[ हृदयनारायण दीक्षित ]: मृत्यु निश्चित है। वह सूचना देकर नहीं आती, लेकिन महामारियां मृत्यु के जयघोष के साथ आक्रमण करती हैं। लोग थोक में मरते हैं। मौत का भय भयानक सामाजिक रूप लेता है। संप्रति मानवता ऐसे ही मृत्युभय से कांप रही है। दुनिया के तमाम देशों के साथ भारत भी महामारी से संघर्षरत है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के कार्यकारी निदेशक माइकल रयान ने कहा है कि ‘भारत के पास कोरोना से लड़ने की क्षमता है। इसके पास चेचक और पोलियो को समाप्त करने का अनुभव है।’

भारत अपनी तैयारियों से कोरोना के तीसरे चरण से बचने में कामयाब होगा

उन्होंने विश्वास जताया है कि भारत अपनी तैयारियों से कोरोना के तीसरे चरण से बचने में कामयाब होगा।’ भारत पूरी दुनिया के लिए मार्गदर्शी हो सकता है। जर्मन विद्वान मैक्समूलर ने ‘व्हाट इंडिया कैन टीच अस-भारत हमें क्या सिखा सकता है’ व्याख्यान माला (1882) में कहा था, ‘हम हर चीज के अभ्यस्त होकर आश्चर्य करना छोड़ देते हैं। अचानक आए भूकंप के समान हमारे संरक्षकों को किस बात ने चौंकाया होगा? उनकी स्थायी धारणाओं को किसने ध्वस्त किया होगा।’आपदाएं स्थापित धारणाएं तोड़ती हैं।

कोरोना से प्रकृति की अनंत शक्ति का परिचय मिल गया

कोरोना के अंत के बाद का विश्व सोच-विचार, आचार-व्यवहार और आहार आदि की आदतों में भिन्न होगा। विज्ञान को अपनी सीमा का पता चल गया है। प्रकृति की अनंत शक्ति का परिचय मिल गया है। स्वयं को महाशक्ति मानने वाले देश आत्मसमर्पण कर रहे हैं। विश्व इतिहास में अपने ढंग की यह पहली आपदा है। सामान्यतया इतिहास के विवरण में ‘ईसा पूर्व और ईसा बाद’ के काल विभाजन हैं। अमेरिका पर 9/11 हमले के बाद वैश्विक सामाजिक व्यवहार में आधारभूत बदलाव हुए थे।

इतिहास के कालविभाजन की रेखा ‘कोरोना के पहले और कोरोना के बाद’ की हो सकती है

अब इतिहास के कालविभाजन की रेखा ‘कोरोना के पहले और कोरोना के बाद’ की हो सकती है। आर्थिक उदारीकरण के प्रभाव में दुनिया को ग्लोबल विलेज यानी भूमंडलीय गांव माना गया था। खासकर व्यापार में राष्ट्र-राज्य की सीमाएं शिथिल हो रही थीं, लेकिन कोरोना आपदा से ये सीमाएं सील हैं। विमान सेवाएं बंद हैं। सामाजिक व्यवहार बदल गए हैं। वार्ता करने में फासले की दूरी विशेषज्ञ बता रहे हैं। निकट वार्ता का सामाजिक व्यवहार बदल गया है। हम सबकी आंतरिक मानसिक बदलाव की गति तेज रफ्तार है।

लॉकडाउन में कानून की शक्ति है, धारा 144 है

भारत के धर्म, दर्शन और लोकव्यवहार में अनुकूलन की शक्ति है। आपदाओं में आश्चर्यजनक एकता और सामान्य जीवन में अनेकता यहां की प्रकृति है। प्रधानमंत्री मोदी ने जनता कर्फ्यू की अपील की। देश ने अपील स्वीकार की। उन्होंने 21 दिन के लॉकडाउन की अपील की। हाथ जोड़े। सबने माना, लेकिन अपवाद भी रहे और हैं भी। ऐसी महामारी में अपवाद की ताकत अनुशासित करोड़ों देशभक्तों की ताकत से ज्यादा बड़ी और खतरनाक भी होती है। लॉकडाउन में कानून की शक्ति है। एपिडेमिक डिजीज एक्ट व आपदा प्रबंधन कानून 2005 है। भारतीय दंड संहिता की धारा 188, 269 व 270 में भी कड़ी व्यवस्था है। धारा 144 है।

लॉकडाउन का पालन होना चाहिए, सब घर में रहें, अपने लिए, अपनों के लिए, राष्ट्र के लिए

देश को कानून का पालन करना ही चाहिए। विकल्पहीन महामारी में घर में ही रहना उचित है। मनुष्य घर संवारने के लिए श्रम करते हैं। घर आश्रय है। सब घर में रहें, अपने लिए, अपनों के लिए, राष्ट्र के लिए। घर में रहते हुए कम से कम एक और परिवार के पोषण से यह संघर्ष आसान होगा।

चिकित्सा विज्ञानी देर-सबेर कोरोना की दवा खोज लेंगे

चिकित्सा विज्ञानी देर-सबेर कोरोना की दवा खोज लेंगे। संभवत: बचाव का टीका भी, लेकिन तेज रफ्तार संक्रमण वाली महामारियों से लड़ना तब भी व्यावहारिक रूप में कठिन रहेगा। क्या अरबों की आबादी वाले विश्व के प्रत्येक व्यक्ति का टीकाकरण व्यावहारिक होगा? मान लें कि ऐसा संभव है तब क्या इसी तरह की अन्य नई बीमारियां और जानलेवा वायरस भविष्य में दस्तक नहीं देंगे?

