[डॉ. कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन]: हाल में लोकसभा से पारित अंतरिम बजट 2019-20 में औसत नागरिकों, विशेषकर मध्यम वर्ग के जीवन को आसान बनाने के लिए कई कदम उठाए गए हैं। चूंकि बजट में घोषित विभिन्न कदम पिछले पांच वर्षों में किए गए अनगिनत उपायों की परिणति के प्रमाण हैं इसलिए हमें यह बात भली-भांति समझनी चाहिए कि इस दौरान मध्यम वर्ग के आम लोगों का जीवन किस तरह से अत्यंत आसान हो गया है। विशेषकर महंगाई में आई उल्लेखनीय कमी और वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी की बदौलत प्रभावी कर दरें घट जाने से बचत बढ़ने और उपभोग पर खर्च घटने से लोगों की क्रय क्षमता में खासा इजाफा हुआ है। महंगाई आम लोगों के लिए बहुत दुखदायी होती है। यह एक तरह का कष्टदायक कर होती है।

जो महंगाई दर वर्ष 2013-14 में 10.1 प्रतिशत के उच्च स्तर पर पहुंच चुकी थी वह दिसंबर 2018 में काफी घटकर सिर्फ 2.2 प्रतिशत के स्तर पर आ गई। महंगाई के वास्तविक असर को समझने के लिए हमें यह बात अवश्य याद रखनी चाहिए कि महंगाई आम जनता की गाढ़ी कमाई से खाद्य पदार्थों, कपड़े और अन्य आवश्यक वस्तुओं को खरीदने की उनकी क्षमता को बुरी तरह प्रभावित करती है। यदि एक किलोग्राम चावल की कीमत वर्ष 2014 में 50 रुपये थी और यदि महंगाई दर पिछले पांच वर्षों के दौरान निरंतर दहाई अंकों में बरकरार रहती तो ठीक उतने ही यानी एक किलोग्राम चावल की कीमत आज 80 रुपये बैठेगी। अब इसकी दूसरी तस्वीर पर गौर कीजिए।

यदि पांच वर्षों की इस अवधि के दौरान महंगाई दर के औसतन 4.5 प्रतिशत रहने से ठीक उतने ही यानी एक किलोग्राम चावल की कीमत आज 62.5 रुपये है। अत: प्रति माह 5,000 रुपये खर्च करने वाला परिवार आज 80 किलोग्राम चावल खरीद सकता है, जबकि महंगाई दर के वर्ष 2014 के स्तर पर ही बरकरार रहने की स्थिति में यह परिवार केवल 62.5 किलोग्राम चावल ही खरीद पाता। इसका मतलब यही हुआ कि महंगाई दर के नरम रहने से परिवार की क्रय क्षमता लगभग 28 प्रतिशत बढ़ गई है। कुल मिलाकर किसी भी औसत परिवार द्वारा उपभोग की जाने वाली विभिन्न वस्तुओं के मामले में यह बढ़ी हुई क्रय या खरीद क्षमता से संबंधित परिवार की खुशहाली में आशातीत वृद्धि हुई है, क्योंकि उसके बजट में एक बड़ा हिस्सा इन वस्तुओं का ही होता है।

दूसरी अहम बात यह है कि महंगाई का असर बचत की वास्तविक दरों पर भी पड़ता है। जब महंगाई दर वर्ष 2014 तक दहाई अंकों में थी तब कोई भी बचतकर्ता प्रति वर्ष (-)2 प्रतिशत ब्याज अर्जित करता था। दूसरे शब्दों में, किसी सावधि जमा में अपनी गाढ़ी कमाई निवेश कर एक औसत नागरिक अपनी क्रय क्षमता को बढ़ाने के बजाय कम करता जा रहा था। इसके विपरीत, पिछले चार वर्षों में महंगाई की औसत दर लगभग 4 प्रतिशत रहने के परिणामस्वरूप बचत की वास्तविक दरें तकरीबन 3 प्रतिशत आंकी गईं जो सही मायनों में पांच प्रतिशत की वृद्धि दर्शाती हैं। अत: यदि महंगाई दर वर्ष 2014 के स्तर पर ही बरकरार रहती तो बचतकर्ताओं की क्रय क्षमता वर्तमान स्तर के मुकाबले लगभग 25 प्रतिशत कम होती। चूंकि वरिष्ठ नागरिक अपनी सेवानिवृत्ति राशि को विशेषकर सावधि जमाओं में लगाकर उस पर अर्जित होने वाले ब्याज पर ही निर्भर रहते हैं, इसलिए बचत राशि की क्रय क्षमता बढ़ने से ये पेंशनभोगी ही सबसे अधिक लाभान्वित होते हैं।

