[ शिवदान सिंह ]: अभी कुछ समय पहले कुछ सेवानिवृत्त नौकरशाहों ने प्रजातंत्र की चिंता करते हुए चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली के बारे में एक शिकायती पत्र राष्ट्रपति को लिखा। इस पत्र में उन्होंने चुनाव आयोग पर आरोप लगाए हैैं कि वह निष्पक्षता, दक्षता और पारदर्शिता से अपने कर्तव्य का निर्वहन नहीं कर रहा है। इन वरिष्ठ पूर्व नौकरशाहों को चुनाव आयोग के व्यवहार से तो प्रजातंत्र पर खतरा महसूस हुआ, परंतु नौकरशाही के भ्रष्टाचार जिससे आज पूरे देश में असंतोष और निराशा का माहौल पैदा हो गया है वह उन्हें दिखाई नहीं देता, जबकि वे स्वयं इसी सेवा से होने के कारण नौकरशाही की सारी बारीकियों को अच्छी प्रकार से जानते हैैं। वे यह भी जानते हैैं कि नौकरशाह भ्रष्टाचार के क्या-क्या तरीके अपनाते हैं, लेकिन उन्होंने आज तक भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया।

सुप्रीम कोर्ट अंग्रेजों द्वारा लागू पुलिस एक्ट 1861 में बदलाव और सुधारों के लिए तो सरकारों को निर्देश दे चुका है ताकि पुलिस का स्वरूप सामंतवादी के स्थान पर प्रजातांत्रिक बने, परंतु ऐसे प्रयास सिविल सर्विसेज कोड 1947 को बदलने के लिए नहीं किए गए। शायद देशवासी नहीं जानते कि यह सिविल सर्विसेज कोड वास्तव में अंग्रेजों द्वारा लागू किया गया सिविल सर्विसेज कोड 1919 ही है। जिसे इसी स्वरूप में स्वीकार कर लिया गया था। इसे स्वीकार करने के पीछे यह सोच थी कि यदि इस कोड के द्वारा अंग्रेजी नौकरशाही ने भारत को एक मजबूत प्रशासन तंत्र दिया है तो वह स्वतंत्र भारत में भी उसी प्रकार काम करेगा, परंतु ऐसा नहीं हुआ।

औसत नौकरशाह मौका मिलने पर सिविल सर्विस कोड में दी गई अपार शक्तियों का प्रयोग केवल अपने स्वार्थ के लिए करने लगते हैैं। इनकी जवाबदेही का यह हाल है कि रंगे हाथों पकड़े जाने पर भी एक नौकरशाह पर अभियोग चलाने के लिए सरकार की अनुमति अनिवार्य है। भारतीय नौकरशाही की इस स्थिति पर पूर्व नौकरशाह और भारत के चीफ विजिलेंस कमिश्नर एन विट्ठल ने कहा था कि राजनीतिज्ञों से ज्यादा नौकरशाह भ्रष्ट हैं, क्योंकि एक समय के बाद जनता राजनीतिज्ञों को हटा सकती है, परंतु एक नौकरशाह अपनी पूरी सेवाकाल तक यानी करीब 30-32 वर्ष तक भ्रष्टाचार करता रहता है और उसे एक व्यवसाय का स्वरूप दे देता है।

भारत की नौकरशाही को एशिया में अन्य देशों हांगकांग, सिंगापुर, थाईलैंड, दक्षिण कोरिया, जापान, मलेशिया, वियतनाम, इंडोनेशिया आदि के मुकाबले ज्यादा भ्रष्ट एवं मुश्किलें खड़ी करने वाला माना जाता है। नौकरशाही के शासन तंत्र की मुख्य धुरी होने के कारण समय-समय पर देश की प्रतिष्ठा और आर्थिक हानि हुई है। नौकरशाही के ढुलमुलपन के कारण ही देश में पर्याप्त संसाधन होते हुए भी गरीबी, बेरोजगारी जैसी समस्याएं गंभीर बनी हुई हैैं। क्या यह प्रजातंत्र के साथ बहुत बड़ा विश्वासघात नहीं है? क्या इस पर पूर्व नौकरशाहों को कोई चिंता नहीं करनी चाहिए?

