[ भरत झुनझुनवाला ]: वर्तमान में पूरे विश्व बाजार में चीन के प्रति गहरी नाराजगी देखा जा रही है। बहुराष्ट्रीय कंपनियां चीन को छोड़ रही हैं और तमाम देश चीन में बने माल को आयात करने से हिचक रहे हैं। इस स्थिति का लाभ उठाने में हमें थाईलैंड, वियतनाम जैसे देशों का सामना करना होगा। हमें इन देशों की तुलना में भी सस्ता माल बनाकर आपूर्ति करनी पड़ेगी। इस दिशा में सरकार ने आत्मनिर्भर भारत के तहत एक विशाल पैकेज जारी किया, जिसका मुख्य केंद्र ऋण उपलब्ध कराना है।

यदि बाजार में मांग नहीं होगी तो ऋण का क्या अर्थ? 

प्रश्न है कि यदि बाजार में मांग नहीं होगी तो ऋण का क्या अर्थ? ऋण की सार्थकता तब होती है जब बाजार में मांग हो। यदि उस मांग की आपूर्ति के लिए उद्यमी के पास निवेश करने की क्षमता न हो तो ऋण लेकर निवेश करने की सार्थकता है, लेकिन इस समय बाजार में मांग ही नहीं है। भारत समेत संपूर्ण विश्व बाजार में तमाम उद्योग कोविड-19 संकट के कारण बंद हो रहे हैं। इस परिस्थिति में ऋण देना उद्योगों को और अधिक संकट में डालेगा। 10 करोड़ रुपये के ऋण के भार से दिवालिया होने के स्थान पर उद्यमी 15 करोड़ रुपये के ऋण के भार से दिवालिया होंगे।

सरकार सीधे उपभोक्ताओं को नगद सब्सिडी दे, जिससे बाजार में मांग बने

इस नीति का एक विकल्प यह बताया जा रहा है कि सरकार सीधे उपभोक्ताओं को नगद सब्सिडी दे, जिससे बाजार में मांग बने। यह रणनीति इस हद तक सही है कि बाजार में इससे तत्काल मांग बनेगी, लेकिन समस्या यह है कि यदि हमारा बाजार विश्व बाजार से जुड़ा रहा तो इस मांग की आपूर्ति अपने देश के उत्पादन द्वारा न होकर थाईलैंड, वियतनाम जैसे देशों में बने माल से होगी। इससे सरकार के ऊपर ऋण चढ़ जाएगा, क्योंकि उसे इस रकम को देने के लिए बाजार से ऋण लेना होगा। इसके अतिरिक्त सरकार के पास आने वाले समय में इस ऋण को अदा करने के लिए रकम उपलब्ध भी नहीं होगी, क्योंकि अर्थव्यवस्था लचर ही रहेगी।

श्रम की उत्पादकता बढ़ाकर माल की उत्पादन लागत घटानी चाहिए

इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च इन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस के प्रोफेसर एके गुलाटी ने इस पर जोर दिया है कि देश को अपने श्रम की उत्पादकता बढ़ानी चाहिए। विदित हो कि चीन की तुलना में अपने देश में प्रति श्रमिक लगभग आधा माल बनाया जाता है। यदि चीन में एक श्रमिक 10 फुटबॉल बनता है तो अपने देश में पांच। ऐसी परिस्थिति में गुलाटी का कहना है कि हमें अपने श्रम की उत्पादकता बढ़ाकर अपने माल की उत्पादन लागत घटानी चाहिए, जिससे हम विश्व बाजार में निर्यात कर सकें। यह बात सही है, लेकिन इसमें समस्या यह है कि वर्तमान और आने वाले समय में विश्व बाजार में संकट जारी रहने का अंदेशा है।

उत्पादकता बढ़ाने के लिए श्रम कानून बदलने होंगे

ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने कहा है कि आने वाला समय गरीबी से परिपूर्ण, खतरनाक और अव्यवस्थित होगा। ऐसे में हम अपना माल सस्ता बना लें तो भी उसका निर्यात हम नहीं कर पाएंगे। इसके अतिरिक्त उत्पादकता बढ़ाने के लिए श्रम कानून बदलने होंगे एवं उद्यमियों को आधुनिक मशीन लानी होंगी। इन कार्यों में समय लगेगा, तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।

