[ डॉ. प्रीति अदाणी ]: किसी भी समुदाय, वर्ग का सशक्तीकरण एक दीर्घकालिक सांस्कृतिक परिवर्तन है जिसे प्रकट होने में कई वर्ष लग जाते हैं। महिलाएं परिवारों के सशक्तीकरण में प्रमुख भूमिका निभाती हैैं। इससे उनकी पीढ़ी में तो बदलाव आता ही है, समाज में भी सकारात्मक परिवर्तन आता है। लैंगिक असमानता को दूर करने के लिए प्रयासों के साथ उन उपायों पर नजर रखना जरूरी है जिनसे कहीं जल्द सार्थक नतीजे सामने आते हों। अगर हम बदलाव की बड़ी पहल करना चाहते हैं तो महिलाओं के लिए वित्तीय स्वतंत्रता लाना महत्वपूर्ण होगा।

महिलाएं जीविकोपार्जन के लिए कई चुनौतियों से जूझती हैं

महिलाओं के लिए कमाई के अवसर पैदा करने वाली सामुदायिक पहल संशय के माहौल को दूर करने में मददगार बनती है। आमतौर पर ग्रामीण भारत की महिलाएं चुनौतियों के दो व्यापक स्तरों पर जूझती हैं। पहला, आत्मविश्वास की कमी को लेकर और दूसरे, धारणाओं से लड़ने का दबाव, लेकिन जीविकोपार्जन के अवसर प्रदान करने वाली योजनाओं के जरिये इन दबावों से अच्छी तरह निपटा जा सकता है।

महिलाओं की भागीदारी कर सकती है भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार

भारत में महिलाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा करना बहुत ही लाभकारी साबित हो सकता है। कुछ वर्ष पहले मैकिंजी ग्लोबल ने अपने एक अध्ययन में दावा किया था कि अगर भारत अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी के लिए समान अवसर पैदा कर सके तो वह साल 2025 तक अपने सकल घरेलू उत्पाद में 60 प्रतिशत तक वृद्धि कर सकता है।

जब एक गृहिणी आत्मनिर्भर हो जाती है

इस अध्ययन में यह भी कहा गया था कि दुनिया भर में लिंगभेद की समस्या को समाप्त करने से वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 28 ट्रिलियन डॉलर की भारी वृद्धि हो सकती है। जब एक गृहिणी आत्मनिर्भर हो जाती है तो उसका लाभ बढ़ी हुई पारिवारिक आय तक ही सीमित नहीं रहता है, बल्कि उसके द्वारा परिवार में लाए गए परिवर्तन पीढ़ियों की सोच में दिखने लगते हैं। इसीलिए अपने माता-पिता की तुलना में नई पीढ़ी शिक्षा, स्वास्थ्य और सतत विकास के प्रति ज्यादा जागरूक है। महिलाओं में वित्तीय स्वतंत्रता देश में सांस्कृतिक परिवर्तन प्रारंभ करने की क्षमता रखती है।

स्किल इंडिया अभियान से लाभान्वित हुईं महिलाएं

स्किल इंडिया अभियान यानी कौशल प्रशिक्षण के जरिये करीब 17.72 लाख महिलाओं को प्रशिक्षित किया गया है। कौशल विकास केंद्रों में प्रशिक्षित 10 में से लगभग 8 महिलाओं को या तो आजीविका के अवसर मिले हैं या उन्होंने अपना प्रशिक्षण पूरा करने के तुरंत बाद स्व-रोजगार शुरू किया है। इनमें से अधिकांश परिधान, ब्यूटी एंड वेलनेस और स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में शामिल हुई हैं। इन आंकड़ों से दो बातें उभर कर सामने आती हैं। अपनी भौगोलिक सीमाओं और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के बावजूद आज महिलाएं घूंघट से परे जीवन को देखने के लिए उत्सुक हैं। इसका यह भी अर्थ है कि रोजगार का एक बाजार मौजूद है जो इस अप्रयुक्त कार्य बल का उपयोग करना चाहता है।

महिलाएं अपनी पहचान बनाने के लिए उत्सुक हैं

हालांकि किसी क्षेत्र विशेष में निपुणता आवश्यक है, लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण है आत्मविश्वास। आज महिलाओं के भीतर अपनी पहचान को सामने लाने और अपने बच्चों के भविष्य को बेहतर बनाने के लिए गहरी उत्सुकता है। चूंकि भारत को दुनिया के सबसे बड़े उपभोक्ता बाजार के रूप में माना जा रहा है, इसलिए आने वाले समय में ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार के तमाम अवसर उपलब्ध होंगे। हमें इस मौके का लाभ उठाने के लिए महिलाओं के लिए अधिक से अधिक अवसर पैदा करने की राह आसान करनी चाहिए।

महिलाओं को वित्तीय सुरक्षा के लिए शिक्षित करना आवश्यक

महिलाओं के लिए स्वतंत्र वातावरण बनाने के अलावा वित्तीय सुरक्षा हासिल करने के लिए उन्हें शिक्षित करना भी उतना ही आवश्यक है। समावेशी विकास को लेकर सरकारी सुधारों के माध्यम से बचत बैंक खाता खोलने के प्रति पहले ही व्यापक जागरूकता आ चुकी है। अब खाते में न्यूनतम धन रखने की आवश्यकता, बीमा योजनाओं और संपत्ति में निवेश करने की पेशकश सहित कई प्रयास किए जा रहे हैं, ताकि महिलाएं वित्तीय रूप से सुरक्षित हों।

भारत में महिलाओं की नई पीढ़ी युवा उद्यमी के रूप में तैयार

उदाहरण के लिए मुद्रा ऋण के 10 लाभार्थियों में से लगभग 8 लाभार्थी महिलाएं हैैं। यह एक महत्वपूर्ण आंकड़ा है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के संस्थापक और कार्यकारी अध्यक्ष श्वाब क्लॉज के अनुसार, भविष्य की नौकरियां शीर्ष कंपनियों द्वारा नहीं, बल्कि युवा उद्यमियों द्वारा उपलब्ध कराई जाएंगी। हम देख सकते हैैं कि भारत में महिलाओं की एक नई पीढ़ी युवा उद्यमी के रूप में तैयार होने की कगार पर है। निश्चित रूप से यह आगे चलकर दूसरी महिलाओं के लिए नौकरियों का महत्वपूर्ण श्रोत बन जाएगी।

( लेखिका अदाणी फाउंडेशन की चेयरपर्सन हैं )