[ अभिषेक मेहरोत्रा ]: लो जी क्या दौर आ गया है, अब तो हमारी जुबान का मोल ही नहीं रह गया। एक जमाना था कि अगर हमारे टाइप किसी भारीभरकम दिमाग वाले ने अपनी जुबान से कोई बात कह दी तो फिर किसकी मजाल कि उस पर अंगुली उठा सके, पर अब तो जमाना ही उल्टा हो गया है। चंद दिनों पहले की ही तो बात है जब हमारे पप्पन पहलवान ने ही हमारी सौ टके की बात को दो कौड़ी का बना दिया। अरे मामला यूं था कि हमने पप्पन पहलवान को कल बड़े लजीजदार जायके वाली लस्सी क्या पिलाई, उन्होंने तो हम पर ही सर्जिकल स्ट्राइक कर दी।

लस्सी की तारीफ

दरअसल जब वो लस्सी की तारीफ करते हुए बोले कि ऐसी जानदार लस्सी आज तक नहीं पी, कहां से लाए हो ऐसा शुद्ध दही। तब बरबस हमारे मुंह से निकल गया कि भाई लस्सी का दही तो हमारे पड़ोस में पंजाब से आई भैंस के दूध से बना है। लो हम इतना क्या बोल दिए, पप्पन भाई तो हम पर लट्ठ लेकर ही चढ़ गए। बोले-हम कैसे मान लें कि यह भैंस पंजाब की है। हो सकता है यह गाजियाबाद की लोकल ही हो और आप बेवजह डींगें मार रहे हैं। खामखां उन पर अपनी तरफ से पंजाबियत का लेवल चस्पां कर रहे हो। देखा भाई लोगों, अब क्या भैंस का आधार कार्ड लाकर इनको सुबूत दिखाएं। मगर इनसे तो दो कदम आगे हमारी मथुरा वाली मौसी निकलीं, हमारी और पप्पन पहलवान की बहसबाजी सुनकर तुरंत बोलीं, अरे मुन्ना जा पप्पन को उस गाजियाबाद वाली भैंस के तबेले में छोड़ आ, वहां जब भैंस की पांच-सात लात खा-खाकर दूध दोहेगा तो अगली बार से इसके दिमाग में ज्यादा खुजली नहीं होगी।

पप्पन पहलवान

वैसे ऐसी खुजली हमारे पप्पन पहलवान के दिमाग में अक्सर होती रहती है। एक बार वह हमारे साथ हमारी ससुराल गए। वहां हमारे साले साहब का आलीशान तिमंजिला मकान देखकर बोला कि लगता है आपके साले साहब ऊपरी कमाई बहुत करते हैं तो मैंने कहा कि भाई आप तो बस कुछ भी बोल देते हो। अगला मल्टीनेशनल कंपनी में जनरल मैनेजर है तो लाखों में कमाता है, इसलिए आलीशान मकान में रहता है। बस हमारा इतना कहना था कि हमारे पप्पन पहलवान फिर एकदम से उखड़ गए। बोले आप उनका इनकम टैक्स रिटर्न देखो, पक्का कह रहा हूं कि कुछ गड़बड़ निकलेगी। उनका यह कहना ही था कि इतने में वहां हमारे साले साहब के चार्टड अकाउंटेंट भी आ गए और पप्पन पहलवान को देखते हुए तुरंत बोल पड़े, अरे पप्पन गुरु वो तुमने पिछले दो साल की रिटर्न फाइल फीस अभी तक जमा नहीं कराई है।

सुबूत की सियासत

अब न पप्पन भाई साहब इधर देख पा रहे थे न उधर। हमने उन्हें डांटते हुए कहा कि आप ये जो हर बात पर सुबूत मांगते रहते हैं न, किसी दिन आपको इसके चलते ही लेने के देने न पड़ जाएं, मगर पप्पन पहलवान कहां सुधरने वाले, अभी दो रोज पहले ही टकरा गए एक असली पहलवान से। वह चौराहे पर पंजा लड़ा रहा था अपने दूसरे साथी के साथ। बस यह देखते ही पप्पन पहलवान कूद गए उनके बीच और बोले, अरे भाई, पंजा लड़ाने से असली ताकत का पता नहीं चलता, ताकत दिखानी है तो वाकई में कुछ बड़ा करके दिखाओ। कुछ ऐसा करो कि पूरी दुनिया तुम्हारी पहलवानी के सुबूत देख सके। अब पहलवान तो ठहरे पहलवान, ये सुनते ही उन दोनों का पारा पहुंचा सातवें आसमान पर और दोनों ने मिलकर धो डाला पप्पन को, उनके ऊपर निकाल दी अपनी पूरी भड़ास। पप्पन पहलवान इस बार जब हमसे मिलने आए तो उनके हाथ-पैर पर बंधी पट्टियां और सूजी आंखें अपने आप इतने सुबूत दे रही थीं कि हम उनसे बिना पूछे ही समझ गए कि इस बार लगता है सुबूत कुछ ज्यादा भारी पड़ गए हैं।

सुबूतों के तलबगार

पर सुबूतों के तलबगारों में शुमार हो चुके पप्पन पहलवान को मोहल्ले वाले कहां छोड़ने वाले थे, सबने उनसे कहा कि क्यों पप्पन इस बार तो सुबूतों की फाइल शरीर पर लिए घूम रहे हो। अब यह बताओ कि कौन से सुबूत का दर्द सबसे ज्यादा है। जैसे ही पप्पन ने कहा कि अरे चचा, दर्द तो सबसे ज्यादा नाक में हो रहा है, जिस पर पंजे वाले पहलवान का मुक्का पड़ा था, इतना सुनते ही शैतान टिल्लू ने पप्पन की नाक क्या छुई, पप्पन तुरंत चीख उठे। उनकी चीख सुनते ही टिल्लू बोला, लो जी इस बार तो पक्का वाला सुबूत मिल गया है पप्पन चाचा को।

उनकी तेज चीख बता रही है कि वाकई नाक में दर्द तो है अंकल के। ये सुनकर हमसे रहा न गया और हमने सलाह दे डाली, भाई पप्पन ढंग से दवा करना ताकि ये सुबूत जल्दी ही गायब हो जाएं वरना क्या पता पूरी उम्र इनमें से कुछ सुबूत लेकर ही बितानी पड़े। अब यह तो भगवान ही मालिक है कि वह जिस डॉक्टर के पास इलाज कराने के लिए जाएं कहीं उसी से ही कोई सुबूत मांगकर अपना बंटाधार न करा लें।

[ लेखक हास्य व्यंग्कार हैं ]