ा तंत्र नए अवसर तैयार कर रहा है।

सिंगापुर का एक लक्ष्य आसियान स्मार्ट सिटी नेटवर्क तैयार करना है

आसियान का अध्यक्ष होने के नाते सिंगापुर का एक लक्ष्य आसियान स्मार्ट सिटी नेटवर्क तैयार करना भी है जिसमें भारत हमारा स्वाभाविक साझेदार है। भारत में तेजी से शहरीकरण हो रहा है। उसने 100 स्मार्ट सिटी विकसित करने का लक्ष्य भी तय किया है। एक शहरी-राष्ट्र होने के नाते हम अपने अनुभव से इसमें भारत की पूरी मदद करेंगे। आंध्र प्रदेश की नई विकसित हो रही राजधानी अमरावती इसका एक उदाहरण है। आसियान का अध्यक्ष होने के नाते सिंगापुर भारत के साथ रिश्तों को प्रगाढ़ करने के लिए प्रतिबद्ध है। अगर दोनों पक्ष अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक जुड़ाव से मौजूदा चुनौतियों का समाधान निकालकर भविष्य के लिए बेहतर बुनियाद रखते हैं तो हमारी आने वाली पीढ़ियां ही इससे सबसे अधिक लाभान्वित होंगी।

[ लेखक सिंगापुर के प्रधानमंत्री हैं ]