[ पुष्पेंद्र सिंह ]: संसद से कृषि क्षेत्र में सुधार हेतु तीन विधेयक पारित होने के बाद उनके कानून का रूप लेने का इंतजार है। इस इंतजार के बीच इन प्रस्तावित कानूनों का विरोध भी जारी है। यह विरोध सरकार के इस आश्वासन के बाद भी हो रहा है कि इन कानूनों से कृषि क्षेत्र तमाम बंधनों से मुक्त हो जाएगा और फसल उत्पादन, विपणन, भंडारण, प्रसंस्करण क्षेत्रों में निवेश बढ़ेगा, जिससे किसानों को अपनी उपज के अच्छे दाम भी मिलेंगे। किसानों को आशंका है कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य और मंडी व्यवस्था को समाप्त करने की ओर अग्रसर है। हालांकि प्रस्तावित कानूनों में ऐसा कुछ नहीं कहा गया है, पर आशंकाओं से ग्रसित कुछ किसान उनके विरोध में खड़े हो गए हैं।

कृषि क्षेत्र में सुधारों से मंडी और एमएसपी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा 

सरकार ने आश्वासन भी दिया है कि इन सुधारों से मंडी और एमएसपी व्यवस्था पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा और यह व्यवस्था पहले की तरह ही चलती रहेगी। बेहतर हो कि किसानों की आशंकाओं को दूर करने के लिए यह सुनिश्चित किया जाए कि एमएसपी पर फसलों की सरकारी क्रय की व्यवस्था इन सुधारों के कारण कमजोर न हो। इसके लिए एमएसपी की व्यवस्था को वैधानिक मान्यता दे देनी चाहिए। एमएसपी से नीचे फसलों की खरीद वर्जित हो और उसके उल्लघंन पर दंडात्मक कार्रवाई का प्रावधान हो।

लॉकडाउन के चलते देश की कृषि क्षेत्र की विकास दर उत्साहवर्धक

इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही में लॉकडाउन के कारण देश की विकास दर में भारी गिरावट आई, पर कृषि क्षेत्र में विकास दर 3.4 प्रतिशत रही। कोविड महामारी के बावजूद कृषि की यह विकास दर काफी उत्साहवर्धक है। अब कृषि क्षेत्र आवश्यकता से अधिक उत्पादन कर रहा है। 2019-20 में खाद्यान्नों का 29.50 करोड़ टन रिकॉर्ड उत्पादन हुआ। 18.50 करोड़ टन दुग्ध उत्पादन के साथ हम विश्व में प्रथम स्थान पर हैं। बागवानी-फल, सब्जियों का उत्पादन भी 32 करोड़ टन र्वािषक हो रहा है। 2018-19 में 332 लाख टन चीनी उत्पादन कर हम विश्व में प्रथम स्थान पर रहे। केवल खाद्य तेलों या तिलहन को छोड़कर शेष लगभग सभी कृषि एवं खाद्य पदार्थों का आवश्यकता से अधिक उत्पादन हो रहा है। अधिक उत्पादन का अर्थ किसानों की अधिक आय होना नहीं है, क्योंकि खाद्य भंडारण और प्रसंस्करण में आधारभूत ढांचे के अभाव के कारण हर साल 16 प्रतिशत फल और सब्जियां, 10 प्रतिशत खाद्यान्न, दालें एवं तिलहन खराब हो जाते हैं।

उचित भंडारण क्षमता न होने के कारण किसान फसल को औने-पौने दामों पर बेचने को मजबूर

उचित भंडारण क्षमता न होने के कारण किसान अक्सर फसल को औने-पौने दामों पर बेचने को मजबूर होते हैं। फिर उसी फसल को कुछ माह बाद उपभोक्ता महंगे दामों पर खरीदने को मजबूर होते हैं। कृषि उत्पादों की भंडारण संरचना में निवेश बढ़ने से फसलों की आवक के वक्त ही किसानों को अच्छे दाम मिलेंगे तो दूसरी तरफ उपभोक्ताओं को भी साल भर उचित मूल्यों पर कृषि उत्पाद उपलब्ध होंगे।

