नई दिल्ली, जेएनएन। कुपोषण के कई रूप हैं, जैसे बच्चों का नाटा रह जाना, कम वजन, एनीमिया प्रमुख हैं। इनमें से कुछ में समय के साथ सुधार हुआ है। ओडिशा, छत्तीसगढ़ जैसे गरीब राज्यों में भी सुधार देखा गया। यह किसी विडंबना से कम नहीं है कि कुपोषण के साथ भारत अधिक वजन, मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी नई चुनौतियों का भी सामना कर रहा है, जिसे पोषण संबंधी गैर-संचारी रोग भी कहा जाता है। हर पांच में से एक महिला और हर सात में से एक भारतीय पुरुष आज बढ़ते वजन से पीड़ित हैं। शहरी क्षेत्र में दिनोंदिन यह प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है।

कुपोषण भारत के लिए चिंता का विषय

मातृ एवं शिशु अल्पपोषण, बच्चों और व्यस्कों का बढ़ता वजन और गैर-संचारी रोग मिलकर भारत के विकास को प्रभावित करते हैं। साथ ही मातृ एवं शिशु मृत्यु दर, स्कूल प्रदर्शन को प्रभावित करने के साथ ही आर्थिक लागत में भी इजाफा करते हैं। कुल मिलाकर, भारत में कुपोषण का बोझ एक ऐसी चुनौती है, जिससे सभी को चिंतित होना चाहिए। भले ही भारत में चल रहे कार्यक्रम और राजनीतिक नेतृत्व पोषण एजेंडे को आगे बढ़ाने का एक सक्षम माध्यम बने हुए हों, लेकिन दो उपेक्षित चीजों पर बिना ध्यान दिए कुपोषण के सभी रूपों से छुटकारा नहीं मिल सकता है। पहली भारतीय समाज में लड़कियों और महिलाओं की स्थिति और दूसरी देश भर में आहार की गुणवत्ता।

महिलाओं पर ध्यान देने की जरूरत

लैंगिक मसले पर तीस वर्षो से शोधकर्ता कह रहे हैं कि महिलाओं के खिलाफ भेदभाव, शिक्षा की कम पहुंच, कम उम्र में शादी, स्वास्थ्य सेवाओं की कम पहुंच के साथ अन्य चीजें भारत में कुपोषण को बढ़ावा दे रही हैं। कुपोषण से निपटने के लिए हम अभी भी आइसीडीएस और स्वास्थ्य प्रणाली पर ध्यान ज्यादा केंद्रित करते हैं, लैंगिक संबंधी चुनौतियों को नजर अंदाज कर रहे हैं। भारत की महिलाएं कुपोषित हैं। कुछ का वजन कम है और कुछ में खून की कमी है। और अन्य अधिक वजन वाली हैं। दूसरा, कम उम्र और खून की कमी से पीड़ित महिलाओं से पैदा होने वाली संतान के कुपोषित होने की संभावनाएं अधिक होती हैं।

भारत में बहुत सी महिलाओं के बच्चे तब होते हैं जब वे किशोर अवस्था में होती हैं। इस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। इससे भी बुरी बात यह है कि कुपोषित बच्चे बड़े होकर मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियों से पीड़ित होते हैं, जिससे मृत्यु की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। कुल मिलाकर ध्यान न देने के कारण भारत की लड़कियों और महिलाओं के स्वास्थ्य पर और समाज के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।

आहार की गुणवत्ता और भोजन के स्वास्थ पैटर्न पर ध्यान देने की जरूरत

दूसरी चीज के तहत, केंद्र और राज्य को आहार की गुणवत्ता और भोजन के स्वास्थ पैटर्न पर बहुत जोर देने की आवश्यकता है। चाहे वह अल्पपोषण हो या एनीमिया या अधिक वजन और मोटापा, भारत की आबादी द्वारा ग्रहण किए जाने वाले भोजन की गुणवत्ता और विविधता पर ध्यान देने की आवश्यकता है। आहार की गुणवत्ता को किसी भी व्यक्ति के जीवन में भोजन के सभी स्नोतों के संदर्भ में देखना जरूरी है। चाहे वह सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत दिया गया भोजन हो, मिड-डे मील के तहत उपलब्ध कराया जा रहा भोजन हो, आइसीडीएस या देश के बाजारों में उपलब्ध खाद्य पदार्थ हो, वर्तमान चुनौती उच्च अनाज और कम प्रोटीन वाले खाद्य पदार्थों की है।

कुपोषण खत्म करने के लिए आहार की गुणवत्ता में हो सुधार

पीडीएस ज्यादातर चावल, गेहूं, तेल और चीनी की आपूर्ति करता है; आइसीडीएस खाद्य पदार्थो में भी अनाज की मात्रा अधिक होती है और चीनी के तत्व भी शामिल होते हैं। शोध बताते हैं कि भले ही स्वास्थ खाद्य पदार्थ जैसे अंडा, डेयरी, फल, सब्जियां और दालें बाजारों में उपलब्ध हों, लेकिन उनकी लागत अधिकांश लोगों की पहुंच से दूर है। भारत के बाजारों में डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों की बढ़ती उपलब्धता और प्रचार-प्रसार भी भारत में आहार की खराब गुणवत्ता में योगदान कर रहा है। भारत में कुपोषण को खत्म करने के लिए सरकार, कृषि और खाद्य प्रणाली के लिए एक बड़ी चुनौती उत्पादन, उपलब्धता और पहुंच में सुधार करने की है। आहार की गुणवत्ता में सुधार से मातृ और बाल कुपोषण में सुधार के साथ-साथ गैर-संचारी रोगों से छुटकारा मिलेगा।