नई दिल्ली (शैलेश त्रिपाठी)। क्या आप जानते हैं कि अनशन का पहला विवरण प्राचीन कथाओं में भी मिलता है? नहीं तो थोड़ा ज्ञान लीजिए और यह जान लीजिए कि महर्षि दधीचि ने जनहित में ही अन्न जल कौन कहे, श्वास लेना भी छोड़ दिया था। कुछ ऐसा ही कालांतर में अंग्रेजी शासन के दौरान भी हुआ जब कई लोगों ने जेल में ही अनशन करके प्राण त्याग दिए, परंतु इतिहास में उनका नाम खोजे से भी नहीं मिलता और आज हर दूसरी-तीसरी खबर अनशन की होती है। तमाम बंदे और बंदियां बिना अनशन फनशन किए लाभ के पदों पर स्थापित होते हुए मूर्तिमान हुए जा रहे हैं। इससे यह ज्ञान मिलता है कि अनशन करके प्राणों का उत्सर्ग करने वाले तो इतिहास के पन्नों में दफन हो जाते हैं, लेकिन बिना अनशन किए या अनशन का क्रेडिट लेने वाले परम पद को प्राप्त करते हैं। आजकल कई तरह के अनशन प्रचलन में हैं। आमरण अनशन, क्रमिक अनशन, प्रतीकात्मक अनशन, सांकेतिक अनशन, क्षणिक और अति क्षणिक अनशन। पहले अनशन करने के कुछ ही स्पेशलिस्ट हुआ करते थे, परंतु आजकल परंपरागत अनशनकारियों के सामने नई चुनौती आ गई है। तमाम नए-नए अनशनकारी खिलाड़ी मैदान में आ गए हैं जिनमें कई तो छोले भटूरे खाकर भी अनशन करते हैं। ऐसे लोग दावा करते हैं कि दरअसल छोले-भटूरे जैसी भारी चीज खाने के बाद पेट अनशन पर चला जाता है और अल्पज्ञानी लोग शरीर देखते हैं, पेट नहीं। जबकि वह यही कह रहा होता है, अब और राशन नहीं चाहिए।

अब माननीय लोग कभी-कभी ही अनशन करते हैं, लेकिन पूरा हल्ला मच जाता है। दूसरी ओर देश की लाखों जनता सालों से रोज ही अनशन करती चली आ रही है, पर उसे कोई नहीं पूछने वाला। छोले-भटूरे खाकर अनशन करने वालों ने जैसा अनशन किया वैसा हम-आप आए दिन करते हैं, लेकिन अज्ञानी होने के कारण कभी किसी से कहते नहीं कि हम आज दस से दो बजे या फिर सवा पांच से पौने सात बजे तक अनशन पर हैं। चूंकि कहते नहीं इसलिए न फोटो छपती है और न खबर। वैसे तो अनशन के लिए कोई आधिकारिक नियमावली अभी तक नहीं बनी है, लेकिन फिर भी कुछ सलाह मान ली जाए तो वह अनशनकारी के लिए खासी उपयोगी हो सकती है। अनशन की शुरुआत करने जा रहे बंदे को सबसे पहले अपनी सेहत के बारे में आश्वस्त हो लेना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि अनशन के शुरुआती घंटों के दौरान ही चारों खाने चित होकर उपहास का पात्र होना पड़े या फिर सचमुच दो-चार दिन का उपवास करना पड़े।

अनशन करने वाले वैसा कुछ न करें जैसा रक्तदान शिविर में रक्तदान करने पर अड़े एक नेता ने किया। पहले तो लोगों ने उन्हें बहुत समझाया पर जब वह न माने तो आयोजकों ने उनको भी लिटा दिया, पर आधा बोतल ख़ून देते ही वह बेहोश हो गए और होश तब आया जब खून की दो बोतल चढ़ाई गईं। वहीं से बेचारे का नेतागीरी का करियर खत्म हो गया। अब वह लोगों को रक्तदान महादान का ज्ञान देते हैं। घाघ बंदे कभी आमरण अनशन के चक्कर में नहीं पड़ते। हमेशा क्रमिक या सांकेतिक अथवा क्षणिक या अति क्षणिक टाइप अनशन ही करते हैं। कुछ तो पांच-पांच या दस-दस मिनट के स्लॉट में अनशन करते हैं, बिल्कुल टी-20 क्रिकेट की तर्ज पर। फिर आजकल तो तमाम इवेंट मैनेजमेंट कंपनियां भी आ गई हैं जो डिजाइनर अनशन मैनेज करवाती हैं। वे सुसज्जित मंच पर झमाझम संगीत और देशभक्ति से ओतप्रोत कविताओं के बीच बेहद रंगारंग टाइप अनशन कराती हैं। एक्स्ट्रा पेमेंट करने पर वे महिला/पुरुष समर्थक नारेबाज, पत्थरबाज बंदे भी मुहैया कराती हैं। इन कंपनियों के घाघ बंदे अनशन शुरू करने के पहले अपने कुर्ते पैजामे की जेबों में ढेर सारे छोटे-छोटे पत्थर भी छिपा कर रख लेते हैं ताकि पता चल सके कि अनशन के दौरान कितना वजन कम हुआ? बाद में पत्थर फेंक देने के बाद वजन लेने पर वजन में काफी अंतर दिखता है और इससे शासन-प्रशासन पर भारी दबाव बनता है। अगर यह नहीं भी होता तो खबर में कुछ वजन आता है। कभी-कभार अनशन स्थल पर आधी रात को पुलिस धावा भी बोलती है और तबियत से तुड़ाई भी करती है सो सतर्क टाइप के अनशनकारी उस स्थिति से निपटने के लिए वेश बदलने का भी पूरा इंतजाम रखते हैं या अनशन ऐसी जगह करते हैं जहां कम से कम एक पतली गली हो।

अनशन का क्रेज जिस तरह परवान चढ़ रहा है उसे देखते हुए सरकार को इसे जीएसटी के दायरे में लाने पर विचार करना चाहिए। एक सुझाव अनशनकारियों के लिए भी है कि अनशन के ठीक पहले कुछ खाना हो तो रेस्टोरेंट में खाने से बचना चाहिए। रेस्टोरेंट में खाना नितांत आवश्यक ही हो जाए तो चेहरे पर नकाब बांधकर खाना चाहिए, वरना दबा के खाते हुए फोटो खिंच सकती है और अगर ऐसी फोटो खिंची तो वह वायरल ही होगी।

(लेखक- शैलेश त्रिपाठी)