संजीव कुमार झा। हर वर्ष मार्च में सामान्य आयकर दाता वर्ग का एक बड़ा तबका आयकर बचाने के नए-नए उपाय खोजने की कोशिशों से जूझता मिलता है। यह सहज-स्वाभाविक है, क्योंकि बचत भविष्य की सुरक्षा के लिए बेहद जरूरी है। खासतौर पर पिछले वर्ष कोरोना संकट के दौरान लाखों नौकरीपेशा लोगों को जिन आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, उसने लगभग एक पूरी पीढ़ी को बचत को और अधिक गंभीरता से लेने के लिए मजबूर किया है। हर आयकर दाता चाहता है कि उसे कमाई का न्यूनतम हिस्सा टैक्स के रूप में देना पड़े। लोगों में बचत के प्रति जिस हद तक जागरूकता बढ़ी है उसे देखते हुए बहुत से करदाताओं को टैक्स बचाने वाली योजनाओं के ऑफर निरंतर एसएमएस, फोन और ई-मेल के माध्यम से मिल रहे हैं।

सरकार ने भी करदाताओं के समक्ष आयकर बचाने के कई उपकरण पेश किए हुए हैं, जिनमें निवेश के माध्यम से वे पूरे वित्त वर्ष के दौरान हुई आय पर लगने वाले टैक्स का बड़ा हिस्सा बचा सकते हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षो के दौरान यह भी देखने में आया है कि इन्हीं महीनों के दौरान बहुत से करदाता टैक्स बचाने के फेर में ऐसी योजनाओं में निवेश कर लेते हैं जिनसे तात्कालिक रूप से तो टैक्स की बचत होती दिखती है, लेकिन दीर्घकाल में वे परेशानी का सबब बन जाती हैं। ऐसे में जरूरी है कि करदाता जब टैक्स बचाने की पड़ताल करें तो कुछ बातों का विशेष रूप से ध्यान रखें।

सबसे पहली बात, ऐसी किसी भी योजना में निवेश का फैसला करने वाले करदाताओं का प्राथमिक उद्देश्य बचत होता है। कोई भी निवेश अगर बचत की बुनियादी अवधारणा पर खरा नहीं उतरता, तो वह निवेशक के लिए बहुत काम का नहीं होता है। किसी भी योजना में निवेश से पहले इस बुनियादी तथ्य को समझ लेना बेहद जरूरी है। दिक्कत यह है कि टैक्स बचत का दावा करने वाली योजनाओं के सलाहकार भी ज्यादातर मामलों में करदाताओं के समक्ष उस तात्कालिक बचत का ही जिक्र करते हैं। वे अक्सर उन योजनाओं से जुड़े दीर्घकालिक जोखिमों का जिक्र करने से बचते हैं। खासतौर पर पेशेवर जिंदगी की शुरुआत करने वाले युवाओं के समक्ष यह प्रश्न और ज्यादा चुनौतीभरा होता है, क्योंकि उन्हें टैक्स बचाने के साथ-साथ भविष्य की भी चिंता होती है। इंश्योरेंस और म्यूचुअल फंड कंपनियां भी अधिकतर उन्हीं युवाओं को लक्षित करती हैं, जिनकी बचत की आदत अभी तक बनी नहीं है। उन्हें विभिन्न कंपनियां ललचाने वाले ऑफर्स पेश करती हैं। ऐसे में यह जानना जितना मुश्किल है उतना ही जरूरी भी कि टैक्स बचत के लिए किन योजनाओं का सहारा लिया जाए और किस हद तक लिया जाए।

इसका जवाब बेहद सरल है। इसे एक उदाहरण से समझते हैं। मान लीजिए आपके पास किसी कंपनी की तरफ से निवेश का एक ऑफर आता है जिसमें कहा जाता है कि अमुक योजना के तहत टैक्स भी बचाया जा सकता है और एक निश्चित समय के बाद इतना गुना रिटर्न भी मिल सकता है। प्रारंभिक तौर पर यह ऑफर बेहद आकर्षक लग सकता है। लेकिन जब इस योजना की तह में जाते हैं और उस योजना के ट्रैक रिकॉर्ड का विश्लेषण करते हैं तो पता चलता है कि आपकी निवेश योजना बाजार जोखिमों से जुड़ी थी और आपने जितनी अवधि के लिए निवेश किया था, उस अवधि में उस योजना ने बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं किया। ऐसे में योजना की अवधि खत्म हो जाती है और उसके बाद निवेशकर्ता को लगता है कि उसमें निवेश से बेहतर था कि उतनी रकम बैंक खाते में ही छोड़ दी जाती। शायद तब भी उस निवेश के मुकाबले बैंक दर पर बेहतर ब्याज मिल जाता। बहुत से बचतकर्ताओं का यही संगठित अनुभव कहीं न कहीं लोगों को भविष्य निधि संगठन समेत अन्य उन सरकारी योजनाओं में निवेश को प्रेरित करता है जिनमें रिटर्न बहुत अधिक भले नहीं हो, लेकिन जमा रकम की सुरक्षा और रिटर्न की गारंटी रहती है।

दूसरी बात, वर्तमान निश्चित रिटर्न वाली चुनिंदा सरकारी योजनाओं को छोड़ दें, तो बाकी सभी योजनाओं का रिटर्न कमोबेश बाजार जोखिमों के अधीन है। यही वजह है कि निवेश पर कमाई पूरी तरह से इस पर निर्भर है कि आपकी जोखिम लेने की क्षमता कितनी है। वर्तमान में ऐसी दर्जनों म्यूचुअल फंड और अन्य योजनाएं हैं जिनमें निश्चित रिटर्न की भले कोई गारंटी नहीं हो, लेकिन उनका सकल रिटर्न कई अन्य निवेश उपकरणों के मुकाबले अधिक है। लेकिन इस तरह की योजनाएं उन निवेशकों के लिए मुफीद हो सकती हैं जिन्होंने उस निवेश से संभावित आय के साथ भविष्य की कोई योजना नहीं जोड़ रखी हो। जाहिर है, उन योजनाओं में सिर्फ टैक्स बचत के लिहाज से निवेश किया जाए तो वह घाटे का सौदा भी हो सकता है।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि निवेश का टैक्स बचाने से सीधा संबंध नहीं है। बचत एक आदत है। सरकार द्वारा किसी भी योजना में निवेश को टैक्स बचत के दायरे में रखने का उद्देश्य यही रहता है कि निवेशक बचत के लिए प्रेरित हों, क्योंकि भविष्य में यही काम आने वाला है। ऐसे में निवेशकों के लिए बेहतर यही है कि वे सिर्फ टैक्स बचाने के लिए कभी निवेश नहीं करें। निवेश का मौलिक मकसद बचत होता है, भविष्य की सुरक्षा होती है। महज इनकम टैक्स बचत को किसी भी योजना में निवेश का आधार बनाना बेहद जोखिमभरा साबित हो सकता है।