[ साकेत सूर्येश ]: बहुत वर्ष हुए इंद्रप्रस्थ में महाराजा चक्रम नाम के एक महाप्रतापी राजा हुए। पूर्व के भ्रष्टाचारी और अकर्मण्य शासक को हटाकर जब महाराज सत्ता पर आसीन हुए तो उन्होंने पुराने शासक के काल में पनपे भ्रष्टाचारियों पर कार्यवाई का प्रजा को वचन दिया और नगर कोतवाल को आदेश दिया कि बिना घूस के कार्रवाई की जाए। यह तो वही हुआ कि मानो बिना सूरज के भोर हो, बिना पूजा के प्रसाद हो, बिना तीर्थ के पुण्य मिले, बिना मृत्यु के स्वर्ग मिले और बिना जनमत के सत्ता मिले। कोतवाल साहब निर्देश प्राप्त करते ही चिंतित हुए, विचलित हुए और मन ही मन प्रतापी सम्राट के लिए कुछ पुलिस सुलभ संज्ञाओं का प्रयोग किया और पुरानी प्रीपेड निष्ठा को त्यागकर सवैतनिक कर्मचारी की सार्वभौमिक निष्क्रियता के साथ, कुर्सी के पृष्ठ भाग पर सफेद तौलिये को स्थापित करने की शासकीय प्रक्रिया के साथ कार्य में संलग्न हुए।

पहला मामला सहसा ही जागरूक हुई जनता के प्रभाव मे राजगुरु की अदालत मे पहुंचा। आह, राजगुरु का विराट व्यक्तित्व और उससे भी विराट तोंद और इस महान कालजयी व्यक्ति की महान काया पर निर्भर राष्ट्रीय नैतिकता। साक्ष्यों को निहारने के पश्चात नगर-न्यायाधीश बोले तो भक्तिभाव में लीन जनता को ऐसा भान हुआ मानो देव वाणी हुई। प्रभु बोले- ताजा लाओ। इससे पहले कि नाचती हुई अभिनेत्री चाय का पैकेट लेकर और अदालत के बाहर सब्जी का ठेला लगाने वाला रामस्वरूप ताजा धनिये की गड्डी महामहिम तक पहुंचाए, महामहिम ने स्पष्ट किया कि वह ताजे साक्ष्यों की ही बात कर रहे हैं। अपराध भले ही दशकों पुराना हो, गुरुवर को साक्ष्य ताजा और पौष्टिक ही स्वीकार्य हैं।

कोतवाल मुकदमे लाता रहा, कहीं साक्ष्य बासी निकल गए, कहीं अपराध ही बासी निकल गए। स्वास्थ्य-सजग न्यायालय को अपराध और साक्ष्य दोनों ही बासी स्वीकार्य नहीं थे। जनता अपनी जनतंत्र-सुलभ निराशा में लौटने लगी तो चक्रवर्ती सम्राट चिंतित हो गए। सम्राट ने सलाहकारों की गोष्ठी बुलाकर कहा कि देश में व्यवस्था पुन: अपनी पूर्ववत स्थिति में लौट रही है। विद्वानों ने कहा कि यह तो लोकतंत्र का मूल स्वभाव है। क्षणिक उत्साह के पश्चात पूर्ववत स्थिति में सत्ता के लौट जाने के भाव को ही आधुनिक हरियाणा रोडवेज की बसों पर यह लिखकर दर्शाया जाता है कि ‘यह तो ऐसे ही चलेगी।’ बहरहाल सम्राट चक्रम के समय न तो हरियाणा रोडवेज थी और न ही बसें, सम्राट थे अति उत्साही, सो उन्होंने राजगुरु से ही इसका समाधान पूछा। राजगुरु महान थे। राजगुरु इसलिए महान थे, क्योंकि उनके पिता भी महान थे और पितामह भी।

राजगुरु ने कहा कि, ‘हे राजन, नगर कोतवाल का कार्य कठिन मामलों में गहन पड़ताल कर साक्ष्य एकत्रित करना नहीं होता। उसका अधिकार क्षेत्र केले के ठेले वालों से सप्ताह दर सप्ताह केले लेने तक सीमित है। इसके लिए आपको गुप्तचर विभाग की मदद लेनी चाहिए। होते तो इसमें भी व्यक्ति पुलिस विभाग के होते हंै, किंतु केले के ठेलों से अधिक परिष्कृत होते हैं और केले के अलावा अन्य फल और सब्जियां अपने घरों के अलावा हमारे आपको घरों तक पहुंचाने में सक्षम हैं।

राजा चक्रम बोले-किंतु वे हैं कहां आजकल?

प्रभु ने आंखें बंद कर के ध्यान लगाया और बोले- हे देव, गुप्तचर विभाग एक जिन्न है जो पूर्वजन्म में तोते के रूप में सत्ताधारियो के पिंजरे में था। शासन के निर्देशानुसार वह संगीत लहरियां छेड़कर पूर्व साम्राज्ञी का मनोरंजन किया करता था। वर्तमान में सत्ता के द्वारा स्वायत्त घोषित किए जाने के बाद इसने बहुत दूर नीरव श्मशान में आवास बनाया है। वहीं एक प्राचीन पीपल पर उलूक अवतार मे यह उलटा लटका हुआ है और पीपल के नीचे के तालाब में अपने ही प्रतिबिंब को मुंह चिढ़ाकर मखौल करता रहता है। आपके पूर्ण चंद्र की रात्रि में इसे वापस शहर में लाना होगा ताकि यह गिद्ध रूप में आकर अपना कर्तव्य पालन कर सके।

महाराज उठ खड़े हुए।

सलाहकारों ने रोका। बोले- महाराज, वहां एक मायावी वन है जहां वह उलूक लटका हुआ है। आप गलत उलूक को न पकड़ लाएं, अन्यथा वह पिंजरे मे बंद तोता बनकर गीत ही सुनाएगा, गिद्ध दृष्टि से राष्ट्र रक्षा न कर सकेगा।

महाराज चक्रम मुस्कुराए- वत्स, माया का क्षेत्र वन तक ही सीमित नहीं है। जिसे तुम मैं समझ रहे हो मैं कहां है। सत्ता तो माया के प्रभाव में बस चलती हुई ही जान पड़ रही है, वास्तविक महाराज चक्रम तो त्रिलोक विजय के अश्वमेध का अश्व लेकर एक राज्य से दूसरे राज्य भटक रहे हैं। सत्ता, प्रशासन और शासन के इसी भ्रमजाल को लोकतंत्र कहते है, जिसमें गति का बोध काल्पनिक होता है और प्रत्येक परिवर्तन के पर्दे के पीछे सब स्थिर, स्थाई एवं अपरिवर्तनीय रहता है। प्रत्येक पटाक्षेप के उपरांत जब पर्दा उठता है तो कलाकार बदलते हैं, पटकथा के साथ ही पात्र वही रहते हैं। उलूक अपने प्रतिबिंब से युद्धरत रहते हैं, तोता गाता रहता है, सब कुछ वैसा ही रहता है जैसा था।

[ लेखक हास्य-व्यंग्यकार हैं ]