[ हर्ष वी पंत ]: लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी पर भारत और चीन के बीच सैन्य तल्खी अभी भी सुर्खियों में है। हालांकि भारत-चीन के बीच यह सहमति बनी कि दोनों देशों की सेनाएं टकराव वाले इलाकों से कुछ पीछे हटेंगी, लेकिन अभी उस पर अमल शेष है। इस बीच दूसरे मोर्चों पर संवाद और सक्रियता जारी है। इसी कड़ी में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने रूस-भारत-चीन यानी आरआइसी देशों के विदेश मंत्रियों की वर्चुअल बैठक में भाग लिया।

जयशंकर ने कहा- चीनी सैनिकों द्वारा की गई हिंसा एक सुनियोजित कार्रवाई थी 

इस अवसर पर उन्होंने अंतरराष्ट्रीय संबंधों के जांचे-परखे सिद्धांतों में भारत के विश्वास को दोहराते हुए यह भी कहा कि अंतरराष्ट्रीय कानूनों का सम्मान, साझेदारों के वाजिब हितों को मान्यता, बहुपक्षीयता को प्रोत्साहन और सभी के लिए समान लाभ को बढ़ावा देकर ही एक विश्वसनीय वैश्विक ढांचे का निर्माण संभव है। यह साफ था कि जयशंकर के बयान का निशाना किस पर था। इससे पहले भी उन्होंने चीनी विदेश मंत्री के साथ टेलीफोन पर हुई बातचीत में चीन को सीधे-सीधे दोषी ठहराया था कि एलएसी पर चीनी सैनिकों द्वारा की गई हिंसा एक सुनियोजित कार्रवाई थी।

अमेरिका को नियंत्रण में रखने के लिए रूस-भारत-चीन देशों का बना एक मंंच

असल में आरआइसी के जिस मंच पर तीनों देशों के विदेश मंत्री बात कर रहे थे वह शीत युद्ध के तुरंत बाद अस्तित्व में आया था। इसका मकसद अमेरिकी एकाधिकार को नियंत्रण में रखने के लिए तीनों देशों को एक मंच प्रदान करना था। यह उस दौर की बात है जब ये तीनों देश पश्चिमी सैन्य हस्तक्षेप, जलवायु परिवर्तन और वैश्विक व्यापार जैसी वैश्विक चुनौतियों से निपटने में सहयोग की संभावनाएं तलाश रहे थे। हालांकि अपनी प्रत्येक बैठक में सार्वजनिक रूप से अमेरिका को आड़े हाथों लेने के बावजूद तीनों देश अमेरिका के साथ संपर्क की अपनी कड़ियों को जोड़े हुए थे। इसमें चीन ने सबसे ज्यादा फायदा उठाया। इस अवधि में उसने अमेरिका के साथ र्आिथक एवं व्यापारिक सहयोग बढ़ाकर अपनी क्षमताओं में भारी इजाफा किया।

भारत ने भी अमेरिका के साथ रिश्ते बेहतर बनाए

भारत ने भी अमेरिका के साथ रिश्ते बेहतर बनाए। शीत युद्ध की बाधाओं से मुक्ति के बजाय र्आिथक उदारीकरण के कारण ऐसा करना उसकी मजबूरी भी थी। चीन ने इस वक्त का इस्तेमाल जहां खुद को मजबूत बनाने में किया, वहीं भारतीय अभिजात्य वर्ग अमेरिका के साथ सक्रियता को लेकर ऊहापोह में बना रहा। जब भारत में गुटनिरपेक्षता की प्रासंगिकता जैसे विषय पर व्यर्थ की बहसें हो रही थीं तब चीन ने सतर्क गुणाभाग से अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को बढ़ा लिया। चीन और भारत के बीच शक्ति का अंतर जहां बढ़ता गया वहीं नई दिल्ली की विदेश नीति न तो रणनीतिक साबित हुई और न ही स्वायत्तता बढ़ाने वाली।

आरआइसी के मंच से ही भारत ने ब्रिक्स में प्रवेश किया

आरआइसी के मंच से ही भारत ने ब्रिक्स में प्रवेश किया जहां चीन का प्रभुत्व और भी ज्यादा था और उसमें शामिल अन्य राष्ट्रों की सीमाएं भी एकदम स्पष्ट थीं। साफ है कि चीन के उदय को नियंत्रित करने में भारत के रुख में स्पष्टता का अभाव था। इससे भी बढ़कर भारतीय विदेश नीति में अमेरिका और चीन के बीच गलत समानता को लेकर गफलत रही। इस बीच रूस का झुकाव चीन की ओर बढ़ने के कारण भारत के लिए चुनौती और बढ़ गई। दोनों देशों के बीच समय के साथ गतिरोध बढ़ने की उम्मीदें भी कम हो गईं।

