सुधीर कुमार। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रलय देशभर के भिखारियों को भीख मांगने से मुक्ति दिलाने तथा उनके पुनर्वास के लिए बिहार की तर्ज पर भिक्षावृत्ति निवारण योजना को राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने पर विचार कर रहा है। इस योजना में राज्य सरकारों, स्थानीय शहरी निकायों और स्वयंसेवी संगठनों की मदद से भिखारियों की पहचान करके उनके पुनर्वास और चिकित्सा सुविधाओं के साथ ही उनकी शिक्षा और कौशल विकास का काम किया जाएगा।

केंद्र सरकार की इस पहल का मकसद देश में भिक्षावृत्ति का उन्मूलन तथा इसमें संलग्न लोगों को प्रशिक्षित कर रोजगार के विभिन्न साधनों से जोड़ना है। एक प्रगतिशील समाज में भिक्षावृत्ति जैसी कुप्रथा की कोई जगह नहीं होती है। भिक्षावृत्ति मूलत: बेरोजगारी और गरीबी से उत्पन्न एक अनुगामी समस्या है और इसका निदान आधारभूत संरचनाओं के विकास, रोजगार सृजन, भोजन, पेयजल, आवास एवं शिक्षा तथा स्वास्थ्य तक सभी नागरिकों की सुलभ पहुंच तथा जागरूकता में निहित होती है।

2011 की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार देश में कुल 3.72 लाख भिखारी हैं, जिनमें से लगभग 79 हजार यानी 21 फीसद साक्षर हैं, जबकि हाई स्कूल या उससे अधिक पढ़े-लिखे भिखारियों की संख्या भी कम नहीं है। वहीं मासूम बच्चों को भिक्षावृत्ति के पेशे में जबरन धकेलकर कुछ लोग अपना संगठन भी चला रहे हैं, इस पर भी रोक लगाने की जरूरत है।भिखारियों को मुख्यधारा में लाने की मुहिम प्रशंसनीय है।

अक्सर हम इंसानी फर्ज अदा करने के लिए भिखारियों को दानस्वरूप कुछ रुपये या खाने की वस्तु दे देते हैं और आगे बढ़ जाते हैं, लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि परोपकार की यह प्रवृत्ति भी उस भिखारी को मनोवैज्ञानिक रूप से आजीवन निकम्मा बने रहने के लिए प्रेरित करती है! जो शारीरिक रूप से अक्षम हैं, उनकी बात अलग है, लेकिन जो काम करने योग्य हैं, उन्हें काम करने के लिए प्रेरित क्यों नहीं किया जाता है? आखिर वे भी हमारे ही समाज के अंग हैं और शायद इस गलतफहमी में जी रहे हैं कि भगवान ने उन्हें ऐसे ही निकम्मा बने रहने के लिए बनाया है।

यही संकीर्ण सोच उसकी प्रगति में बाधक बन जाती है।यदि भीख या दान देनेवाले लोग अपना दो-दो मिनट का समय भिखारियों को यह समझाने के लिए दें कि भगवान ने उन्हें श्रम कर धन अर्जति करने और इज्जत की जिंदगी जीने के लिए बनाया है तो इससे कुछ भिखारियों की जिंदगी बदल सकती है। भिक्षुकों का कौशल विकास कर उन्हें स्वरोजगार से जोड़ने की पहल की जानी चाहिए। भिक्षा मांगने वाला यह वर्ग अगर यथाशक्ति काम करने लगे तो जल्द ही देश से ‘भिखारी’ शब्द का अस्तित्व मिट जाएगा!

(लेखक बीएचयू में अध्येता हैं)