[ सुधीर सिंह ]: बीते दिनों रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव दो दिवसीय दौरे पर नई दिल्ली आए। जाहिर तौर पर उनका यह दौरा इस वर्ष के अंत में रूसी राष्ट्रपति पुतिन की नई दिल्ली में प्रधानमंत्री मोदी के साथ होने वाली शिखर बैठक की तैयारी के संबंध में था। प्रधानमंत्री मोदी अपने अब तक के कार्यकाल में रूसी राष्ट्रपति पुतिन से सात से अधिक बार मिल चुके हैं। उनके इस दौरे में और कई महत्वपूर्ण मसलों पर दोनों पक्षों में चर्चा हुई। रूसी विदेश मंत्री अपने भारतीय समकक्ष यानी विदेश मंत्री एस जयशंकर सहित कई वरिष्ठ अधिकारियों से मिले, लेकिन यह एक खास बात रही कि प्रधानमंत्री मोदी से उनकी मुलाकत नहीं हो सकी। इसे लेकर राजनयिक हलकों में व्यापक चर्चा रही। इस चर्चा ने जोर इसलिए भी पकड़ा, क्योंकि भारत की यात्रा समाप्त कर रूसी विदेश मंत्री पाकिस्तान भी गए। रूसी विदेश मंत्री के नई दिल्ली दौरे में अफगान समस्या पर खास तौर पर बातचीत हुई। रूस अफगान समस्या के हल के लिए तालिबान के लिए भारत से समावेशी रुख की उम्मीद करता है। अफगान समस्या के हल के लिए विशेष समूह में अमेरिका की पहल पर भारत को शामिल करने पर भी रूस को आपत्ति है, लेकिन उसने इस पर खुली प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की है।

रूसी विदेशी मंत्री ने अफगान मामले पर पाकिस्तान से दिखाई नजदीकी

रूसी विदेशी मंत्री का नई दिल्ली दौरे के बाद इस्लामाबाद जाना इसलिए एक उल्लेखनीय राजनयिक घटना रही, क्योंकि अर्से बाद ऐसा हुआ। रूसी विदेश मंत्री के इस्लामाबाद दौर के समय संयुक्त बयान भी जारी हुआ, जिसमें अफगान मामले पर पाकिस्तान से नजदीकी व्यक्त की गई। ऐसा लगता है कि भारत से अमेरिकी की नजदीकी बढ़ती देखकर रूस पाकिस्तान से दोस्ती बढ़ाना चाहता है। इसका असर भारत-रूस संबंधों पर पड़ सकता है।

भारत की अमेरिका से बढ़ती नजदीकी के चलते रूस भी चीन के करीब आ गया

रूस पूरे शीत युद्ध काल में भारत का मजबूत सहयोगी रहा है। शीत युद्ध के बाद संबंधों में कुछ उतार-चढ़ाव आए हैं। यदि भारत की अमेरिका से नजदीकी बढ़ती जा रही है तो रूस भी पिछले एक दशक में चीन के करीब आ गया है। कई मामलों पर तो रूस चीन के आधिकारिक प्रवक्ता के रूप में सामने आने लगा है। ओबामा प्रशासन के समय से अमेरिका एशिया-प्रशांत क्षेत्र की अवधारणा पर जोर देता रहा है। राष्ट्रपति ट्रंप के कार्यकाल के अंतिम वर्षों में क्वाड समूह भी तेजी से उभरा। भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान इसके संस्थापक सदस्य हैं और इसका विस्तार प्रस्तावित है। इसी मार्च में अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन ने क्वाड समूह के वर्चुअल शिखर सम्मेलन में अपने ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत के समकक्षों के साथ भाग लिया और एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय कानून की पालना करने पर बल दिया। रूस की चीन के साथ एशिया-प्रशांत और क्वाड के नामकरण से एलर्जी है। एशिया में रूस आज भी सामरिक तौर पर काफी महत्वपूर्ण देश है।

