हृदयनारायण दीक्षित। भारत में ऋग्वैदिक काल से ही भिन्न विचार व विश्वास वाले समूह आनंदमगन रहते हैं।अथर्ववेद के पृथ्वी सूक्त में कहा गया है कि भिन्न भिन्न धार्मिक समूहों व भिन्न भाषा बोलने वाले जनसमूह यहां पृथ्वी माता की कृपा से रहते हैं। आस्था या विश्वास के आधार पर यहां कभी कोई भेद नहीं किया गया लेकिन धर्म के आधार पर भारत का विभाजन हुआ। जिन्ना ने मुसलमानों के लिए भिन्न राष्ट्र की जरूरत बताई। ब्रिटिश सत्ता और तत्कालीन अग्रणी कांग्रेस नेतृत्व ने धर्म आधारित विभाजन स्वीकार किया। भारी रक्तपात हुआ। धर्म आधारित नागरिकता की शुरुआत भारत विभाजन के समय हुई। विभाजन के पहले भारत में कोई अल्पसंख्यक नहीं था। धर्म आधारित विभाजन के बावजूद भारत ने सबको नागरिकता दी। यहां कोई भेद नहीं रहा। लेकिन पाकिस्तान ने इस्लाम को राजधर्म बनाया। इस तरह पाकिस्तान में हिंदू, पारसी, सिख आदि अल्पसंख्यक हो गए। वे पाकिस्तान में असुरक्षित और उत्पीड़ित हुए। पं. नेहरू के समय ही पाकिस्तान हिंदू व सिखों को नागरिकता मिली। श्रीलंका के तमिलों को भी नागरिकता दी गई।

भारत का मन मानवीय संवेदना से भरापूरा है। ताजे नागरिकता संशोधन कानून में अफगानिस्तान, पाकिस्तान व बांग्लादेश के पंथ आधारित पीड़ितों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है। नागरिकता संशोधन कानून का भारत के मुसलमानों से कोई लेना देना नहीं है। भारत के किसी भी संप्रदाय के किसी भी नागरिक से इस कानून का कोई संबंध नहीं है। मोदी विरोधी राजनीति ने अल्पसंख्यक मुसलमानों में हमेशा भय बनाए रखने का निंदनीय कृत्य किया है। वे राष्ट्रवाद को मुस्लिम विरोधी बताकर डराते रहे हैं और उन्हें वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करते रहे हैं। वे झूठ प्रचारित कर रहे हैं कि भारतीय मुसलमानों को देश से बाहर कर दिया जाएगा। छह गैर भाजपा शासित मुख्यमंत्रियों ने इस कानून को अपने राज्यों में न लागू करने की असंवैधानिक चुनौती दी है। संविधान की 7वीं अनुसूची की केंद्रीय सूची पर संसद द्वारा पारित कानून लागू करना राज्य का संवैधानिक कर्तव्य है। ये संविधान की दुहाई देते हुए संविधान की ही धज्जियां उड़ा रहे हैं।

अब नागरिकता संशोधन कानून के साथ नागरिकता रजिस्टर के सवालों का भी घालमेल किया जा रहा है। राष्ट्र के सामने कई महत्वपूर्ण प्रश्न हैं। आग लगाने व हिंसा फैलाने की कार्रवाई क्या राष्ट्र राज्य के विरुद्ध युद्ध नहीं है। मौलिक अधिकार भी लोकव्यवस्था की सीमा में हैं। सिविल और राजनीतिक अधिकार अंतरराष्ट्रीय संविदा (1966) का अनुच्छेद 27 पठनीय है कि ‘अल्पसंख्यकों को अपने समूह के सदस्यों के साथ स्वयं की संस्कृति का आनंद लेने, अपना धर्म मानने, उस पर आचरण करने के अधिकार से वंचित नहीं किया जाएगा।’ भारत के अल्पसंख्यकों को ऐसे अधिकार भारतीय संविधान ने 1949 में ही दे दिए थे। पाकिस्तान, अफगानिस्तान में ऐसे सुस्पष्ट संवैधानिक अधिकार नहीं हैं। इसीलिए इस नए कानून का स्वागत किया जाना चाहिए। घुसपैठिए और शरणार्थी में भेद है। सर्वोच्च न्यायालय ने घुसपैठ को देश पर आक्रमण बताया था।

(लेखक उत्‍तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष हैं) 

यह भी पढ़ें:- 

नागरिकता संशोधन कानून पर फैली भ्रांतियों को दूर करने के लिए सरकार उठाए प्रभावी कदम

CAA Protest: माहौल शांत करने को यूं निभाएं अपने जिम्‍मेदार नागरिक होने की जिम्‍मेदारी 

Citizenship Amendment Act पर जानें क्‍या कहती हैं बांग्‍लादेश की लेखिका तसलीमा नसरीन