[ रजनीकांत राय ]: कोरोना संकट के बीच केंद्र सरकार ने किसान, कृषि क्षेत्र एवं कृषि व्यापार के लिए समग्र नीति प्रस्तुत कर एक बहुप्रतीक्षित जरूरत पूरी कर दी है। कृषि क्षेत्र में नीतियां पहले भी बनती रही हैं। सुधार पहले भी होते रहे हैं, लेकिन वे सभी समस्याओं का एक साथ निराकरण करने वाले नहीं होते थे। अब आवश्यक वस्तु अधिनियम, एपीएमसी एक्ट और एग्रीकल्चर प्रोड्यूस प्राइस एंड क्वालिटी एश्योरेंस जैसे नियमों में सुधार के साथ पशुपालन, डेयरी, मछली पालन, खाद्य प्रसंस्करण जैसे कृषि के सहउद्यमों के लिए वित्तपोषण की व्यवस्था कर कृषि क्षेत्र के पंख लगाने का काम किया गया है।

यदि सुधारों का सही उपयोग किया जाय तो किसानों की आय दोगुनी हो सकती है

यदि इन सुधारों का पारदर्शिता के साथ सही उपयोग किया जा सके तो न सिर्फ किसानों की आय दोगुनी करने का सपना पूरा हो सकता है, बल्कि कृषि क्षेत्र में भारत दुनिया के साथ कदमताल भी कर सकता है। 1960-70 के दशक की हरित क्रांति को कमतर करके नहीं आंका जा सकता, लेकिन इसका लाभ मुख्यत: पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक ही सीमित रहा। ऑपरेशन फ्लड जैसी मुहिम का फायदा भी गुजरात और महाराष्ट्र के सहकारिता क्षेत्र में जागरूक किसानों ने उठाया।

अब राज्यों को कमर कसनी होगी

यह पहला अवसर है, जब सागरतट वाले राज्यों से लेकर उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे भू-आबद्ध प्रदेशों को ध्यान में रखकर नीति तैयार की गई है। इस नीति के तहत किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड सहित अन्य माध्यमों से पूंजी की भी व्यवस्था की गई है। आखिर इस नीति का लाभ किसान कैसे उठाएं? कैसे उनकी आमदनी दोगुनी हो? कैसे उनके उत्पाद को सही बाजार मिले? कृषि उत्पादों के निर्यात में भारत कैसे वैश्विक प्रतियोगिता में ठहर सके? इन सभी सवालों का जवाब एक ही है कि अब राज्यों को कमर कसनी होगी।

भारत विविधताओं वाला देश है इसलिए एक जैसी कृषि नीति सभी राज्यों में लागू नहीं हो सकती

भारत इतनी विविधताओं वाला देश है कि यहां तमिलनाडु के लिए बनाई गई कृषि नीति यूपी-बिहार में नहीं लागू की जा सकती और जम्मू-कश्मीर के लिए बनाई गई नीति का लाभ ओडिशा में नहीं लिया जा सकता। यूरोपियन यूनियन के देशों की तरह हमारे हर राज्य को अपनी भौगोलिक स्थिति, मिट्टी, जलवायु एवं वहां पैदा होने वाली अच्छी फसलों के आधार पर अपनी रणनीति तैयार करनी होगी। जरूरी नहीं कि लासलगांव जैसा प्याज, भुसावल जैसा केला और गुंटूर जैसी मिर्च दूसरे राज्यों में भी पैदा हो सके। इसी तरह जरूरी नहीं कि पंजाब, हरियाणा और मध्य प्रदेश जैसा गेहूं बाकी राज्यों में भी पैदा होता हो।

सभी राज्यों को अपने किसानों को उनकी जरूरत के अनुरूप तैयार करना होगा

भारत में सात-आठ राज्य गेहूं उपजाते हैं, बाकी खाते हैं। करीब दस राज्य धान उपजाते हैं, बाकी खाते हैं। इसलिए सभी राज्यों को अपने किसानों को उनकी जरूरत के अनुरूप तैयार करना होगा और उन्हें संसाधन एवं तकनीक उपलब्ध करानी होगी। इसके बाद बाकी काम किसान खुद कर ही लेगा। मध्यस्थों की बाध्यता खत्म होने के बाद एक राज्य का किसान दूसरे राज्य के व्यापारी से सीधे सौदा तय कर अपना माल वहां भेज सकता है। अक्सर देखा जाता है कि जब देश के एक हिस्से में किसानों को आलू फेंकना पड़ता है तब उसी दौरान दूसरे हिस्से में वह महंगे दामों पर बिक रहा होता है। नई नीतियां लागू होने के बाद ऐसी स्थिति से बचा जा सकता है।