भारत 60 फीसद रक्षा उपकरणों के लिए रूस पर आश्रित

भारत अपने लगभग 60 फीसद रक्षा उपकरणों के लिए रूस पर आश्रित है। इसमें बहुचर्चित एस-400 मिसाइल प्रणाली भी शामिल है, जो रूस को अभी भारत को सौंपना है। इसी प्रणाली को आयात करने पर अमेरिका ने तुर्की पर प्रतिबंध लगाया है, जबकि तुर्की अमेरिकी नेतृत्व वाले नाटो का सदस्य है। इस संबंध में ट्रंप प्रशासन ने भारत की परोक्ष रूप से सहायता की थी। पिछले दो दशकों में भारत का वैश्विक हथियार बाजार में क्रेता के तौर पर दबदबा बढ़ा है। रूस किसी भी तरह इसमें अपनी भूमिका को सीमित नहीं करना चाहेगा।

अमेरिका और रूस के बीच तनातनी का असर भारत-रूस संबंधों पर पड़ा

अमेरिका और रूस के बीच भी हाल के वर्षों में तनातनी में इजाफा हुआ है। इसका आरंभिक असर भारत-रूस संबंधों पर पड़ा है। भारत और रूस ब्रिक्स और शंघाई सहयोग परिषद में भी चीन सहित अन्य देशों के साथ सदस्य हैं। पिछले दो दशकों में एशिया का शक्ति संतुलन तेजी से बदला है। भारत इसके प्रमुख स्तंभ के रूप में उभरा है। भारत एशिया में चीन के प्रभुत्व को स्वीकार करने को तैयार नहीं है। भारत चाहता है कि अंतरराष्ट्रीय कानूनों का सभी राष्ट्र एशिया में भी पालन करें। अमेरिका, जापान, आसियान समूह के देश एवं ऑस्ट्रेलिया भी इसी मत के हैं। रूस को यह समझना चाहिए कि भारत की अपनी प्राथमिकताएं हैं, जिनकी वह अनदेखी नहीं कर सकता। भारत अपने राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा के तहत विदेशी संबंध में विविधता पर बल दे रहा है। रूस को इसका भी भान होना चाहिए कि शीत युद्ध काल में अमेरिका के समक्ष जो स्थिति उसकी थी, उसे अब चीन ने हासिल कर लिया है।

भारत-रूस के संबंधों को व्यापार को और बढ़ाकर संतुलित किया जा सकता है

भारत और रूस के आपसी संबंधों को सामरिक क्षेत्र के साथ-साथ व्यापार को और बढ़ाकर संतुलित किया जा सकता है। दोनों देशों के बीच का व्यापार अभी आठ बिलियन डॉलर के आसपास है। इसे बढ़ाकर 2025 में 30 बिलियन डॉलर करने पर जोर दिया गया है। 2014 के बाद दोनों देशों का व्यापार कुछ कम हो गया है। इसे रूस से प्राकृतिक तेल का आयात बढ़ाकर बढ़ाया जा सकता है। रूस इसकी अनदेखी नहीं कर सकता कि हाल के समय में भारत वैश्विक राजनीति में एक महत्वपूर्ण ताकत के तौर पर तेजी से उभरा है।

भारत और रूस के बीच कोई टकराव नहीं, लेकिन अमेरिका के चलते रूस खुश नहीं

मूलत: भारत और रूस के बीच हितों का कोई खास टकराव नहीं है, लेकिन अमेरिका के साथ भारत के गहराते सहयोग से रूस खुश नहीं है। दूसरी ओर भारत इससे संतुष्ट नहीं कि रूस चीन के हितों की परवाह करता दिख रहा है। रूसी विदेश मंत्री के अनुसार रूस-चीन संबंध इतिहास में आज सबसे मजबूत अवस्था में हैं। यह स्थिति भारत के हितों के अनुरूप नहीं है। भारत और रूस के बीच जो कुछ मतभेद उभरे हैं, उनका समाधान करने की जिम्मेदारी रूस पर अधिक है। रूस-भारत संबंध आपसी हित और सम्मान पर आधारित हैं। रूस भारत का पुराना मित्र है, लेकिन वैश्विक राजनीति की तेजी से बदलती जटिलताओं से संबंधों में कुछ बाधाएं खड़ी होती दिख रही हैं।

( लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राध्यापक हैं )