भारत की नौकरशाही मुख्यत: भारतीय प्रशासनिक सेवा (आइएएस), पुलिस सेवा (आइपीएस), विदेश सेवा (आइएफएस) और आइआरएस कैडर के अधिकारियों से बनी है। राज्यों के स्तर पर पीसीएस और पीपीएस नौकरशाहों की मजबूत कड़ी हैैं। भारत सरकार के प्रशिक्षण और कार्मिक विभाग की वेबसाइट पर नौकरशाही के भ्रष्टाचार के आंकड़े अंकित हैं। वहां पर केवल आइएएस के भ्रष्टाचार के आंकड़े देखें तो पाएंगे कि इस समय दस भ्रष्ट अधिकारी भ्रष्टाचार सिद्ध होने पर जेल में हैैं। भारत सरकार ने एक साल में 129 नौकरशाहों को भ्रष्टाचार और नकारापन के कारण सेवानिवृत्त करके घर भेज दिया है। भ्रष्टाचार और अन्य अपराधों में 66 पूर्व अधिकारी जेलों में हैैं। इसके अलावा भारत सरकार को ज्ञात हुआ है कि देश के अंदर 100 ऐसे आइएएस अधिकारी हैं जिनकी चल और अचल संपत्ति 800 करोड़ से ज्यादा है।

विश्व बैंक ने अपने आर्थिक सर्वे में पाया है कि भारत में ट्रकों से माल ढुलाई के दौरान सड़कों पर पुलिस और अन्य विभाग 222 करोड़ रुपये रिश्वत के रूप में सालाना वसूली कर रहे हैं। इस रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि दिल्ली-मुंबई के बीच में केवल इस रिश्वत वसूली के कारण इन ट्रकों का सफर दो दिन तक बढ़ जाता है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि किस प्रकार देश में आर्थिक गतिविधियां प्रभावित हो रही हैं। इन तथ्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि भारत की नौकरशाही में भ्रष्टाचार संस्थागत हो गया है।

भारत की नौकरशाही शासन तंत्र का हिस्सा होने के कारण जनता से सीधे जुड़ती है। इसलिए नौकरशाही का भ्रष्टाचार जनता को सीधा प्रभावित करता है। अक्सर हर साल सुनने में आता है कि बहुत से नौकरशाह चल-अचल संपत्ति का वार्षिक हिसाब सरकार को नहीं दे रहे हैं। यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि भारत की कोई भी राजनीतिक पार्टी आम आदमी का शोषण करने वाली नौकरशाही के भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए कोई योजना विस्तार से नहीं बता रही है। ऐसा लगता है कि यह उनके लिए कोई गंभीर मुद्दा नहीं है, अन्यथा वे अपनी योजना जनता को चुनावों के दौरान बताते। आखिर क्या कारण है कि किसी भी राजनीतिक दल के एजेंडे में नौैकरशाही में सुधार का मुद्दा नहीं है? यह भी विचित्र है कि दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग की रपट एक तरह से ठंडे बस्ते में ही पड़ी हुई है। नौकरशाही में सुधार राजनीतिक दलों के हित में है, क्योंकि अक्सर वे नौकरशाहों की ढिलाई की सजा भुगतते हैैं।

यदि हमें नया भारत बनाना है और सब को न्याय और विकास का लाभ देना है तो इसके लिए शासन तंत्र के मुख्य भाग नौकरशाही को देश की अपेक्षा के अनुसार बनाना होगा। इसके लिए नौकरशाही में प्रवेश के तरीकों के साथ ही उसके प्रशिक्षण में परिवर्तन करने होंगे। प्रवेश परीक्षा के समय सेना के अधिकारियों की तरह नौकरशाहों का भी मनोवैज्ञानिक परीक्षण अनिवार्य होना चाहिए जिससे उनकी मन:स्थिति का पता लगाया जा सके। नौकरशाहों को हर समय अपनी चल और अचल संपत्ति का ब्यौरा सरकार को देना चाहिए। इसके अतिरिक्त सेना की कोर्ट मार्शल की व्यवस्था की तरह नौकरशाहों के भ्रष्टाचार के मामलों के निपटारे के लिए भी अलग अदालत बनने चाहिए।

यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि नौकरशाह को देश के नागरिकों को उनके लिए नियत की हुई योजनाओं का लाभ ईमानदारी से दें। यह उनकी देशभक्ति का एक उदाहरण होगा। इसी तरह के उपायों से देश के निचले स्तर से भ्रष्टाचार मिटेगा और देश में समरसता तथा राष्ट्रीयता की भावना मजबूत होगी।

( लेखक सेवानिवृत्त कर्नल हैैं )

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