मनुष्य प्रकृति से लड़ रहा है, ग्लोबल विलेज में भयंकर ग्लोबल वार्मिंग

वैज्ञानिक रोगों से लड़ने की ही औषधि खोज सकते हैं, लेकिन आधुनिक मनुष्य प्रकृति से लड़ रहा है। पृथ्वी के मर्मस्थल खोदे जा रहे हैं। ग्लोबल विलेज में भयंकर ग्लोबल वार्मिंग है। विज्ञान का सदुपयोग लोकमंगल प्रेमी ही कर सकते हैं। प्रकृति के अधिकाधिक दोहन को ही विकास मानने वाली सोच पृथ्वी को महामारियों से नहीं बचा सकती। प्रकृति की लयबद्धता-ईकोलोजी-तोड़ने के परिणाम को महामारी मानने से इन्कार नहीं किया जा सकता। इस संदर्भ में लॉकडाउन के परिणाम ध्यान देने योग्य हैं। महानगरों के वायु प्रदूषण में गिरावट आई है।

सोशल डिस्टेंसिंग का मतलब समाज से अलगाव नहीं 

आज सारी दुनिया में सोशल डिस्टेंसिंग की चर्चा है। इसका अर्थ समाज से अलगाव नहीं है। जीवन की सभी गतिविधियां सामाजिक हैं। मन की निकटता को वैदिक ग्रंथों में श्रेष्ठ बताया गया है। समाज की दीर्घजीविता के लिए प्रत्येक सदस्य का परस्पर दूर रहना जरूरी है।

नमस्कार में मन की निकटता की अभिव्यक्ति है, 

नमस्कार में मन की निकटता की अभिव्यक्ति है। ऋग्वेद में नमस्कार को देवता कहा गया है। नमस्कार में देह ऊर्जा या विकार का संक्रमण दूसरे को नहीं होता। हम सब प्रकृति के अंग हैं। प्रकृति अराजक नहीं है। पृथ्वी और सभी ग्रह सुसंगत नियमों में गतिशील हैं। अग्नि प्रवाह उध्र्वगामी है। जल प्रवाह ऊंचे से नीचे प्रवाहित हैं। भारतीय चिंतन में मनुष्य देह अन्नमय कोष है। अन्न, फल आदि प्रकृति की देन हैं।

चीन जैसे देशों की जीवनशैली का खामियाजा हम सभी को भुगतना पड़ेगा

कुत्ते, बिल्ली, चमगादड़, सांप आदि जीव खाद्य पदार्थ नहीं हैं। वे प्रकृति का ही सृजन हैं, लेकिन लाउत्से सरीखे दार्शनिकों को जन्म देने वाले चीन में लोग इन्हें खाते हैं। दुनिया ग्लोबल विलेज है तो चीन जैसे देशों की जीवनशैली का खामियाजा हम सभी को भुगतना पड़ेगा।

जीवन शैली का विकास जीवन दृष्टि से होता है

विश्व को ऐसे तमाम सामयिक प्रश्नों पर विचार करना होगा। जीवन दृष्टि और जीवन शैली दोनों विचारणीय हैं। जीवन शैली का विकास जीवन दृष्टि से होता है। मूलभूत प्रश्न जीवन दृष्टि के हैं। विकास और समृद्धि की हमारी दृष्टि और परिभाषा क्या है?

क्या प्रकृति का विध्वंस कर ऊंचे भवन बनाना ही विकास है

क्या प्रकृति का विध्वंस कर ऊंचे भवन बनाना ही विकास है? अच्छे महानगरों की परिभाषा में भीमकाय हवाई अड्डे और बहुमंजिला भवन ही क्यों हैं? विकास और समृद्धि की यह जीवनदृष्टि प्रकृति की दुश्मन है। इसी जीवनदृष्टि से आधुनिक आत्मविरोधी जीवनशैली का विकास हुआ है। नई बीमारियां, वायरस, अनिद्रा और अवसाद जैसे रोग बढ़े हैं। कोरोना के अनुभव मार्गदर्शी हो सकते हैं। जीवनदृष्टि के संदर्भ में आर्थिक भूमंडलीकरण असफल हो गया लगता है। सांस्कृतिक भूमंडलीकरण की दृष्टि से भारत को नई जीवनदृष्टि की मुहिम का नेतृत्व करना चाहिए।

( लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष हैं )