200 करोड़ रुपये से कम के टेंडर अब केवल भारतीय उद्यमी भर पाएंगे

एक अच्छी खबर यह है कि सरकार ने व्यवस्था बनाई है कि 200 करोड़ रुपये से कम के टेंडर अब केवल भारतीय उद्यमी भर पाएंगे। इसके अलावा सरकार ने चीन के टिकटॉक जैसे तमाम एप्स को प्रतिबंधित किया है और सौ रक्षा उपकरणों को देश में उत्पादन करने का निर्णय लिया है। देश के इलेक्ट्रॉनिक निर्यात पिछले कुछ वर्षों में दोगुना हो गए हैं। हालांकि सिटी रिसर्च की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले छह वर्षों में अपने देश की मैन्युफैक्चरिंग की कुशलता में कोई सुधार नहीं हुआ है, इसलिए इलेक्ट्रॉनिक के निर्यात में जो वृद्धि हुई है, वह विशेष परिस्थितियों के कारण लगती है। ऐसी वृद्धि पूरी अर्थव्यवस्था में हो सकेगी, इस पर शंका है।

हम चीन की तरह से सस्ता माल क्यों नहीं बना पा रहे हैं?

आज भारत के उद्योगों को कच्चा माल उन्हीं दामों पर उपलब्ध है, जिस दाम पर चीन के उद्यमियों को, फिर हम चीन की तरह से सस्ता माल क्यों नहीं बना पा रहे हैं? इस सिलसिले में फेडरेशन ऑफ फार्मा इंटरप्रेन्योर के अध्यक्ष बीआर सिकरी का कहना है कि फार्मा उद्योग द्वारा चीन से कच्चा माल आयात करने का मूल कारण अपने यहां उत्पादन लागत का अधिक होना है। इसकी वजह किसी भी स्वीकृति को लेने में लगने वाला लंबा समय, पर्यावरण स्वीकृति में लचीलेपन की कमी, महंगी जमीन, बिजली की ऊंची दर और टैक्स के रिफंड मिलने में ज्यादा समय आदि है।

स्वीकृति को लेने में लंबा समय का कारण शिथिल नौकरशाही

ये मामले मूलत: हमारी नौकरशाही से जुड़े हुए हैं। किसी स्वीकृति को लेने में लंबा समय का कारण शिथिल नौकरशाही है। स्पष्ट है कि भारत सरकार को आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए नौकरशाही द्वारा अर्थव्यवस्था में जो अवरोध पैदा किए जा रहे हैं, उनसे देश को मुक्त करना होगा। चीन में भी भ्रष्टाचार व्याप्त है, लेकिन वहां का भ्रष्टाचार उद्योगों के विकास में बाधक नहीं। चीन के डेंग शियाओपिंग ने नौकरशाहों को प्रोत्साहन दिया था कि यदि वे अपने क्षेत्र में उद्योग लगवा सकेंगे तो उन्हेंं पदोन्नति दी जाएगी और उनके वेतन में वृद्धि की जाएगी। अपने देश में भी ऐसा ही कुछ करना होगा और ईमानदार नौकरशाहों को प्रोत्साहित करना होगा।

नौकरशाहों का उपभोक्ताओं द्वारा गुप्त मूल्यांकन

सरकार को चाहिए कि वह नौकरशाहों का उपभोक्ताओं द्वारा गुप्त मूल्यांकन कराए। जो अकुशल पाए जाएं, उन्हेंं सेवानिवृत्त किया जाए। कौटिल्य ने कहा था कि राजा को नौकरशाही के द्वारा किए जा रहे भ्रष्टाचार पर नजर रखने के लिए जासूस व्यवस्था स्थापित करनी चाहिए और जासूस स्वयं भ्रष्ट न हो जाएं, इसके लिए उनके ऊपर एक दूसरी निगरानी व्यवस्था स्थापित करनी चाहिए। मनु स्मृति में भी कहा गया है कि सरकार के कर्मी मूल रूप से जनता के धन का भक्षण करने वाले होते हैं, अत: राजा उनसे जनता की रक्षा करे, लेकिन अपने देश में अपनी ही सीख को पूरी तरह नाकारा जा रहा है।

भ्रष्ट नौकरशाही द्वारा वसूली के कारण हमारी उत्पादन लागत ज्यादा हो रही 

भ्रष्ट नौकरशाही द्वारा वसूली के कारण हमारी उत्पादन लागत ज्यादा हो जा रही है। लिहाजा हम चीन और थाईलैंड जैसे देशों से हार रहे हैं। यदि सरकार आत्मनिर्भर भारत के प्रति संकल्पित है तो उसे सर्वप्रथम अपनी नौकरशाही की कुशलता पर ध्यान देना होगा। केवल ऋण बांटकर उद्योगों को ऋण के बोझ से डूबाना नहीं चाहिए। इस नीति से हमारी बैंकिंग व्यवस्था समेत संपूर्ण अर्थव्यवस्था पर और भारी संकट शीघ्र ही आएगा।

( लेखक आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं )

[ लेखक के निजी विचार हैं ]