Analysis: महिलाओं की जिंदगी बदलती शराबबंदी, शराब के कारण सताई जाती हैं औरतें
बिहार में शराबबंदी से और कुछ हुआ हो या न हो, लेकिन गरीब महिलाओं का जीवन खुशहाल बन रहा है
[क्षमा शर्मा]। घरों में काम करने वाली गरीब औरतों से पूछिए तो उनमें से कुछ अवश्य ही अपने प्रति की गई हिंसा, गाली-गलौज, मार-पीट के लिए जिस चीज को सर्वाधिक जिम्मेदार मानती हैं वह है शराब। आम तौर पर उनका यही कहना होता है कि जब उनके पति शराब नहीं पीते तो वे बड़े भले आदमी दिखते हैं। उस दौरान वे मार-पीट भी नहीं करते। घर चलाने के लिए खर्चा भी देते हैं, मगर ऐसा होता बहुत कम है। अक्सर तो वे अपनी मेहनत की कमाई शराब में उड़ाते ही हैं, रात-दिन हाड़ तोड़कर जितना पैसा ये औरतें कमाती हैं उसे भी छीन लेते हैं और उसे शराब पर खर्च कर देते हैं। घर कैसे चले, बच्चे क्या खाएं, कैसे पढ़ें, घर का किराया कैसे दिया जाए, कोई बीमार हो तो उसका इलाज कैसे हो, इसकी चिंता उन्हें नहीं होती। जब इस लेखिका ने अपनी घरेलू सहायिका से पूछा कि तुम जैसी काम करने वाली महिलाओं के कितने घर वाले शराब पीते हैं तो उसने कहा-सबके सब। जो नहीं पीता उसे भी जबर्दस्ती पीने की आदत डाल देते हैं। उसने तो गुस्से में यह भी कहा कि पता नहीं किसने इस शराब को बनाया। जिसने भी बनाया हो उसे सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए और शराब कहीं नहीं मिलनी चाहिए।
एक तरफ इन गरीब औरतों के दुख हैं, जो कभी उस पेज थ्री कल्चर के लिए दुख नहीं बनते जहां इन दिनों शराब पीना आपकी सामाजिक हैसियत से जोड़ दिया गया है और जो शराब नहीं पीता, उसकी कोई सामाजिक हैसियत नहीं होती। यही नहीं, उसका मजाक भी उड़ाया जाता है। बचपन में अक्सर घर में इस तरह की बातें होती थीं-अरे उसका आदमी बड़ा खराब है। शराब पीकर अपनी औरत को मारता है। उन दिनों गांव में कोई- कोई ही शराब पीता था और जो पीता था उसके बारे में पूरा गांव जानता था। सच तो यह है कि न केवल जानता था, बल्कि उसे हेय दृष्टि से देखता था। लोग उससे बचकर चलते थे और बातचीत करना पसंद नहीं करते थे। वही बचपन के गांव में अब शराब न पीने वाला कोई-कोई ही मिलता है।
यह भी याद करें कि सत्तर-अस्सी के दशक में विभिन्न महिला संगठन महिलाओं को मारपीट से निजात दिलाने के लिए किस तरह शराब बंदी अभियान चलाते थे। इसके तहत वे मोर्चा तक निकालते थे। अब शराबबंदी के विज्ञापन उन क्लीनिक्स की तरफ से दिखाई देते हैं जो शराब छुड़वाने के लिए लोगों का इलाज करते हैं। महिला संगठनों की शराब के विरोध में उठती आवाजें अब बेहद धीमी हो गई हैं। सरकारें भी बड़े बेमन से शराब बंदी जैसे कदम उठाती हैं, क्योंकि सरकारों का कहना होता है कि इससे उनके राजस्व में काफी कमी आती है। एक ओर जहां घरेलू हिंसा के खिलाफ कानून हैं और महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने के लिए तरह-तरह के उपायों और पुलिस एवं अन्य एजेंसियों की मदद की बात की जाती है वहीं शराब की वजह से होने वाली हिंसा के प्रति अक्सर आंखें मूंद ली जाती हैं। देश भर से शराब के कारण सताई जाती औरतों के आंकड़े आते ही रहते हैं।