अनाज वितरण व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता

कृषि आधारभूत संरचना को विकसित करने के लिए एक लाख करोड़ रुपये के जिस कोष की घोषणा की गई है उसके माध्यम से कृषि उपज के भंडारण हेतु गोदाम, शीतगृह बनाने, प्रसंस्करण उद्योग आदि लगाने की बात कही गई है। सरकार ने मछली पालन क्षेत्र में निवेश हेतु 20,050 करोड़ रुपये और दुग्ध उत्पादन, डेयरी और पशुपालन क्षेत्र में निवेश बढ़ाने हेतु 15,000 करोड़ रुपये के एक अलग कोष की घोषणा की थी। सरकार ने गेहूं, चावल आदि अनाज क्रय और भंडारण की अच्छी क्षमता विकसित की है, लेकिन खाद्य सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत अनाज वितरण व्यवस्था में भी सुधार की आवश्यकता है।

अनाज का रिकॉर्ड भंडार, अतिरिक्त अनाज भंडार और बढ़ती खाद्य सब्सिडी बहुत बड़ी समस्या

इस साल एक जून को लगभग 9.73 करोड़ टन का अनाज का भंडार था, जो एक रिकॉर्ड है। कोरोना संकट में मुफ्त अनाज वितरण के बाद भी एक जुलाई को हमारे गोदामों में 9.44 करोड़ टन अनाज था, जो इस तिथि को अनाज के बफर मानक भंडार से भी पांच करोड़ टन अधिक था। सरकार ने 2019-20 में लगभग 3.90 करोड़ टन गेहूं और 7.60 करोड़ टन धान का क्रय किया है। यदि उचित भंडारण क्षमत न होती तो न तो एमएसपी पर गेहूं एवं धान की खरीद हो सकती थी और न ही सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से कोरोना संकट में सभी को पर्याप्त अनाज उपलब्ध कराया जा सकता था, लेकिन यह भी सच है कि अतिरिक्त अनाज भंडार और बढ़ती खाद्य सब्सिडी भी बहुत बड़ी समस्या बन गए हैं।

बजट में खाद्य सब्सिडी के लिए 1,15,570 करोड़ रुपये का प्रावधान

2020-21 में एफसीआइ द्वारा एमएसपी पर खरीद, परिवहन, भंडारण, रखरखाव, ब्याज आदि की लागत जोड़कर सरकार को गेहूं का आर्थिक मूल्य 28,838 रुपये प्रति टन और चावल का 37,267 रुपये प्रति टन पड़ रहा है। इस वर्ष बजट में खाद्य सब्सिडी के लिए 1,15,570 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। खाद्य सब्सिडी के मद में बजटीय प्रावधान से इतर एफसीआइ द्वारा राष्ट्रीय अल्प बचत कोष से भी बड़ी धनराशि उधार ली जा रही है। 31 मार्च, 2020 को यह राशि 2,54,600 करोड़ रुपये थी। इसे उपरोक्त बजटीय राशि में जोड़ दें तो वास्तविक खाद्य सब्सिडी 3,70,170 करोड़ रुपये बन रही है। बफर मानकों के ऊपर 5 करोड़ टन अतिरिक्त अनाज रखने पर सरकार डेढ़ लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का आर्थिक बोझ वहन कर रही है।

बेकाबू होती खाद्य सब्सिडी 

बेकाबू होती खाद्य सब्सिडी को देखते हुए इस व्यवस्था में तत्काल सुधार करने होंगे। विशेषज्ञों का कहना है कि खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत अनाज का वितरण मूल्य एमएसपी का 50 प्रतिशत तो होना ही चाहिए। अभी मोटे अनाज एक रुपये, गेहूं दो रुपये, चावल तीन रुपये प्रति किलो के मूल्य पर लाभार्थियों को वितरित किए जा रहे हैं। इस व्यवस्था में भ्रष्टाचार भी चल रहा है। 2013 में अधिनियम लागू होने के तीन साल बाद वितरण मूल्य बढ़ाने का प्रावधान होने के बावजूद राजनीतिक कारणों से इन मूल्यों में एक भी बार बढ़ोतरी नहीं की गई है। खाद्य सब्सिडी की समस्या का हल करना ही होगा, वरना स्थिति बेकाबू हो जाएगी और वास्तविक राजकोषीय घाटा काफी बढ़ जाएगा।

(लेखक किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष हैं)