डॉ विकास सिंह। India Coronavirus News आज हम लॉकडाउन की बंदिशों के खत्म होने का उल्लास मना रहे हैं, लेकिन महत्वपूर्ण सवाल यह है कि हम -बुरे दौर की समाप्ति- वाली स्थिति में हैं या -प्रतिकूल समय की शुरुआत- वाली स्थिति में? वैश्विक मंदी के कारण अर्थव्यवस्था पहले से ही खतरों से घिरी हुई है। हालांकि तकनीकी रूप से भारतीय अर्थव्यवस्था मंदी का शिकार नहीं हो सकती है, लेकिन हमें समानांतर क्षति का सामना तो करना ही पड़ेगा। बहुत कम लोग यह समझ रहे हैं कि मंदी का कारण न तो कोई आर्थिक बुलबुला है और ना ही नीतिगत धोखाधड़ी से संबंधित है।

यह एक प्राकृतिक आपदा है और इसका प्रभाव जितना हमारी आर्थिक स्थिति पर पड़ेगा उतना ही हमारे स्वास्थ्य पर भी। संकटों से घिरी अर्थव्यवस्था में हम पहले भी रहे हैं, लेकिन उस समय यह महत्वाकांक्षी पीढ़ी नहीं थी। यह सही है कि हमारी अर्थव्यवस्था में पांच करोड़ से अधिक एमएसएमई का जीडीपी में योगदान 40 प्रतिशत है, जबकि प्रमुख 100 कॉरपोरेट्स का योगदान लगभग 35 प्रतिशत है, फिर भी देश में कुल श्रम बल के करीब आधे लोग रोजाना कमाकर खाने वाले हैं। इनकी कमाई के लिए रोजाना इन्हें काम मिलना आवश्यक है।

हमें प्रधानमंत्री की समयबद्ध कार्रवाई की सराहना करनी चाहिए। लॉकडाउन की वहज से कम संख्या में लोग मारे गए हैं। इसने हमें तैयारी करने का मौका दिया जिससे बहुत सी चीजों को ठीक किया जा सका। हालांकि दूसरी बार अर्थव्यवस्था को बंद करने से संभावित विकास के प्रभावित होने की पूरी आशंका है। इसका अर्थ होगा मांग में कमी आना और अर्थव्यवस्था को एक लंबी अवधि वाली मंदी की ओर धकेलना। ऐसे में अर्थव्यवस्था पर महामारी का द्वितीयक प्रभाव अधिक समय तक रह सकता है। दोबारा प्रतिबंध लगाने का अर्थ होगा अर्थव्यवस्था की अवनति, सामाजिक और आर्थिक दोनों तरह की चुनौतियों का बढना। इससे गरीब और वंचित अपनी आजीविका खो देंगे, मध्यम वर्ग की बचत कम हो जाएगी, अधिकांश लोग अनिश्चितताओं का सामना करेंगे और वित्तीय तनाव महसूस करेंगे। नीति निर्माताओं को इसके लिए एक अभिनव और त्वरित समाधान तलाशना होगा तथा निर्धनतम लोगों को कुछ रकम का भुगतान करना होगा। हालांकि सरकार की योजनाएं महत्वाकांक्षी हैं, लेकिन हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि इससे हाशिये पर खडे इंसान को कितना लाभ मिल पा रहा है। यदि इन लोगों की समय रहते मदद नहीं की गई तो समाज में अशांति के रूप में दूसरे जोखिम पैदा होने का खतरा हो सकता है।

कॉरपोरेट क्षेत्र और खासकर एमएसएमई जो हमारे अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, उन्हें पूरी तरह से पहले की तरह पटरी पर लौटने और मूल्य सृजन तक के अच्छे दिनों के लिए पर्याप्त रूप से फलने-फूलने का अवसर देना चाहिए। इसके लिए नियमों के अनुपालन से छूट, पुनर्भुगतान और यहां तक कि अग्रिम भुगतान सहित कई अन्य प्रकार के उपायों को अमल में लाया जा सकता है। अब यदि लॉकडाउन किया गया तो वे बर्बाद हो जाएंगे। जैसा कि विज्ञानियों और चिकित्सा विशेषज्ञों द्वारा आशंका जताई जा रही है, यदि इस महामारी का दूसरा चरण आता है, तो नीति निर्माताओं को उस संकट से बाहर निकलने के लिए नए आयाम तलाशने होंगे। केवल करों में कटौती से कोई फायदा नहीं होने वाला है। सरकार को निवेश का नेतृत्व करना होगा और अपनी जेब ढीली करनी होगी, क्योंकि सुस्त पडी अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने के लिए यह निवेश करने का समय है। इस समय हमारी राजकोषीय सेहत काफी अनुकूल है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमत गिरने से हमें बहुत फायदा होता है।

तमाम उपायों के साथ सरकार को ग्रामीण विकास को तेज करना चाहिए और ग्रामीण बुनियादी ढांचे पर ध्यान देना चाहिए। इसके कई फायदे हैं। कोरोना के द्वितीयक प्रभाव को नियंत्रित करना हमारे हमारे वश में नहीं है। वायरस के अनियंत्रित होने के घातक परिणाम होंगे, लेकिन अर्थव्यवस्था की कीमत पर इसे नियंत्रित करने के प्रयास किए गए तो परिणाम और अधिक घातक होंगे।

[मैनेजमेंट गुरू तथा वित्तीय एवं समग्र विकास के विशेषज्ञ]