चीन और रूस रणनीतिक गठजोड़ मजबूत हो चुका

आज चीन और रूस के बीच रणनीतिक गठजोड़ खासा मजूबत हो चुका है। यह स्वाभाविक साझेदारी नहीं है, लेकिन वैश्विक राजनीति के इतिहास में अजब-गजब घटनाएं तो घटित होती ही रहती हैं। जहां रूस पश्चिम के साथ बढ़ते मनमुटाव के मद्देनजर अपनी विदेश नीति की प्राथमिकताओं को नए सिरे से तय कर रहा है वहीं उसके साथ भारतीय रक्षा एवं सामरिक संबंध समय के साथ दरकते गए। ऐसे में आरआइसी और ब्रिक्स जैसे मंचों पर चीन का दबदबा बढ़ता गया और आज चीन ही एक तरह से उनका एजेंडा तय कर रहा है।

आरआइसी महज जुबानी जमाखर्च का अखाड़ा बन गया

परिणामस्वरूप आज आरआइसी महज जुबानी जमाखर्च का एक अखाड़ा बनकर रह गया है जहां वैश्विक मुद्दों पर बहुत सतही किस्म का विमर्श हो रहा है। आरआइसी की हालिया बैठक में यही दिखा। नई दिल्ली ने इस बात पर जोर दिया कि अंतरराष्ट्रीय मामलों को समकालीन वास्तविकताओं से साक्षात्कार की दरकार है। वैश्विक एजेंडे को दिशा देने में आरआइसी देशों की सक्रिय भूमिका को रेखांकित करते हुए जयशंकर ने यह भी उम्मीद जताई कि तीनों देश बहुपक्षीयता के स्वरूप को सुधारने की दिशा में सक्रियता एवं सहयोग बढ़ाएंगे।

चीन वैश्विक मंचों पर भारत को मुकाम दिलाने में अवरोध खड़ा करता रहेगा

इस पर किसी विडंबना की ओर संकेत करते हुए बिना ही चीनी विदेश मंत्री ने कहा कि आरआइसी को संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतरराष्ट्रीय तंत्र के दायरे में ही बहुपक्षीयता को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इससे तो यही अंदेशा उभरता है कि चीन वैश्विक मंचों पर भारत को उसका वाजिब मुकाम दिलाने में अवरोध खड़े करता रहेगा। इसकी उम्मीद कम है कि वह बहुपक्षीयता में सुधार की भारत की मांग के साथ सुर मिलाएगा।

वैश्विक राजनीतिक वास्तविकताएं तेजी से बदल रही हैं

वैश्विक राजनीतिक वास्तविकताएं तेजी से बदल रही हैं। ऐसे में भारत उस यथास्थिति के साथ संतुष्ट नहीं रह सकता जो उसे चीन के मुकाबले में नुकसान की स्थिति में रखती है। इस वास्तविकता से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि अपनी पसंद स्पष्ट करने को लेकर नई दिल्ली ने अभी तक हिचक ही दिखाई है।

चीन की बदनीयती जाहिर हो चुकी

अब जब न केवल भारत के प्रति, बल्कि व्यापक वैश्विक बहुपक्षीय ढांचे को लेकर चीन की बदनीयती जाहिर हो चुकी है तो भारत को समान सोच वाले भरोसेमंद देशों के साथ मिलकर बहुपक्षीय ढांचा बनाने का बीड़ा उठना चाहिए। हालिया दौर में फिलहाल वैश्विक ढांचा बहुत अस्थिरता का शिकार है और उसमें आरआइसी जैसे मंचों की भारत के लिए बहुत सीमित उपयोगिता है।

आरआइसी और ब्रिक्स जैसे मंचों से भारत को किनारा कर लेना चाहिए

अंतरराष्ट्रीय संबंधों के चलन की मौजूदा चुनौतियों को लेकर जयशंकर का कहना एकदम सही था। यदि भारत को आरआइसी और ब्रिक्स जैसे मंचों से कोई लाभ होता नहीं दिख रहा तो उनसे किनारा करने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए। असमान वैश्विक एजेंडे वाले देशों के साझा मूल्यों के दिखावे वाली व्यवस्था काफी लंबे समय तक कामय रह गई। भारत को इसे खंडित करने की पहल करनी चाहिए। इससे न केवल भारत के हित पूरे हो सकेंगे, बल्कि व्यापक वैश्विक व्यवस्था को भी लाभ पहुंचेगा।

( लेखक लंदन स्थित किंग्स कॉलेज में इंटरनेशनल रिलेशंस के प्रोफेसर हैं )