कौशल किशोर। हरिद्वार में पवित्र कुंभ की शुरुआत हो चुकी है। इस आयोजन में देश-विदेश के तमाम पंथों के अनुयायी यहां आते रहे हैं। हालांकि कोरोना जनित कारणों से इस बार इसका आयोजन पहले की तरह भव्य नहीं होगा। इस कड़ी में गुरुद्वारा ज्ञान गोदड़ी का मामला एक अर्से से चर्चा में है। इसका संदर्भ गुरु नानक देव जी के प्रथम उदासी के दौरान वर्ष 1504-05 की हरिद्वार की तीर्थयात्र से है।

दरअसल अयोध्या राम मंदिर मामले में सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत किए गए एक दस्तावेज में गुरु नानक देव जी की दूसरी उदासी के दौरान सन 1510-11 की यात्र का जिक्र भी है। सिखों के पहले गुरु की करीब पांच सदी पुरानी इस यात्र का जिक्र उच्चतम न्यायालय के राम मंदिर वाले मामले के आदेश में होने से आपसी भाईचारे का ही संज्ञान मिलता है। उस दौर में लंबी यात्रएं करने के कारण उन्हें विश्व इतिहास का दूसरा सबसे लंबी दूरी तय करने वाला पथिक कहा जाता है। घर से लंबे समय तक दूर रहने के कारण इन यात्रओं को उदासी कहा गया था। इस वजह से कालांतर में सिख पंथ का मार्गदर्शन करने वाले कई दर्शनीय स्थलों का पता चला।

गुरु नानक देव जी के प्रवास के तथ्य : वस्तुत: अयोध्या पहुंच कर सरयू में स्नान करने से पूर्व गुरु नानक देव जी ने हरिद्वार में गंगा स्नान किया था। इस तीर्थ के प्रमुख स्थल हर की पौड़ी पर करीब 42 साल पहले तक मौजूद रहा ज्ञान गोदड़ी उनके इसी प्रवास की निशानी है। दरअसल सहारनपुर के मंडलायुक्त ने 1978 में सौंदर्यीकरण के लिए इसे मांगा था। तभी से सिख यहां से बेदखल रहे हैं। सेवा और संगत का काम भी बंद है। इस दाग को धोने का प्रयास एक अर्से से जारी है। अब राम मंदिर आंदोलन की सफलता से खालसा पंथ की मुराद पूरी होने की क्षीण होती संभावनाओं को बल मिला है।

गुरुद्वारा ज्ञान गोदड़ी के सौंदर्यीकरण और विकास का मामला सरकार की उदारता का अनूठा उदाहरण है। नानक की तीर्थयात्र से जुड़ा होने के बावजूद इसके निर्माण का सटीक ब्यौरा पब्लिक डोमेन में उपलब्ध नहीं है। हालांकि तीर्थयात्रियों की लेखनी इस काम में मददगार साबित होती है। अपनी 1930 की साइकिल यात्र का जिक्र करते हुए पटियालावाले भाई धन्ना सिंह लिखते हैं कि किस तरह की कठिनाइयों का सामना करते हुए तीन कमरों का यह छोटा सा गुरुद्वारा यात्रियों की सेवा में संलग्न है। हरिद्वार में हर की पौड़ी क्षेत्र को सुंदर तरीके से विकसित कर इसे लौटाने की नीयत से प्रशासन ने इसे पिछली सदी के सातवें दशक में खाली कराया था। इसी दौर में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हुई। फलत: सिखों के खिलाफ व्यापक माहौल बना और शासन-प्रशासन की मंशा भी बदल गई। यह सौंदर्यीकरण का काम पूरा होने पर अपनाई गई नीति के अवलोकन से स्पष्ट होता है। प्रशासन ने सिखों की इस धरोहर को स्काउट्स एंड गाइड को सौंप दिया। इसकी वजह से विवाद गहरा हुआ।

गुरु नानक देव जी के हरिद्वार प्रवास के बारे में तमाम इतिहासकारों ने तीर्थ पुरोहितों से हुए संवाद का विशेष रूप से जिक्र किया है। भारतीय समाज में विभिन्न पंथों को मानने वाले शांति और सद्भाव के साथ रहते हैं। आतंक और मजहब के बीच का सूत्र खंगालने के आधुनिक दौर में सिखों को उकसाने का यह मामला राजनीति के पेच में उलझता जा रहा है। इस दुर्दशा के कारण सिखों और हिंदुओं के बीच वैमनस्य के बीज अंकुरित होते हैं। इसमें खाद पानी देने में लगी जमात में शामिल तमाम राजनीतिक दलों के अपने हित भी हैं। तर्कशक्ति और ज्ञान के बूते पांडित्य का प्रदर्शन करने वाली जमात के लोग नानक के विचारों से भले सहमत न हों, लेकिन इस विचार पुंज को खत्म करना मुमकिन नहीं है।

ज्ञान गोदड़ी गुरु नानक के हरिद्वार प्रवास की निशानी है। इसलिए यह सिखों की अस्मिता का सवाल हो जाता है। इन्हीं बातों पर विचार कर सरदार जगजीत सिंह ने न्यायालय का रुख किया। इसे लेकर जनांदोलन शुरू करने तक की पूर्व में रूप-रेखा बनाई जा चुकी है। हालांकि उत्तराखंड की जनसंख्या में चार फीसद सिखों की ही भागीदारी है। नानकमता और रीठा साहिब की तरह उनकी आस्था का यह केंद्र राजनीतिक दलों की प्राथमिकता से कोसों दूर है। इसी वजह से सिख संगत पूर्व में डेढ़ दशक तक उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ संगठित होती रही। पिछले दो दशकों से यह प्रदर्शन उत्तराखंड सरकार के विरुद्ध चल रहा है। बीते दिनों अयोध्या में राम मंदिर निर्माण मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले में गुरु नानक देव जी की अयोध्या यात्र का जिक्र होने पर विचार करना जरूरी है। इससे हिंदू और सिखों के बीच का अपनापन भी दुरुस्त होगा।

यह स्थानीय प्रशासन का रचा पुराना तिलिस्म है। इसके कारण तीर्थ पुरोहितों और सिखों के बीच तनाव कायम होता है। यदि ऐसा नहीं होता तो इस गलती को अब तक सुधार लिया गया होता। सवाल उठता है कि क्या इस मसले को हल करने के लिए प्रशासन इस संदर्भ में आंदोलन तेज होने की प्रतीक्षा कर रहा है। देखा जाए तो कानून के राज को प्रशासन ठेंगा दिखा कर गुरु नानक देव जी के अनुयायियों को न्याय के लिए गांधी के शांतिपूर्ण सत्याग्रह की ओर प्रेरित कर रहा है। इस उलझन को शांति से बातचीत कर सुलझाना ही बेहतर विकल्प है। ज्ञान गोदड़ी गुरु नानक देव जी के हरिद्वार प्रवास की निशानी है। चूंकि यह सिखों की अस्मिता से जुड़ा मामला है, लिहाजा इसका हल होना समय की मांग है। 

[सामाजिक मामलों के जानकार]