गौरव कुमार। India-China Relations: चीन से उपजी कोविड-19 यानी कोरोना वायरस से पूरी दुनिया जूझ रही है और यह एक संयोग ही है कि एक अप्रैल को भारत-चीन के राजनयिक संबंधों के भी 70 वर्ष पूरे हुए हैं। हालांकि कोरोना के कारण यह वर्षगांठ फीकी रही, लेकिन ऐसे दौर में जब विश्व के कई देश इस संकट के लिए चीन को उत्तरदायी ठहरा रहे हैं, भारत और चीन के बीच संबंधों का आकलन अहम हो जाता है।

इस परिप्रेक्ष्य में यह भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि कोरोना संकट के बीच भारत और चीन अपने संबंधों को कैसे संतुलित रख पाते हैं और कोरोना के बाद की दुनिया में विश्व का ध्रुवीकरण कैसे होगा? इसमें भारत की रणनीति कैसी होगी? भारत और चीन ने अपने संबंधों की 70वीं वर्षगांठ इन परिस्थितियों में मनाई, जहां संबंधों के बीच संदेह और अनिश्चितता भी बनी हुई है।

भारत-चीन के राजनयिक संबंध :  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग की कुछ महीने पहले मामल्लपुरम में जो बैठक हुई थी उसमें दोनों देशों के बीच ऐसी सहमति बनी थी कि भारत-चीन के राजनयिक संबंधों के 70 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में 70 प्रकार के कार्यक्रम दोनों देशों के समन्वय के साथ आयोजित होंगे, किंतु कोरोना महामारी के कारण यह आयोजन संभव नहीं हो सका। हालांकि इस अवसर पर दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने आपस में शुभकामना संदेश का आदान-प्रदान जरूर किया और अपने संबंधों की विरासत को याद किया। ऐसे में आशा की जानी चाहिए कि इस संकट के बावजूद दोनों देशों के संबंध गर्मजोशी से भरे रहेंगे और वैश्विक प्रतिक्रियाओं का प्रभाव दोनों देशों के आपसी संबंधों पर नहीं पड़ेगा।

विश्व की आर्थिक महाशक्ति बनने की चीन की मंशा : यह सर्वविदित तथ्य है कि कोरोना वायरस सबसे पहले चीन में फैला और यहां हजारों लोग मारे गए, किंतु कई जगह और कई माध्यमों से इन आंकड़ों को गलत साबित करते हुए इस संख्या को कम बताया जा रहा है। कहा यह भी जा रहा है कि चीन की यह पुरानी आदत रही है कि वह जानकारी छिपाता है या विश्व समुदाय तक अपनी बहुत सी जानकारी पहुंचने ही नहीं देता। ऐसे सवाल मीडिया और विश्व समुदाय के विभिन्न मंचों से उठ रहे हैं कि यह वायरस चीन द्वारा जानबूझकर फैलाया गया है। इसके पीछे तर्क यह दिया जा रहा है कि विश्व की आर्थिक महाशक्ति बनने की चीन की पुरानी मंशा रही है और वह इस तरह की मानसिकता को पूरा करने के लिए जैविक हथियार का प्रयोग कर सकता है।

कोरोना के विश्वव्यापी प्रकोप : कोरोना की समस्या निश्चित रूप से चीन के साथ विश्व के अन्य देशों के संबंधों को बुरी तरह से प्रभावित करने वाला है। ऐसे में अंदेशा है कि विश्वयुद्ध और शीतयुद्ध के बाद वैश्विक समीकरण जिस प्रकार का बना था ठीक उसी प्रकार इस महामारी के बाद विश्व दो ध्रुवों में बंट सकता है जिसमें एक तरफ चीन होगा और दूसरी तरफ अमेरिका। भारत की स्थिति दोनों में से किसी एक के साथ रहने की बन सकती है और यहां संभव है कि भारत एक बार फिर गुटनिरपेक्षता की अपनी नीति को अमल में लाए। कोरोना के विश्वव्यापी प्रकोप को देखते हुए चीन पर कई तरह के सवाल तो उठ ही रहे हैं, साथ ही एक नवीन वैश्विक व्यवस्था की भी परिकल्पना सामने आने लगी है। ऐसे में भारत का रुख क्या होगा या क्या होना चाहिए यह एक बड़ा प्रश्न है। हालांकि वर्तमान परिदृश्य के हिसाब से देखा जाए तो दुनिया के ज्यादातर देश आने वाले समय में चीन के खिलाफ लामबंद होंगे, तो ऐसे में चीन को भारत की ज्यादा जरूरत महसूस होगी।

भारत की अहमियत दुनिया भर में बढ़ी : भारत और चीन एक पुरानी सभ्यता होने के साथ ही दोनों देश वैश्विक पटल पर महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। विकासशील देश होने के बावजूद वैश्विक जिम्मेदारियों का निर्वहन भी दोनों देशों ने साथ मिल कर किया है। दूसरी तरफ देखें तो अमेरिका के साथ भी भारत के संबंध अब तक के इतिहास में सबसे उत्कृष्ट स्तर पर है। एक तथ्य यह भी है कि अमेरिका और भारत दोनों का चीन के साथ बेहतर आर्थिक संबंध रहा है। ऐसे में बहुपक्षीय विश्व व्यवस्था में यदि अमेरिका का चीन के साथ आर्थिक संबंध खराब होता है तो भारत का संबंध भी अछूता नहीं रहेगा। वैसे कोरोना के कारण जिस प्रकार से वैश्विक हालात में बदलाव आ रहे हैं, उसमें भारत की अहमियत दुनिया भर में बढ़ सकती है और चीन की ओर उन्मुख देश भी भारत के साथ आ सकते हैं।

भारत की सबसे बड़ी कूटनीतिक जीत तभी संभव है यदि भारत गुटनिरपेक्षता की नीति अपना ले। भारत को अपनी कूटनीति का लाभ लेकर अपने हितों पर ध्यान देना चाहिए। चीन और अन्य प्रभावित देशों को इस संकट से निपटने के लिए एकजुट होना होगा और अपने अनुभवों को लगातार साझा करते हुए वैश्विक सहयोग को बल देने की आवश्यकता है। यह संकट नकारात्मक वैश्विक संघर्ष को जन्म दे सकता है।

वैश्विक मानवीय संकट : अत: सभी संबंधित देशों को इस विवाद से बचने के लिए बहुपक्षीय वार्ता से समाधान तलाशना चाहिए। चीन को इस दिशा में अधिक प्रयास करने की जरूरत है, क्योंकि अमेरिका और अन्य प्रभावित देश लगातार चीन के लिए एक नकारात्मक माहौल बना रहे हैं। भविष्य में इसका खामियाजा केवल चीन को ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को भुगतना होगा। बहरहाल हम यही आशा करेंगे की इस वैश्विक मानवीय संकट से हम शीघ्र उबर जाएंगे और साझा विश्व विरासत को पुनर्जीवित करने के लिए समन्वित प्रयास करेंगे।

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