फसल का लागत मूल्य कम करना होगा, बेहतर बीज का उपयोग कर उपज बढ़ानी होगी

जब किसानों की आमदनी दोगुनी करने की बात होती है तो हमारा ध्यान सिर्फ उपज का मूल्य बढ़ाने पर जाता है। सिर्फ मूल्य बढ़ने से हम वैश्विक प्रतियोगिता में नहीं ठहर पाएंगे। हमें फसल का लागत मूल्य कम करना होगा, बेहतर बीज का उपयोग कर उपज बढ़ानी होगी, लॉजिस्टिक्स लागत कम करनी होगी, खेत से ग्राहक के हाथ तक जाने का समय घटाने के साथ इस दौरान होने वाली उपज की बर्बादी भी रोकनी होगी। आज भारत में सप्लाई-चेन लागत ही 14-15 फीसद है, जबकि वैश्विक औसत 7-8 फीसद है। अभी किसान अपने खेत से माल लादकर मंडी ले जाता है, मंडी में थोक व्यापारी से खुदरा व्यापारी के हाथ और फिर ग्राहक तक पहुंचता है। इतनी लंबी शृंखला में उपज और समय की बर्बादी के साथ लागत भी कदम दर कदम बढ़ती ही जाती है। इसका नुकसान किसान को ही उठाना पड़ता है।

26 लाख करोड़ रुपये की ग्रामीण अर्थव्यवस्था है

भारत में अनाज, सब्जी, दूध और मछली पालन मिलाकर करीब 26 लाख करोड़ रुपये की ग्रामीण अर्थव्यवस्था है। वन एवं वनोपज मिलाकर यह करीब 29 लाख करोड़ की हो जाती है। यह कीमत सिर्फ कच्चे माल की है। यदि इसमें होने वाली बर्बादी ही रोक ली जाए तो डेढ़ से दो लाख करोड़ रुपये का सीधा लाभ किसान को हो सकता है। किसान के कच्चे माल का जितना वैल्यू एडीशन किया जा सके उसका लाभ ग्राहक से लेकर किसान तक को देने के साथ भारत वैश्विक बाजार में प्रतियोगिता भी कर सकता है।

निजी क्षेत्र की कई कंपनियां सीधे किसान से जुड़ सकेंगी

एपीएमसी एक्ट में सुधार के बाद निजी क्षेत्र की कई कंपनियां सीधे किसान से जुड़ सकेंगी। वे ग्रामीण इलाकों में अपना ढांचा खड़ा करेंगी। गोदाम एवं कोल्ड स्टोर बनाएंगी। छोटी जोत वाले कई किसानों को जोड़कर क्लस्टर तैयार करेंगी। उन्हें तकनीक और नई तरह के बीज उपलब्ध कराएंगी। किसान बाजार की जरूरत के हिसाब से उत्पादन करेगा तो उसे उसकी उपज का सही मूल्य मिलने की गारंटी होगी। तैयार उपज की शार्टिंग-ग्रेडिंग करके उसे वैश्विक बाजार के स्तर पर लाया जाएगा।

ग्रामीण क्षेत्रों में गतिविधियां बढ़ेंगी तो वहां निवेश बढ़ेगा और नए रोजगार पैदा होंगे

जब ग्रामीण क्षेत्रों में ये गतिविधियां बढ़ेंगी तो वहां निवेश बढ़ेगा और नए रोजगार पैदा होंगे। केंद्र सरकार की ओर से खेती के अलावा पशुपालन, मछली पालन, मधुमक्खी पालन जैसे जिन सहउद्यमों के लिए मदद की घोषणा की गई है उन्हें यदि राज्य सरकारें पारदर्शी तरीके से लागू करा सकें तो ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायत, ब्लॉक से लेकर जिला स्तर तक कृषि संबंधी उद्यम खड़े हो सकते हैं। इनमें युवाओं और महिलाओं को उनके घर के पास ही बड़े पैमाने पर रोजगार मिल सकता है। खास बात यह कि ये उद्यम अधिक निवेश वाले नहीं होंगे।

( लेखक आइटीसी लिमिटेड के एग्री बिजनेस डिवीजन के सीईओ हैं )