एक महत्वपूर्ण ढांचागत बदलाव यथा मौद्रिक नीति की रूपरेखा के कार्यान्वयन की बदौलत ही कम महंगाई संभव हो पाई है। दरअसल, मौद्रिक नीति की रूपरेखा के तहत भारतीय रिजर्व बैंक ने महंगाई दर को 2 से 6 प्रतिशत के बीच लक्षित किया। महंगाई को कम करने में मिली सफलता विशेष मायने रखती है, क्योंकि महंगाई का कम होना ही वह पहला, लेकिन अत्यंत महत्वपूर्ण कदम है जिससे आम जनता के साथ-साथ कंपनियों के लिए भी उधारी लागत को घटाना संभव हो पाता है।

देश का मध्यम वर्ग कम महंगाई के लाभ के असर को पहले ही महसूस कर चुका है, जो होम एवं कार लोन पर देय ब्याज के साथ-साथ क्रेडिट कार्ड की भुगतान राशि में कमी के रूप में प्राप्त हुआ है। आर्थिक विकास की तेज रफ्तार हासिल करने वाले प्रत्येक देश ने इस मोर्चे पर कामयाबी पाई है, क्योंकि उधारी लागत घटने से अर्थव्यवस्था की विभिन्न गतिविधियों में निवेश को काफी बढ़ावा मिलता है। मध्यम वर्ग द्वारा अदा किए जाने वाले प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष करों की प्रभावी दरों में कमी के साथ-साथ कर रिटर्न दाखिल करना और रिफंड प्राप्त करना आसान हो जाने से भी मध्यम वर्ग काफी लाभान्वित हुआ है।

अब हम जीएसटी के असर पर विचार करते हैं। जीएसटी लागू होने से पहले और उसके बाद के पारिवारिक खर्च का विश्लेषण करने से यह तथ्य उभरकर सामने आया है कि लगभग 100 वस्तुओं पर टैक्स की दरें घट गई हैं जिनमें खाद्य एवं पेय पदार्थ, हेयर ऑयल, टूथपेस्ट, साबुन, वाशिंग पाउडर, जूते-चप्पल इत्यादि शामिल हैं। यदि हम हर महीने इन वस्तुओं पर 8,400 रुपये खर्च करने वाले परिवार पर विचार करते हैं तो हम पाते हैं कि जीएसटी के तहत उसके द्वारा अदा की गई टैक्स राशि 320 रुपये कम हो गई है, क्योंकि दोहरा कर अब समाप्त हो गया है।

उपभोक्ता आम तौर पर किसी भी उत्पाद की पैकेजिंग पर छपी जीएसटी दर पर ही अपनी नजर डालते हैं और वे यह मान लेते हैं कि टैक्स की प्रभावी दर बढ़ गई है। हालांकि, जीएसटी का भुगतान केवल मूल्य वर्धन (वैल्यू एडिशन) या बढ़े हुए मूल्य पर ही किया जाता है। अत: उपभोक्ताओं को केवल जीएसटी दर के बजाय जीएसटी के तहत अदा की गई वास्तविक राशि को ही ध्यान में रखना चाहिए।

टैक्स की प्रभावी दर में कमी करने के साथ-साथ टैक्स रिटर्न दाखिल करना भी काफी आसान कर दिया गया है, ताकि मध्यम वर्ग के ज्यादातर लोग अपने-अपने टैक्स रिटर्न ऑनलाइन दाखिल कर सकें और जल्द ही रिफंड प्राप्त कर सकें। सरकारी कोशिशों से 99.54 प्रतिशत रिटर्न के लिए किसी भी टैक्स अधिकारी या कर्मचारी से संपर्क करने की जरूरत नहीं पड़ी है। वहीं, दूसरी ओर जिन 0.46 प्रतिशत रिटर्न के लिए किसी टैक्स अधिकारी या कर्मचारी से संपर्क करने की जरूरत पड़ी है, उनमें मध्यम वर्ग के ईमानदार करदाताओं के शामिल होने की संभावना नहीं है।

आम जनता के लिए कर अनुपालन अत्यंत आसान हो गया है। दरअसल, इन परिवर्तनों की बदौलत सरलीकरण का वह अगला चरण शुरू करने का भी समय अब आ गया है, जिसमें 24 घंटे के अंदर ही टैक्स रिटर्न का आकलन हो जाएगा और इसके साथ ही रिफंड की प्रोसेसिंग भी पूरी हो जाएगी। बजट भाषण में भी इसका उल्लेख किया गया है। कुल मिलाकर, मध्यम वर्ग के लिए बजट में घोषित किए गए अनगिनत लाभ विगत पांच वर्षों के दौरान निर्मित महत्वपूर्ण संरचना की विशेष अहमियत को दर्शाते हैं।

( लेखक भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार हैं )