अर्चना चतुर्वेदी

शहरों को स्मार्ट बनाने की जद्दोजहद में जुटी सरकार अपने इस अभियान में पता नहीं कितनी सफल हो पा रही है, लेकिन स्मार्टफोन ने इंसान को जरूर स्मार्ट बना दिया है। जबसे स्मार्टफोन ने हमारे जीवन में दस्तक दी है तबसे हम स्मार्ट मनुष्यत्व को प्राप्त हो चुके हैं। अब हमारे पास वक्त नहीं है रिश्तेदारी या नातेदारी निभाने का और न ही किसी से मिलने-जुलने का। सबको मिलने वाले समय में स्मार्टफोन ने जबरदस्त सेंध लगाई है। अब फेसबुक और वाट्सएप्प पर ही हमने अपनी चौपाल जमा ली है। सास-बहू के झगड़े की खबर लेने को अब कान नहीं लगाने पड़ते, बल्कि सास-बहू हों या ननद-भाभी, सभी अपने युद्ध यहीं निपटा रही हैं और खबर खुद ब खुद चलकर हमारे पास आ रही है। लड़ाइयां भी अब बाल नोचने या गुत्थमगुत्था की नहीं रहीं। वर्चुअल युद्ध के बाकायदा बिगुल बजते हैं। बहसें होती हैं। आरोप-प्रत्यारोप के दौर चलते हैं। यहां तक कि गाली गलौज भी होती हैं। फेसबुक पर दुनिया पढ़ती है और वाट्सएप्प पर ऑडियो-वीडियो देख सुनकर फॉरवर्ड का दौर चलता है। यहां तक कि एक्चुअल लड़ाई में सिर फुटव्वल हो जाए तो लोग पहले डॉक्टर के पास नहीं जाते, बल्कि खून टपकते हुए दर्द से कराहते हुए इंसान का पहले फोटो सेशन होता है फिर मनमाफिक कहानी के साथ वाट्सएप्प -फेसबुक- ट्विटर पर अपलोड होता है तब कहीं जाकर उस इंसान का इलाज शुरू होता है। ऐसे फोटो अलग अलग ग्र्रुपों से होकर पर्सनल आइडी तक फॉरवर्ड होते हैं और कुछ ही देर में हजारों व्यूज तो मिल ही जाते हैं।
डिजिटल दुनिया का कमाल तो तब देखने को मिलता है जब झगड़े का निपटारा होकर शांति भी हो जाती है पर वीडियो-ऑडियो फॉरवर्ड का दौर नहीं थमता। यह कुछ इस तरह होता है कि जैसे किसी का बच्चा गुम हो गया हो और उसने वाट्सएप्प पर फोटो संग सूचना दे दी,- ‘बच्चा मिलते ही इस पते पर पहुंचाएं या फलां नंबर पर फोन करें।’ इस पर बच्चा मिलने के बाद भी सूचना फॉरवर्ड होती रही और आलम यह हुआ कि बच्चा बेचारा जहां भी जाता वहां से पकड़ कर घर पहुंचा दिया जाता। वाट्सएप्प या फेसबुक पर भेजी हुई सूचना या वीडियो बंदूक की गोली की तरह है जो सिर्फ छोड़ी जा सकती हैं वापस नहीं आ सकतीं। लोग फेसबुक और वाट्सएप्प पर यदि प्यार का इजहार करते हैं तो वाक् युद्ध भी यहीं निपटाए जाते हैं। वो अब गए जमाने की बात हो गई जब फेसबुक पर लोग खाना-पीना, घूमना-फिरना शेयर करते थे। अब तो बाकायदा चौपाल की तर्ज पर घर के अंदर की बातें यहां होती हैं। भाभी ने क्या कहा और ननद ने क्या जवाब दिया इसकेमजे घर बैठे डिजिटल चौपाल पर लिए जा रहे हैं। जो लड़ाइयां आमने-सामने बात से लेकर लात तक पहुंचती थीं और दो चार दर्शक ही जुटते थे, आज हजारों दर्शकों के बीच बातों की लातों पर खत्म होती हैं। आज एक्चुअल नहीं वर्चुअल का जमाना है तभी तो सब कुछ स्मार्ट है।
सिर्फ पारिवारिक या सामाजिक बहसें ही नहीं, यह डिजिटल चौपाल भी असली मूल चौपाल की तरह राजनीतिक बहसों का भी अड्डा है। यहां अलग-अलग पार्टी के भक्त अपनी-अपनी पार्टी का भजन ही नहीं गाते, बल्कि विपक्षी पार्टी को नीचा दिखाने का हरसंभव प्रयास करते हैं। तरह तरह के वीडियो और कोट शेयर करते हैं। कई लोग तो इतना उत्पात मचाते हैं कि बेचारे जुकरबर्ग को बीच-बचाव में आना पड़ता है और आइडी बंद करनी पड़ती है या उस पर कुछ समय के लिए रोक लगानी पड़ती है। यही काम ट्विटर पर भी होता है। ऐसा लगता है कि आज का इंसान ई मनुष्य हो चुका है जो सिर्फ इंटरनेट के सहारे जिंदा है। ई मनुष्य वाट्सएप्प पर स्माइल वाली इमोजी भेजकर ही मुस्कुराता है। असलियत में मुस्कुराना क्या होता है, वह भूल चुका है, क्योंकि वह ई मनुष्य है। आज लोग सामने मिलने पर हाय-हैलो भले ही न करें, रोज सुबह वाट्सएप्प पर फूल-पत्ती और भगवान की फोटो भेजना नहीं भूलते। वे गुड मार्निंग से गुड नाइट तक सत्संग नुमा कई मैसेज फॉरवर्ड करते हैं। घर वालों से बात करें, यह जरूरी नहीं, पर वाट्सएप्प का कोई मैसेज मिस नहीं होना चाहिए। कुछ लोग तो विशुद्ध डिजिटल मनुष्य हो चुके हैं। अपने घर वालों से भी वाट्सएप्प पर ही बात करना पसंद करते हैं। यहां तक कि सिर्फ अपनी डीपी में ही मुस्कुराते हैं मिलने पर देखते तक नहीं। सामने देखने केलिए गर्दन उठानी पड़ेगी और गर्दन उठी तो मोबाइल में कुछ मिस होने का डर। हर तरफ झुकी गर्दन के साथ मनुष्य की अंगुलियां मोबाइल पर ही काम करती नजर आती हैं। ऐसा लगता है मानो गांधीजी का चौथा बंदर धरती पर अवतार ले चुका है। बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो और बुरा मत बोलो-वाले ये तीन बंदर थे और यह चौथा बंदर अच्छा बुरा कुछ भी न देखता है न ही सुनता है, न ही बोलता है ...बोलती हैं सिर्फ उसकी अंगुलियां।
अलग अलग मुहल्लों की चौपाल की तर्ज पर वाट्सएप्प पर ग्र्रुप बने हुए हैं और तो और घर में जिनको कोई कुछ नहीं समझता वे चार-चार ग्र्रुप के एडमिन बने फिरते हैं। मुझे तो लगता है कि कुछ समय में बायोडाटा में एक्स्ट्रा एबिलिटी में लिखा जाएगा कि 10 ग्र्रुप चलाने का अनुभव। आखिर जमाना डिजिटल का जो है।

[ हास्य-व्यंग  ]