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बार-बार कह चुके हैं कि उन्होंने बिहार में शराबबंदी औरतों की मदद के लिए ही की थी। हालांकि दबे सुरों से यह कहा जाता है कि बेशक बिहार में शराब बंदी लागू हो, लेकिन शराब वहां चोरी-छिपे और कई गुने दामों पर मिलती है। इसमें सच्चाई हो सकती है, लेकिन हाल में एक सर्वे के जरिये छपी खबर में बताया गया कि बिहार में शराब बंदी के कारण सैकड़ों औरतों की जिंदगी में बहुत शांति आ गई है। उनके आदमियों ने शराब छोड़ दी है तो अब वे घर आकर उन्हें मारते-पीटते नहीं हैं। एक औरत ने कहा कि वह तो इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकती थी कि कभी उसके घर में भी कोई कमरा पक्का बन पाएगा, मगर जबसे उसके पति ने शराब पीना बंद किया तब से वह पैसा घर में लाकर देने लगा। इस कारण बचत होने लगी और आखिरकार घर का एक कमरा भी पक्का बन गया। उसके पति ने बताया कि वह सात हजार रुपये महीने कमाता है। पहले तो वह मौका मिलते ही शराब की दुकान की तरफ चला जाता था, लेकिन शराबबंदी के कारण अब वह काम से सीधे घर लौटता है।
ऐसे ही कारणों से बिहार की औरतें बेझिझक नीतीश कुमार की तारीफ कर रही हैं। इन औरतों में अधिकांश वे हैं जो गरीब हैं। इनमें बहुत सी दलित-आदिवासी हैं। इन औरतों की आवाज अक्सर सब तक नहीं पहुंच पातीं-मीडिया तक भी नहीं। पहले जहां गरीबों के मोहल्ले में इक्का-दुक्का घर ही पक्के दिखते थे वहीं अब वहां बहुत से मकान पक्के नजर आते हैं । यही नहीं लोगों के जीवन स्तर में भी सुधार हुआ है। बतौर उदाहरण जिस गांव में सात सौ लीटर दूध बिकता था वहां अब एक हजार लीटर बिकता है। इसका मतलब यही है कि शराब से जो पैसे बच रहे हैं उससे लोग और उनका परिवार दूध पीने लायक भी हुआ है, अन्यथा दूध तो गरीबों के लिए उपलब्ध ही नहीं होता। गांव में लोग गाय, भैंस, बकरी, मुर्गियां पालने के बारे में सोचा भर करते थे, लेकिन अब जैसे ही थोड़ी सी बचत होती है, लोग घर में जानवर पाल लेते हैं। जिससे उन्हें भी दूध, घी, मक्खन, छाछ का स्वाद मिल सके। यही नहीं, लोग अपनी बच्चियों-बच्चों का विवाह भी कर पा रहे हैं। यहां तक कि अक्सर शराब के कारण जो लड़ाई-झगड़े हुआ करते थे उनमें भी कमी आई है।
सोचिए कि अगर शराब को अलविदा कहने भर से गरीबों के जीवन में बदलाव आता है और वे भी आराम से जिंदगी जी पाते हैं तथा महिलाएं तरह-तरह की हिंसा और मारपीट से बचने के साथ बच्चों का जीवन भी संवर रहा है तो इससे अच्छी बात क्या हो सकती है? अक्सर यह कहा जाता है कि गरीब औरतों के जीवन में भी खुशहाली आनी चाहिए, लेकिन इसके लिए जो तमाम जतन करने पड़ते हैं उनसे बचा जाता है। अगर शराबबंदी से न केवल महिलाओं, बल्कि पूरे परिवार को जीने का सहारा मिलता है तो फिर क्यों न राजस्व की चिंता छोड़ इसे बड़े पैमाने पर लागू किया जाए? नि:संदेह यह एक कठिन काम है, लेकिन आखिर हमें गरीब औरतों की भी तो चिंता करनी चाहिए।
(लेखिका साहित्यकार एवं स्तंभकार हैं)